गयल गाँव जहाँ गोंड़ महाजन

का कहीं महाराज , समय के चकरी अइसन घूमरी लीहले बा कि बड़ बड़ जाने मे मुड़ी पिरा रहल बा । जेहर देखी ओहरे लोग आपन आपन मुड़ी झारत कुछहु उलटी क रहल बा । उल्टी करत बेरा न त ओकरे जगह के धियान रहत बा , न समय के धियान रहत बा । एतना लमहर ढंग से आत्ममुग्धता के शिकार भइल बा कि पूछीं मति । ‘अहं ब्रह्मास्मि’ के जाप मे जुटल फेसबुकिया बीर बहादुर लो अपने आगा केहू के कुछहू बुझबे ना करे, फेर चाहे समने केहू होखो…

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बउरहिया

” ए अम्मा जी उर्दी छुआए जात ह गांई जा लोग।” लइका क माई अम्मा लोगन के होस धरवलीं कि उ लोग काहें खातिर बोलावल गईल हईं जा।अम्मा लोग कढ़वलीं – ‘ जौं मैं जनतीं गनेस बाबा अइहन, लीपि डरतीं अंगना दुआर चनन छिड़कतीं ओही देव घरवा चनन क सुन्नर सुबास जौं मैं जनतीं सीतला मइया अइहन लीपि डरतीं अँगना दुआर।’ गीत कढ़ावे वाली बड़की आजी ढ़ेर बूढ़ा गइल रहलीं।चारे-पाँच लाइन गावे में हफरी छोड़े लगलीं।एक जानी क सांस फूले लागल अउर दम्मा के मरीज नियन खांसे लगलीं। “अरे काहें…

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हम भोजपुरिया साहित्यकार बानी आ तू ……?

का जमाना आ गयो भाया , जेहर देखा ओहरे मचमच हो रहल बा । सभके त भोजपुरिया साहित्यकार कहाये के निसा कपारे चढ़ के तांडव क रहल बा । 56 इंची वाला एह लोगन देखते डेरा गइल बा , एही से दिल्ली छोड़ के गुजरात भागल बा । मने हेतना बड़का , जे केकरो सुनबे न करे । दुवरे बइठल भगेलुवा के बड़बड़ाइल सुनके सोझवे से गुजरत सोमारू के ना रह गइल , त उहो हाँ मे हाँ मिलावे ला उहवें ठाढ़ हो के बतकुचन मे अझुरा गइने । का…

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हारब त हारब बाकिर तोहरा के जीते ना देब

हिन्दुवन के कमजोरी ह कि ऊ जीव हत्या पसन्द ना करसु. इहां ले कि जे मांसभक्षी होला उहो अपना सोझा काटल पसन्द ना करे. जे काटेला ऊ झटका में काटेला कि कटाएवाला के कम से कम कष्ट होखे. दुनिया के सगरी नीति नैतिकता पोसे पकावे वाला हिन्दू के इहो याद ना रहे कि जब-जब ऊ कमजोर पड़ल बा, जहाँ-जहाँ ऊ गिनिती में घटल बा ओहिजा से ओकर विदाई, ओकर खात्मा हो गइल बा. एही कश्मीर में लाउडस्पीकर से एलान क के पंडितन के भगावल गइल आ ओकरा बेटी-बहिन के ओहिजे…

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बतकूचन

का कबो सुनले बा केहू जे कवनो जियतार देह, माने कवनो देही, आपन मन में सहेजल अनुभव के अनेरिये जियान होखे देले ? ना ! काहें जे, अइसना अनुभवे के बल आ बिस्तार प कवनो मनई आपन तर्क गढ़ेला। आपन बात के मर्म जता सकेला। आपन अर्जित अनुभवे के सान प केहू के विवेक प पानी चढ़ेला। कवनो मनई के विवेक के आगा फेरु ओकर आपन शिक्षा सहेजेले। शिक्षा माने ग्यान आ बिचार में गठन के तरीका। एही कारन, निकहा शिक्षित मनई के अपना अर्जित अनुभव आ ओह अनुभव के…

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आईं, गुलरी के फूल देखीं नु….?

ढेर चहकत रहने ह  कि रामराज आई , हर ओरी खुसिए लहराई । आपन राज होखी , धरम करम के बढ़न्ती होई , सभे चैन से कमाई-खाई । केहू कहीं ना जहर खाई भा फंसरी लगाके मुई । केहू कबों भूखले पेट सुतत ना भेंटाई । कुल्हि हाथन के काम मिली , सड़की के किनारे फुटपाथो पर केहू सुतल ना भेंटाई , मने सभके मुंडी पर छाजन । दुवरे मचिया पर बइठल सोचत-सोचत कब आँख लाग गइल, पते ना चलल ।  “कहाँ बानी जी” के पाछे से करकस आवाज आइल,…

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ए बाबू ! सपना सपने रहि जाई

का जमाना आ गयो भाया, अब त उहो परहेज करत देखाये लागल जे रिरियात घूमत रहल। आजु के समय में जब हिंदिये के ओकत दोयम दरजा के हो चुकल बाटे, त अइसन लोगन के का ओकत मानल जाव। हिंदियों वाला लो अपना बेटा-बेटी के अंगरेजी ईस्कूल में पढ़ावल आपन शान बुझता काहें से कि ओहू लोगन के नीमन से बुझा चुकल बा कि हिन्दी से रोजी-रोटी के गराण्टी भेंटाइल मोसकिल बा। हिन्दी के लेके जवन सपना रहे, उ ई रहे कि ई अङ्ग्रेज़ी के स्थान पर काबिज होई। बाकि अइसन…

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आपन ढेंढर भूलि दोसरा के फुल्ली निहारे के फैसन

का जमाना आ गयो भाया, एगो नया फैसन बजार में पँवरत लउकत बा, ढेर लो ओह फैसन ला पगलाइल बा। उचक के ओह फैसन के लपके खाति कुछ लोगन के कुटकी काट रहल बा। एह फैसन के फेरा में हर जमात के कुछ न कुछ लोग लपके ला लाइन लगवले देखात बा। कुछ लो लपकियो चुकल बा। एह फैसनवा के लपकते लोगन के चरचा होखे लागत बा। मने मुफ़ुत में टी आर पी के कवायद। ई कुछ चिल्लर टाइप के लो बा भा रउवा चिरकुट टाइप बूझ सकेनी, एह फैसन…

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अहम् के आन्हर सोवारथ में सउनाइल

का जमाना आ गयो भाया, आन्हरन के जनसंख्या में बढ़न्ति त सुरसा लेखा हो रहल बा। लइकइयाँ में सुनले रहनी कि सावन के आन्हर होलें आ आन्हर होते ओहन के कुल्हि हरियरे हरियर लउके लागेला। मने वर्णांधता के सिकार हो जालें सन। बुझता कुछ-कुछ ओइसने अहम् के आन्हरनो के होला।सावन के आन्हर अउर अहम् के आन्हरन में एगो लमहर अंतर होला। अहम् के आन्हरन के खाली अपने सूझेला, आपन छोड़ि कुछ अउर ना सूझेला। ई बूझीं कि अहम् के आन्हर अगर सोवारथ में सउनाइल होखे त ओकर हाल ढेर बाउर…

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अनुवाद के बाद के माने-मतलब

का जमाना आ गयो भाया। कुछ दिन से में/से के चकरी घूमे शुरू भइल बा। बाक़िर ई चकरिया के घूमलो में कुछ खासे बा। जवन आजु ले मनराखनो पांड़े के ना लउकल। ढेर लोग कहेलन कि अइसन कुल्हि काम पर मनराखन पांड़े के दिठी हमेशा जमले रहेले। अब मनराखनो बेचारे करें त का करें। उनका के आजु ले ई ना बुझाइल कि भोजपुरी में बयार मनई आ गोल-बथान देखि के बहेले। एक्के गोल में कई सब-गोल बाड़ी स, ओहिजो हावा के गति परिभाषा के संगे बहेले। जहवाँ एक गोल के…

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