फागुन फाग मचावै

ओढ़ि बसंती चुनरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। गम गम गमके नगरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–   फिकिर कहाँ फागुनी रंग के बनल बनावल अंग अंग के देखत झूमत डगरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–   चढ़ल खुमार इहाँ अनंग के दरस परस आ साथ संग के मातल बहलीं बयरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–   सहज सुनावत सभ ढंग के होरी में कब भइल तंग के बहके लागल नजरिया गुजरिया फागुन फाग मचावै। ओढ़ि —–   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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मतदान त अधिकार हउवे

भइया जगला के हवे दरकार मतदान त अधिकार हउवै॥2॥   अफवाहन के दूर हटा के आपन बुद्दि विवेक जगा के तहरा वोटS बनाई सरकार , मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥  भइया…   छोड़ के सगरे काम चलS के लोकतंत्र के धाम चलS के जइते होखी परब गुलजार, मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥ भइया…   हित-मीत सबसे बतिया के आस-पड़ोस सभै गोलिया के देखिहा वोटवा न हो बैपार, मतदान त अधिकार हउवै॥ 2॥ भइया…   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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राम मेरे

अब गूँज रहल तेरो नाम, राम मेरे गलियन में। राम मेरे गलियन में, हो राम मेरे गलियन में।। अब गूँज रहल तेरो नाम, राम मेरे गलियन में।।   बरीस पाँच सौ बीतल बहरा उहवाँ रहल दुसमन के पहरा अब नइखे कुछो गुमनाम, राम मेरे गलियन में। अब गूँज रहल तेरो नाम, राम मेरे गलियन में।।   आपन घर अपनन के रगरा बेगर बात में फानल झगरा भइल ओकरो काम-तमाम, राम मेरे गलियन में। अब गूँज रहल तेरो नाम, राम मेरे गलियन में।।   छंटल तम भइल उजियारा अजोधिया जी अब…

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गीत

सजि रहे तोरण द्वार, राम मोरे आई रहे आई रहे , मुसकाई रहे, कि सजि रहे तोरण द्वार, राम मोरे आई रहे।   कटल तम के अन्हियारी रतिया सभके हिय उनही के बतिया। दुअरे लागल कतार, राम मोरे आई रहे। कि सजि रहे तोरण द्वार, राम मोरे आई रहे।   ई बनवास कई सदियन के बा इतिहास नेकी बदियन के। अब गावहुँ मंगलचार राम मोरे आई रहे। कि सजि रहे तोरण द्वार, राम मोरे आई रहे।   दियरी जराई साजो दुअरिया मह मह महकत सगरी कियरिया। चहुंदिसि जय -जयकार, राम…

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गीत

अबकी नवरतिया मइया करतु एगो जुगतिया हो मइया मोरी करतु एगो जुगतिया कि छोड़ि हो देतु ना, अपने बब्बर सेरवा के मइया, छोड़ि हो देतु ना।   छोड़तु त भले करतु आपन बब्बर सेरवा हो मइया मोरी आपन बब्बर सेरवा बाक़िर छोड़तु ओकरा ना, जयचंदवन के पिछवा मइया छोड़तु ओकरा ना। गद्दरवन के पिछवा मइया छोड़तु ओकरा ना।   छोड़तु त भले करतु आपन बब्बर सेरवा हो मइया मोरी आपन बब्बर सेरवा बाक़िर छोड़तु ओकरा ना, मंहगइया के पिछवा मइया छोड़तु ओकरा ना। बेरोजगरिया के पिछवा मइया छोड़तु ओकरा ना।…

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सुघर भूमि भारत

जहवाँ माई अँगने सुगना दुलारत सुघर भूमि भारत।   तीन ओरियाँ सिंधु, एक ओर ह हिमालय कन-कन में राम, गाँव-गाँव में शिवालय उहवें के ऊंच भाल दुनियाँ निहारत सुघर भूमि भारत।   मसजिद अजान, गुरुद्वारे गुरु बानी चर्च में बा प्रार्थना, बनता कहानी दुसुमन के दीठी पठावेला गारत सुघर भूमि भारत।   भोरहीं से पवना के जहवाँ मलय राग उहवें भेंटाला कामिनी के बिरह आग सुघरई के कामदेव उहें उघारत सुघर भूमि भारत।   गंगा जमुना नर्मदा अपने रवानी उर्वर भूमि खातिर खूब देलीं पानी अन्न उपजाई धरा सभे के…

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अगिन बरिसे

सावनों में दंवके सिवनवाँ अँगनवाँ मोरे, अगिन बरिसे। नीलहा अकसवा के बदरा रिगावे दिनवाँ में देहियाँ के लवरि जरावे सुसकेला खेतवा किसनवाँ अँगनवां ——– बिंयड़ा में धनवा क बियओ झुराइल पहिले जे रोपल,रोपलो मरुआइल बिरथा बा असवों रोपनवाँ अँगनवां————- कइसे कहीं अब हुंड़रा के धवरल रसते में गोजर बिच्छी के पँवरल फुँफकारे किरवा क फनवाँ अँगनवां ——–   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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गीत

झऊँसत बा देंहि सगरो झऊँसत बा मनवाँ करीं त का करीं। जरे धरती असमनवाँ सजनवा का करीं ।। गुम सुम भइल नाहीं बहेला पवनवाँ। छितरी प छितरी छूटे उग बुग मनवाँ।। बेनिया डोलावत चुनुकल हाथे के कङनवाँ सजनवा का करीं ।। दिनवाँ कटेला कइसो कटे नाहीं रतिया। अन्हारे धुन्हारे होला बहुते ससतिया।। छतवा तवेला अउसे घरवा अङनवाँ सजनवा का करीं।। धान के बेहन सूखल, खेत ना जोताइल। होला धूरिबावग लोग बाटे अगुताइल।। परल छितराह बहुते मिलें नाहीं जनवाँ सजनवा का करीं।। माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)

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कजरी

अबके बाँव न जाई सावन साँवरिया बदरिया भले कतिनो बरिसे।   चाहे झिर झिर परिहें बूनी भीजे डहुंगी तर के चूनी सजना जाई उहवें देखि भरि नजरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   चाहे कउंचे साँवर गोरी इचिको तके न हमरे ओरी अइबै ओढ़ावे बदै धानी चुनरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   भउजी टुप टुप ताना मरिहें भलहीं कोसिस निफल करिहें अबके मिली उनुके सुनइबै कजरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   भले कंठ रही अनबोलले रयनि बैरिन पट के खोलले अबके साजन गोरी भेटी अंकवरिया । बदरिया भले कतिनो बरिसे।  …

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गीत

रूठल रूठल बदरवा मनाई कइसे। गाई रगिया मल्हरवा सुनाई कइसे ।।   उत्तर में बदरा हाथ जोड़ी लिहले, पछुवा बेयरिया गजब कई दिहले, भारी गरमी से जियरा जियाई कइसे ।।रूठल…..   आजु रथ जतरा में रथवा खिंचाइल, कुछ कुछ बदरिया अकासे रहल छाइल, इचिको बरसल ना बदरा नहाई कइसे ।।रूठल…..   रउवा त ठीक भइली पीही कढवा, लुहिया सहत पूरा बीतल अषढ़वा, अब जिनगी के रथवा खिंचाई कइसे ।।रूठल……   बाबा जगन्नाथ भेजी पूरब से पनियां, ‘लाल’ रोवे घरवा रोवत बानी धनियां, राउर भगतन के दुखड़ा बताई कइसे ।।रूठल……  …

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