अपने माई भाषा भोजपुरी में आजु कहानी के सिरजना करे वाली महिला लेखिका लो अंगुरी पर गिने भर बाड़ी। त अइसना में डॉ रजनी रंजन के बारे में ई कहल कि उ भोजपुरी साहित्य जगत में पहिचान के मोहताज नइखी, अतिशयोक्ति ना कहाई। डॉ रजनी रंजन भोजपुरी कि साहित्यिक मासिक पत्रिका भोजपुरी साहित्य सरिता के खोज बाड़ी आ उनुका लेखन के बीरवा एही पत्रिका संगही फरत फुलात आगु बढ़ल। एह कहानी संग्रह के सगरी पहिले से लोक में बाड़ी सन, काहें से कि कुल्हि पतरिकन में प्रकाशित हो चुकल बाड़ी…
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सुनीं ना अरज मोरे भइया हो
भोजपुरी कविता प जब बात होई त भोजपुर के भोजपुरी कविता प जरूर बात होई भा होखे के चाहीं। भोजपुर के जमीन भोजपुरी कविता खातिर काफी उपज के जमीन ह। भोजपुर के भोजपुरी कविता के एगो महत्वपूर्ण पक्ष ह ओकर जनधर्मी मिजाज। सत्ता से असहमति आ जन आ जन आंदोलन से सीधा संवाद। रमाकांत द्विवेदी रमता, विजेंद्र अनिल, दुर्गेंद्र अकारी एही जमीन के खास कवि हवें। कृष्ण कुमार निर्मोही के नांव भी एह जमीन से जुड़ल बा। एह बीचे जितेंद्र कुमार के भी कविता सोसल मीडिया प लगातार पढ़े के…
Read Moreखेलगीत के तर्ज प
‘तीन तलक्का’ नवगीत ओम धीरज जी के भोजपुरी गीत-संग्रह ‘रेता पड़ल हिया में’ में संकलित बा। ओम जी हिंदी आ भोजपुरी में गीत लेखन में सक्रिय बाड़न। ऊ उत्तर प्रदेश शासन के वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी रहलें। सेवामुक्त होके बनारस में रह रहल बाड़न। बचपन के खेलगीत ‘ओक्का बोक्का तीन तड़ोका’ के तर्ज प रचल एह गीत में ऊ का कहल चाहत बाड़न, बूझे के जरूरत बा। ध्यान देवे के बात बा कि एह में तीन गो खेलगीत बा। शुरू में ‘ओक्का-बोक्का’ बा आ आखिर में ‘अक्कड- बक्कड़’। बीच में दोसर…
Read Moreचन्द्रेश्वर के ‘हमार गाँव’: हमरो गाँव
भोजपुरिया माटी उहो गंगा के किनार के पलल बढ़ल हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.चन्द्रेश्वर के भोजपुरी के कथेतर गद्य ‘हमार गाँव’ पढ़ के लागल कि रोजी- रोटी के तलाश में शौक भा मजबूरी में भले गाँव छूट जाला ,देह से भले दूर चल जाला बाकिर मन में गाँव मुए ना,मन से ऊ गाँवे के रहेला। माटी से जुड़ल साहित्यकार चाहे भा ना चाहे ओकर साहित्य गाँव, माटी आ खेत के सौंध महक से सनाईल रहेला। एगो विशेष बात ‘हमार गाँव’ में चन्द्रेश्वर जी खाली गाँव -घर , टोला- परोसा,खेत –…
Read Moreमहेंदर मिसिर : गीत- संगीत के ढाल का संगे राज धरम निबाहे वाला मनई
पूरबी के कालजयी गीतन के लिखनिहार मने पूरबी के जनक, भोजपुरी के पहिलका महाकाव्य ‘अपूर्व रामायन’, प्रेम , विरह आ निरगुन गीतन के सिरजना करे वाला एगो अइसन मनई जे समाज आ देस के खातिर आपन सागरी जिनगी दाँव पर लगा देलस। जेकरा के आज भोजपुरी अस्मिता के प्रतीक का रूप में जानल- मानल जाला। बाकि ओकरा के ऊ अथान ना देहल जाला। बंगाल के सन्यासी विद्रोह के सहचर आ अंग्रेजन के राज क आर्थिक रूप से करिहाँय तूरे खातिर नोट छाप के सगरे सरकारी तंत्र के चूल्ह हिलावे वाले…
Read Moreगाँव आ गँवई नारी के हालत क पोढ़ लेखा-जोखा- “के हवन लछुमन मास्टर”
यथार्थ के खुरदुरा जमीन पर आम आदमी के जूझत जिनगी के जियतार बखान लीहले भोजपुरी के सुप्रसिद्ध कथाकार श्री कृष्ण कुमार जी के भोजपुरी क पहिलका उपन्यास आजु के समाज के आधी आबादी जेकर चरचा हर ओरी बा, बेटी पढ़ावों, बेटी बचाओ, के नारा लग रहल बा, “के हवन लछुमन मास्टर” के रूप मे हमनी सभे के सोझा बा । उपन्यास आपन शिल्पगत विशेषता आउर तथ्य आ कथ्य के संगे जिनगी के जवन ब्याख्या देवेला, उ जियतार होला आ समाज खाति एगो अन्हरिया मे टिमटिमात दियरी लेखा सहारा बनेला। ई…
Read Moreबिला रहल थाती के संवारत एगो यथार्थ परक कविता संग्रह “खरकत जमीन बजरत आसमान “
मनईन के समाज आउर समय के चाल के संगे- संगे कवि मन के भाव , पीड़ा , अवसाद आउर क्रोध के जब शब्दन मे बान्हेला , त उहे कविता बन जाला । आजु के समय मे जहवाँ दूनों बेरा के खइका जोगाड़ल पहाड़ भइल बा , उहवें साहित्य के रचल , उहो भोजपुरी साहित्य के ,बुझीं लोहा के रहिला के दांते से तूरे के लमहर कोशिस बा । जवने भोजपुरी भाषा के तथाकथित बुद्धिजीवी लोग सुनल भा बोलल ना चाहेला , उहवें भोजपुरी के कवि / लेखक के देखल ,…
Read Moreऑक्सीजन से भरपूर ‘पीपर के पतई’
कहल जाला कि प्रकृति सबके कुछ-ना-कुछ गुण देले आ जब ऊहे गुण धरम बन जाला त लोग खातिर आदर्श गढ़े लागेला। बात साहित्य के कइल जाव त ई धरम के बात अउरी साफ हो जाला। ‘स्वांतः सुखाय’ के अंतर में जबले साहित्यकार के साहित्य में लोक-कल्याण के भाव ना भरल रही, तबले ऊ साहित्य खाली कागज के गँठरी होला। बात ई बा कि अबहीने भोजपुरी कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के पहिलकी कविता के किताब ‘पीपर के पतई’ आइल ह। ई किताब कवि के पहिलकी प्रकाशित कृति बा बाकिर ऊहाँ…
Read Moreलोक संस्कृति के अजब नजीर – जबरी पहुना भइल जिनगी
भोजपुरी भाषा आज देश दुनिया में आपन परचम लहरावे मे काफी आगे बा। एह करी में रोज नया-नया लेखक लोग के कविता आ कहानी के संकलन खूब बाजार में पाठक खातिर आवता। हाल फिलहाल में भोजपुरी के लेखक मंच पर एगो नया नाम उभरल ह जोकर नाम ह- जे.पी. दिवेदी। दिवेदी जी के ई खासियत बा कि उहां के ठेठ भोजपुरी में ही कविता आ कहानी लिखेनी।इनकर पिछला साल एगो कवित संगरह पीपर के पतई आइल रहे ओकरा बाद एह साल के शुरु में आइल ह- जबरी पहुना भइल जिनगी।ई…
Read Moreहर रंग में रंगाइल : ‘फगुआ के पहरा’
एगो किताब के भूमिका में रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ऊर्फ जुगानी भाई लिखले बाड़े कि ‘भाषा आ भोजन के सवाल एक-दोसरा से हमेशा जुड़ल रहेला। जवने जगही क भाषा गरीब हो जाले, अपनहीं लोग के आँखि में हीन हो जाले, ओह क लोग हीन आ गरीब हो जालंऽ।’ ओही के झरोखा से देखत आज बड़ा सीना चकराऽ के कहल जा सकत बा कि भोजपुरी समृद्ध बा, भोजपुरिया मनई समृद्ध बा। हमरा ई बात कहला के बहाना श्रेष्ठ शिक्षक, सुलझल मनई आ सरस मन के मालिक कवि-साहित्यकार डाॅ. रामरक्षा मिश्र विमल जी के किताब ‘फगुआ के पहरा’ बा। एह किताब के…
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