एक सुझाव गीत

धरती के सिंगार बिरना आवा सजावा हो।
पेड़वा लगाके यही भुइँया के बचावा हो।।

हरे हरे पेड़ होइहैं फैली हरियाली,
हरषी सिवान देखि पूरब के लाली,
उसर के नाम अब जग से मिटावा हो।
पेड़वा लगाके यही भुइँया के……

सुंदर समाज बनी शुद्ध होई पानी,
ताजी हवा से मिली मन के रवानी,
एसी में सोवल जे बा उनके जगावा हो।
पेड़वा लगाके यही भुइँया के ……

ओजोन चादर में छेद भइलैं भारी,
कहियो ज फाटी चादर फैली बीमारी,
“लाल” के बिचार भइया टोगें गठियावा हो।
पेड़वा लगाके यही भुइँया के…….

 

  • लालबहादुर चौरसिया “लाल”
    गोपालगंज बाजार, आजमगढ़, यूपी
    मो.9452088890

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