साहित्य के चउखट पर ठाढ़ ऊँट कवने करवट बइठ जाई , आज के जमाना मे बूझल तनि टेंढ ह । कब के टोनहिन नीयर भुनभुनाए लागी आ कब के टोटका मार के पराय जाई ,पते ना चले । आजु के जिनगी मे कवनों बात के ठीहा ठेकाना दमगर देखाई देही , भरोष से कहलों ना जा सके । एगो समय रहे जब मनई समूह मे रहत रहे , अलग समूह – अलग भाषा –बोली , रीत – नित सभे कुछ कबीला के हिसाब से रहे । ओह कबीलन मे अपने…
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भोजपुरी में मानकीकरण के जरूरत … कतना व्यवहारिक ?
साहित्य के साँच आ संवेदनसील मानके सिरजना के राहि डेग बढ़ावल सुखकर होला। मने एगो अइसन प्रेरक तत्व जवना के प्राण तत्व मान के सृजन के समाज खाति एगो आइना का रूप में परोसला के सुघर दीठि आ संकल्पना का संगे सोझा ले आवे खाति प्रतिबद्धता के एगो मानक मानल जाला। अइसन सृजन अपना भीतरि ऐतिहासिकता के बिम्ब जोगावत आगु बढ़त देखला। अझुरहट आ बीपत का बीच साहित्य एगो नीमन व्यवस्था देस आ समाज का सोझा राखेला। अगर व्यवस्था एकरूपता का संगे सोझा आवेले त ओकरा के बूझल आ बूझलका…
Read Moreसाहित्यकार के माने-मतलब
साहित्य एगो अइसन शब्द ह जवना के लिखित आ मौखिक रूप में बोले जाये वाली बतियन के देस आ समाज के हित खाति उपयोग कइल जाला। ई कल्पना आ सोच-विचार के रचनात्मक भाव-भूमि देवेला। साहित्य सिरजे वाले लोगन के साहित्यकार कहल जाला आ समाज आ देस अइसन लोगन के बड़ सम्मान के दीठि से देखबो करेला। समय के संगे एहु में झोल-झाल लउके लागल बा। बाकि एह घरी कुछ साहित्यकार लो एगो फैसन के गिरफ्त में अझुरा गइल बाड़न। एह फैसन के असर साहित्यिक क्षेत्र में ढेर गहिराह बले भइल…
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