कजरी

अबके बाँव न जाई सावन साँवरिया बदरिया भले कतिनो बरिसे।   चाहे झिर झिर परिहें बूनी भीजे डहुंगी तर के चूनी सजना जाई उहवें देखि भरि नजरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   चाहे कउंचे साँवर गोरी इचिको तके न हमरे ओरी अइबै ओढ़ावे बदै धानी चुनरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   भउजी टुप टुप ताना मरिहें भलहीं कोसिस निफल करिहें अबके मिली उनुके सुनइबै कजरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   भले कंठ रही अनबोलले रयनि बैरिन पट के खोलले अबके साजन गोरी भेटी अंकवरिया । बदरिया भले कतिनो बरिसे।  …

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गीत

रूठल रूठल बदरवा मनाई कइसे। गाई रगिया मल्हरवा सुनाई कइसे ।।   उत्तर में बदरा हाथ जोड़ी लिहले, पछुवा बेयरिया गजब कई दिहले, भारी गरमी से जियरा जियाई कइसे ।।रूठल…..   आजु रथ जतरा में रथवा खिंचाइल, कुछ कुछ बदरिया अकासे रहल छाइल, इचिको बरसल ना बदरा नहाई कइसे ।।रूठल…..   रउवा त ठीक भइली पीही कढवा, लुहिया सहत पूरा बीतल अषढ़वा, अब जिनगी के रथवा खिंचाई कइसे ।।रूठल……   बाबा जगन्नाथ भेजी पूरब से पनियां, ‘लाल’ रोवे घरवा रोवत बानी धनियां, राउर भगतन के दुखड़ा बताई कइसे ।।रूठल……  …

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गीत

बिख उगे घमवा अषाढ़ महीनवां में, बरखा के आस नाहीं सुरुज धिकाइल बा। पोखरी तलइया में नीर नाहीं नदी सूखि, त्राहिमाम सगरो धरतिया सुखाइल बा। झन-झन झिंगुरा झनकि दुपहरिया में, पेड़वा क पतवा मुरुझि लरुआइल बा। दुबुकल चिरइया खतोंगवा में छांह खोजि, बचवन के सँगवा पियासल पटाइल बा। धनि-धनि बदरा ना लउके सपनवों में, पपीहा वियोग जरें गर रून्हिआइल बा। केकरा अंजोरवा तूं अइबा बदरवा हो, जुगुनू के बत्तिया पसेनवा बुताइल बा। हेरें असमनवां में चान के अंजोरिया हो, खेतिया किसनिया के बेला इहे आइल बा। मेझुका मिलन बाट जोहेलीं…

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एक सुझाव गीत

धरती के सिंगार बिरना आवा सजावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के बचावा हो।। हरे हरे पेड़ होइहैं फैली हरियाली, हरषी सिवान देखि पूरब के लाली, उसर के नाम अब जग से मिटावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के…… सुंदर समाज बनी शुद्ध होई पानी, ताजी हवा से मिली मन के रवानी, एसी में सोवल जे बा उनके जगावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के …… ओजोन चादर में छेद भइलैं भारी, कहियो ज फाटी चादर फैली बीमारी, “लाल” के बिचार भइया टोगें गठियावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के…….…

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पूरबी

पियवा के सुधिया सतावे भरि रतिया साँवर गोरिया रे। तलफत सेजरिया पर जाय।   सेही सेजरिया सपनवाँ ना भावे साँवर गोरिया रे। सोचि सोचि बतिया लोराय।   कवने कारन पिया छोड़लें बेगनवाँ साँवर गोरिया रे। क़िसमत के कोसी पछताय।   जेपी के कहना बा ठाना ठनगनवाँ साँवर गोरिया रे। आपन पियवा लेहु न बोलाय।   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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गुलबिया हो

ना हमरा से नेह छोह ना रउरा से प्यार बा। फेरु गुलबिया हो, केकरा लग्गे सरकार बा।   बुद्धू बकसवा में बइठ टर्राने केकरा खातिर पूछेलें फलाने केकरा साथ संगत के उनुका दरकार बा। गुलबिया हो……   केकरे ओठवा के नमी झुराइल बाति के सुनगुन से के बउराइल केहो छान-पगहा लिहले करत गोहार बा । गुलबिया हो……   अचके में आजु मार पड़ल अइसे करके भितरघउवा सुसुकीं कइसे अइसन दरद जवन कहलो बेकार बा। गुलबिया हो……   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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बकरिया रे

बकरिया रे तोर महिमा बा भारी गुन गावे खूबे संविधान सरकारी ! दुधवा जे पियेला उ बनेला महातमा दुनिया कहेला महामानव देवातमा आजु होला पठरुन के बलि बरियारी ! तोरे से आ तोरे खातिर तोरे लोकतंतर ज्ञानी जन दिने राति जपे इहे मंतर बाकिर तोरा घरवा के देवेलन उजारी ! तहरे के बेचि कीनि चले दुकनदारी दूहि गारि लेवे नीके देवे दुतकारी काहें टुकुर टुकुर ताकि बनेलू बेचारी ! तहरा के दूहे सभ केहू पारापारी तबहूँ ना जिनगी के सधे देनदारी लोहू पीये मास चाभे बने अवतारी ! सभ अनमोल…

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माई

पेट जारि के जिअवलू आपन बखरा खिअवलू , करनी अइसन कइलू कभों बिसराई ना केहू माई तोर करजा भरि पाई ना केहू । बहुते बेमार परीं हमहूँ नन्हईयाँ जोहलू न केहुके उठवलू कन्हईयाँ कोसनऽ ले जाई जा के लेहलू दवाई गुन गवला से कतनो अघाई ना केहू माई तोर करजा– जड़वे त कोरवे में साटि लुकववलू भेवनी बिछवना ओहू के झुरववलू किरिया धरावे केहू ठोनहक मारे दुख सहलू जवन ऊ भुलाई ना केहू माई तोर करजा– झोंझरी में भूँजा दे के पढ़े के पठवलू रार ना मचाईं कतों किरिया धरवलू…

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ईयाद आवे गउवाँ

शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ खेत, खरिहान अउर पीपर के छउवाँ ईयाद आवे गउवाँ॥   संगही ईयाद आवे,  ईया के बतिया लइकन संगे खेललकी होला पतिया अचके मचल जाला जाये के पउवाँ। ईयाद आवे गउवाँ॥ शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ॥   संगही ईयाद आवे होरहा भुजलका खेतन के डांड़े भागत बेर गिरलका संझा खानि ओरहन धरि धरि नउवाँ। ईयाद आवे गउवाँ॥ शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ॥   संगही ईयाद आवे ऊख के तोड़लका पकड़इला पर उखिए उखिए पिटलका ठेहुना क दरद सरकि के गिरल खउवाँ। ईयाद आवे…

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गीत

बेसुरा कुछ लोग,लय क चासनी लेके खड़ा बा शब्द के फींचे सुखावे अरगनी लेके खड़ा बा/ रेलगाड़ी के सफर में दूर से सीवान देखे आंखि पर ऐना चढ़ा के झिरखिरी से चान देखे दिनकेउजियारे दिया भर चांदनी लेके खड़ा बा/ ककहरा भर पाठ पढ़िके रोज भासा ज्ञान बांटे राह जे चीन्हें न जाने राह क पहिचान बांटे आंखि ना दीदा ,समय क तरजनी लेके खड़ा बा/ पांव के नीचे न माटी माथ पर आकास ढोवे समय के रुख पर चले जे बहत गंगा ‌हाथ धोवे ऊ भगीरथ क कठिन तप…

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