हम विषय पर आपन बात राखे का पहिले रउवा सभे के सोझा 3-4 बरिस पहिले के कुछ बात राखल चाहत बानी। 20-22 करोड़ कथित भोजपुरी भाषा भाषियन का बीच 3-4 गो पत्रिका उहो त्रमासिक भा छमाही निकलत रहनी स। ओह समय भोजपुरी के नेही-छोही रचनाकार लोगन का सोझा भा भोजपुरी के नवहा रचनाकार लोगन के सोझा ढेर सकेता रहे। ओह घरी 3-4 गो जुनूनी लोगन का चलते भोजपुरी साहित्य सरिता के जनम भइल। एकरा पाछे एगो विचार रहे कि भोजपुरी के नवहा लिखनिहार लोगन के जगह दीहल जाव, पुरान लोगन…
Read MoreTag: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
तमासा घुस के देखै
लख लतखोर कहाय, तमासा घुस के देखै॥ सौ सौ जुत्ते खाय, तमासा घुस के देखै॥ इनका उनुका बहकावे में नाटो क खिचड़ी पकावे में जेलस्की इतराय, तमासा घुस के देखै॥ गावत फिरत देस के गीत संहत छोड़ि परइलें मीत बइडेनवा मुसकाय, तमासा घुस के देखै॥ बरसे लगल रसियन मिसाइल खड़हर सहर मनई बा घाहिल खूनम खून नहाय, तमासा घुस के देखै॥ मानवता के नारा कइसन नैतिकता क पहाड़ा जइसन कबौं बदल ऊ जाय, तमासा घुस के देखै॥ के बा नीक, नेवर के बा फयदा केकरा…
Read Moreबबुनवाँ बड़ नीक लागे हो
ठुनुक़त घरवाँ अंगनवाँ, बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो। अरे हो बिहँसत माई के परनवाँ, बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो। मुँहवा लपेटले मखनवाँ बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो। अरे हो उचकि उतारत अयनवाँ, बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो। हुलसत गरवा लगावेली अरे हो भरले लोरवा नयनवाँ , बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो। रोआँ पुलकि जिया हरसेला अरे हो कुंहुकेला मन अस मयनवाँ, बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreआपन बात
साहित्य अपना में समाज का संगे सभे के हित समाहित राखेला आ हरमेसा बढ़न्ति का ओर गति बनवले राखे के उपक्रम विद्वान साहित्यकार लोग करत रहेलें। अइसने कुछ साहित्य जगत के मान्यतो ह। बाकि हर बेर ई सही ना होखे। कई बेर एकरा से उलट होत लउकेला। जान-बूझ के भा इरखा बस कवनो नीमन चीजु के अनदेखी कइल, उहो अइसन लोगन द्वारा जेकरा के हद तक मानक मानल जात होखे, ढेर बाउर लागेला। अइसन भइलका मन के गहिराह टीस दे जाला। कई बेर उ टीस मन के उचाट क देवेले।…
Read Moreअहम् के आन्हर सोवारथ में सउनाइल
का जमाना आ गयो भाया, आन्हरन के जनसंख्या में बढ़न्ति त सुरसा लेखा हो रहल बा। लइकइयाँ में सुनले रहनी कि सावन के आन्हर होलें आ आन्हर होते ओहन के कुल्हि हरियरे हरियर लउके लागेला। मने वर्णांधता के सिकार हो जालें सन। बुझता कुछ-कुछ ओइसने अहम् के आन्हरनो के होला।सावन के आन्हर अउर अहम् के आन्हरन में एगो लमहर अंतर होला। अहम् के आन्हरन के खाली अपने सूझेला, आपन छोड़ि कुछ अउर ना सूझेला। ई बूझीं कि अहम् के आन्हर अगर सोवारथ में सउनाइल होखे त ओकर हाल ढेर बाउर…
Read Moreनयनवा से लोर झरे
हिया बेंधेले संवरिया के बाति नयनवाँ से लोर झरे ॥ जागल जबसे बा पहिली पिरितिया रहि – रहि उभरेले सँवरी सुरतिया मोहें निदिया न आई भर राति नयनवाँ से लोर झरे ॥ रहिया निरेखी बीतल दुपहरिया मन मुरुझाई जाय लखते दुवरिया बुला आई जाँय रतिओ – बिराती नयनवाँ से लोर झरे ॥ हुन टुन ननदी के गभिया सुनाला मुसुकी से ओकरा बोखार चढ़ि जाला उहो डाहेले सवतिया के भाँति नयनवाँ से लोर झरे ॥ हिया बेंधेले संवरिया के बाति नयनवाँ से लोर झरे ॥ जयशंकर…
Read Moreचुनरिया ए बालम
तिकवेले भरि भरि नजरिया ए बालम रंगब रउरे रंग मे चुनरिया ए बालम ॥ तोपले तोपाई न, लक़दक़ सेहरा करबे निबाह जब लागल इ लहरा निकलब जब तोहरी डहरिया ए बालम ॥ रंगब रउरे रंग मे चुनरिया ए बालम ॥ करके करेज सभ उजरल महलिया सून कई गउवाँ के साँकर गलिया चलि अइली तोहरी दुवरिया ए बालम ॥ रंगब रउरे रंग मे चुनरिया ए बालम ॥ खनका के कँगना उड़ी जाई सुगना अचके पसर जाई , लोर भरि अँगना बिछी जब ललकी सेजरिया ए बालम ॥ रंगब…
Read Moreपहुना भइल जिनगी
कब दरक गइल जियरा उधियाइल भिनुसहरा अब टोवत बेवाई सभे अहमक़ कहाई । साटल पेवना भइल जिनगी ॥ घाव बाटे जियतार टकटोरत बार बार उहाँ उजार खोरिया देखीं जवने ओरिया काँच खेलवना भइल जिनगी ॥ बड़की बिटिया सयान सभे उझिलत गियान दाना ला मोहताज कइसे चली राज काज ओद लगवना भइल जिनगी ॥ माँग बहोरि आंखि नम पायल बाजल छमाछम केहरो मन के खटास टूटि बिखरल बा आस बिसरल चूवना भइल जिनगी ॥ घरे खलिहा सिकउती इचिको नइखे बपउती कहवाँ बाटे चउपाल भर गउवाँ बा बेहाल…
Read Moreबिला रहल थाती के संवारत एगो यथार्थ परक कविता संग्रह “खरकत जमीन बजरत आसमान “
मनईन के समाज आउर समय के चाल के संगे- संगे कवि मन के भाव , पीड़ा , अवसाद आउर क्रोध के जब शब्दन मे बान्हेला , त उहे कविता बन जाला । आजु के समय मे जहवाँ दूनों बेरा के खइका जोगाड़ल पहाड़ भइल बा , उहवें साहित्य के रचल , उहो भोजपुरी साहित्य के ,बुझीं लोहा के रहिला के दांते से तूरे के लमहर कोशिस बा । जवने भोजपुरी भाषा के तथाकथित बुद्धिजीवी लोग सुनल भा बोलल ना चाहेला , उहवें भोजपुरी के कवि / लेखक के देखल ,…
Read Moreमाथे कS सिङार बाबूजी
बाटें भरि भरि के आपन दुलार बाबूजी । तोहीं हमनी के माथे कS सिङार बाबूजी ॥ सभके नियमित जगावें नेह बचवन पर लुटावें करें नेहिया के बारिस हर बार बाबूजी ॥ तोहीं हमनी के….. दरदिया सिरहीं उठावें हँसि बिहँसि के दुलरावें कइने दिन रात आपन निसार बाबूजी ॥ तोहीं हमनी के….. बीपत कइसनो लहरे उनके समने न ठहरे सहलें समय क मार , हर बार बाबूजी ॥ तोहीं हमनी के….. जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read More