कजरी

भर सावन मोहे तरसइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना। कवना सउतिन में अझुरइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।   खेतवा फाटे अस फटे बेवइया बेहन सूखत जइसे मुदइया काहें असवों नाहीं अइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।   कइसे जीहें चिरई-चुरमुन बबुआ चलिहें कइसे ढुनमुन ई बुझियो ना सरमइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।   मचल बाटे हाहाकार अवता लेता सभे उबार कवना बातिन से कोहनइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।   तोहू भइला जस विकास तूरला किसानन के आस जनता फेरा में फंसइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।  …

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भुला गइला का..!

बम्बई नगरिया,मोहा गइला का। नाहीं अइला बदरवा,भुला गइला का।। तलवा तलइया कै फाट गइलैं सीना, खेतवा टिबुलिया के छूटल पसीना, गउवांं से लागे, अघा गइला का। नाहीं अइला बदरवा,भुला गइला का।। डहके गगनवां अ सिसके धरतिया, सुलगे सिवनवां न आवे ले बतिया, कउनो गलइचा, ओंघा गइला का। नाहीं अइला बदरवा,भुला गइला का।। धुरिया उड़ावे ला पापी पवनवा, गउवां के देवता कै जरेला सपनवां, बतिया प कउनो, कोंहा गइला का। नाहीं अइला बदरवा,भुला गइला का।। तउवा प जइसे, छनकेला पानी, वइसे भइल ‘लाल’ सबकर कहानी, चार बूंद चुयि के, हेरा गइला…

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कजरी बिना सावनी बहार के

नीक लागे नाहीं सावन क महीनवां ना। दिनवां धूप बरियार रतिया गरम बयार, बिस्तर भींजे तर तर चुवेला पसीनवां ना।।नीक0— नइखीं बदरा देखात लउके निर्मल आकाश, चंदा केलि करे पसरी गगनवां ना।।नीक0– बहे झोरि पुरवाई, रहिया धूर उधिराई, पानी बिना सून खेत ख़रिहनवां ना।।नीक0– आइल सावनी सोमार धूप बाटे बेशुमार, ब्रत मा सुखल जाला पानी बिनु परनवाँ ना।।नीक0— नाहीं कोइलर क शोर सपना दादुर पपिहा मोर, ओरिया चुवल नाही कबहुँ अगनवां ना।।नीक0— छाँह नइखे छतनार सूनी निमियाँ के डार, कतहुँ परे नाहीं बाग में झुलनवां ना।।नीक0— काशी कन कन में…

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कजरी

असों बरखा ना भईल बरसात में , दिन चाहे रात में ना ।। बितल सूखले आषाढ़, घाम होखता प्रगाढ़ अगिया लागि गइल बा कूल्हिए जजात में दिन चाहे रात में ना।। बरिसल तनिको नाहीं अदरा , भींजल एको दिन ना चदरा जिनिगी आके फँसल बिया झंझावात में … दिन चाहे रात में ना ।। बिया धान कऽ सुखाइल , खेत इचिको ना रोपाइल सभे रहऽता किसानन संगे घात में.. ।। सुखले बीतत बाटे सावन , लागत बाटे भकसावन पनिया फेर दिहलस कूल्हि जज़्बात में …. जिनिगी कइसे अब ढोआई ,…

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गीत

खेतवा जोतात बा फरहरी बरिसत केनियो ना बदरी लागsता सुखार परी अबरी करजा कँपावताटे हड़री ! गरजत तड़पत कबो कबो आवत चमकत दमकत भागताटे धावत घामावा उगत बाटे चमवा जरावत सुबहे में लागsता दुपहरी ! ट्रेक्टर रोटोबेटर खेतवन के जोते घास पात साफ करे मटिये में गोते पूख असरेषावा प असरा बा लागल लगिहें लेवाड़ तबे सगरी ! सगरो सुनाता बाढ़ कइले बा तबाही शहर पहाड़ प मचल धावाधाही धनवा रोपेके जहाँ ताव बाटे बिगड़त ताके आसमान गाँव नगरी ! असरा उमेद प बीतल सँउसे जिनगी करजे आभाव में मिलल…

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गंगा महिमा

गंगा के महिमा दुनिया में, सबसे बड़ा अनमोल हगंगा में जे डूबकी लगावे,पाप ओकर सब गोल हगंगा के महिमा…….. मोक्ष देवे के खातिर गंगा, लेले  बारी अवतारपर परदूषण से दुखी बारी, देख तनी विचारअमरित जस गंगा जल में,कचरा के मिलत घोल हगंगा के महिमा…….. धरती पर जब अइली मईया,मोक्ष के खुलल दुआरभागिरथ के सब पुरखन के, तब रहे भइल उद्धारगंगा के जे मईया ना बुझे, बुझ उ बकलोल हगंगा के महिमा…….. रीति रिवाज के नाम पे गंगा, मैली हो गइल बारीआज बाट जोहत बारी लाल के,आके हमके संवारीभागिरथ फेर से आव धरा पर,मईया…

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रोवतारी माई

सखी सहेली खड़ा,बाड़ी कतार में, रोवतारी माई , धके अकवार में। नईहर छोड़ी जब, ससुरा में जाली, फेड़ से लागे जस ,टूट गइल डाली। बरसो के रिश्ता, तोड़ी एक बार में.. रोवतारी माई , धके अकवार में। सुसुकी-सुसुकी माई,लोर बहावेली, बेरी,बेरी बेटी जरी,घूमी के आवेली। भरे ना जियरा ,मिले से एक बार में.. रोवतारी माई , धके अकवार में। हो तारू बेटी आज, हमसे पराया, जा तारू जहाँ तू, करिह हो छाया। खुशीया भरल रहे, घर संसार में.. रोवतारी माई , धके अकवार में। दीपक तिवारी श्रीकरपुर,सिवान

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ए बदरी

सुखि गइलें पोखरा आ जर गइलें टपरी , ए बदरी । कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी । देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी । बनरा के पेट पीठ एक भइलें घानी । कहा काहें होत बाटे राम मनमानी । गोरुअन के बेटवा क पेटवा ह खपरी , ए बदरी । कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी । देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी । संझवा बिहनवा में कमवा न सपरी । होते दुपहरिया भुजाई जालीं मछरी । नदिया में अगिया लगाई देलु जबरी , ए बदरी ।…

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समइये गुरु ह समइये ह चेला

समइये गुरु ह समइये ह चेला समझ नाहीं आवे समइया के खेला । लहर जाला झंडा केहु के अकासे केहु हाथ मल के रहेला उदासे समइये घुमावेला सुख दुख के मेला समझ नाहीं आवे समइया के खेला । बिना मंगले देबेला बड़का खजाना मंगला पर मिले न चाउर के दाना कहां केहु के कुछो वश में रहेला समझ नाहीं आवे समइया के खेला । आदमी के कुक्कुर नियन दुरदुरावे समइये ह कुक्कुर के आदमी बनावे समय पर समइये परीक्षा भी लेला समझ नाहीं आवे समइया के खेला । करम आ…

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गीत

हो घेरलस करिया बदरिया, रोपनी के सुतार आ गईल। बहे लागल पुरवा बयरिया, हमनी के बहार आ गईल। जइसे उड़े सड़िया अचरिया, गछियन के लहार आ गईल। रोपे चलस गोरिया संवरिया, पायलन के झंकार आ गईल। झमर झमर बरसे बुनरिया, छातवो में फुहार आ गईल। कड़कड़ाए चमके बिजुरिया, लुकाएके ओहार आ गईल। गावे के गीतवा कजरिया, मनवा में हमार आ गईल। संतोष कुमार, नरकटियागंज, पश्चिमी चंपारण, बिहार।

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