‘भोजपुरी भाषा के प्रमाणिक रूप’, ‘भोजपुरी भाषा के एकरंगी रूप’, भोजपुरी भाषा के मानकीकरण के आवश्यकता’ जइसन विषय पर समय समय पर विद्वावनन के विचार आइल। भोजपुरी के मानक रूप के तैयार करे के प्रयास लगातार चल रहल बा। कहे के ना होई कि भोजपुरी साहित्य के सृजन सिद्व आ नाथ पंथ, कबीर पंथी, भगताही आ सरभंग सम्प्रदाय के संत भक्त कवियन के ‘बानी’ से शुरू भइल। बाकिर साहित्यिक रूप में भोजपुरी भाषा के निर्माण पिछला 100 साल से हो रहल बा। जब भोजपुरी साहित्य के निर्माण शुरू भइल तब…
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‘कउने नरेसवा क देसवा उजरि गइले…’
आजु रामजियावन दास ‘बावला’ जी के जयंती हऽ। ‘बावला’ जी, लोकमन के कवि रहलें। कुछ विद्वान लोग उहाँ के ‘भोजपुरी के तुलसीदास’ कहले बा। बाकिर हम उहाँ के तुलना कवनो दोसर कवि से ना करऽब। ‘बावला’ जी के कवनो प्रतिमान नइखे हो सकऽत। कवनो पैमाना भा कसउटी पऽ उहाँ के नइखे तउलऽल जा सकऽत। काहें कि उनका जइसन केहु भइले नइखे। उहाँ के तुलना, उहाँ से ही हो सकऽता। ‘बावला’ जी से पहिला भेंट हमके इयाद बा। पर, पहिलका छवि हमरे मन में कइसन अंकित भइल? सहजमना। सोझ। गँवई औदार्य…
Read Moreएगो मनसायन
[नमन भर से काम ना चली।पढ़ीं -जानीं -सोचीं सभे अपने पुरखन के बारे में] भोजपुरी कवि विचित्र जी ,मुँहदुब्बर जी आ मुखिया जी के इयाद करत ~~~~~~~~□□~~~~~~~~~~~~~ भोजपुरी के स्वनामधन्य कवि स्व.कुबेर मिश्र ‘विचित्र ‘ जी आ राघवशरण मिश्र ‘मुँहदुब्बर’ जी ओह बेरा भोजपुरी कवि- मंचन के जान-परान रहनीं।मुँहदुब्बर जी आ विचित्र जी ई दूनू जने जब एक मंच पर जुट जाईं तब फेर पूछहीं के का रहे! हमरा इयाद बा छपरा नगरपालिका मैदान में ‘तुलसी पर्व’ के आयोजन में हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी आ केदारनाथ…
Read Moreभोजपुरी कविता के राह में युवा कवि गुलरेज के ‘धाह’
भोजपुरी के युवा पीढ़ी के कविता में ताजगी त बड़ले बा बाकिर ओमें जवन उबाल आ आक्रोश के अभिव्यक्ति बा ओकरो में तल्खी ले जादे तथ्य आ समझदारी के प्रधानता बा।ई पीढ़ीअपना असंतोष,खीस आ नाराजगी के अपना संघर्ष,प्रतिरोध आ तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति के जरिए मुखर करे के जानेले।गुलरेज शहजाद एह पीढ़ी के एगो महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बाड़न। भोजपुरी कविता के दूनू रूप- प्रबंध आ मुक्तक काव्य में अपना प्रतिभा के लोहा मनवा देबेवाला कवि आज मौजूद बाड़ें।एह पीढ़ी में सुशांत कुमार शर्मा जइसन प्रबंध काव्य के रचयिता कवि अगर बाड़ें त अक्षय…
Read Moreभोजपुरी समीक्षा के संकट
भोजपुरी के साहित्यिक इतिहास मोटामोटी डेढ़ सौ साल के पूरा होखे जा रहल बा. एह में सब विधा के रचना भइल, बाकिर समीक्षा के लेके कुछ विचार हमरा सामने उठ रहल बा. किताबन के समीक्षा के नांव पर ओकर परिचय लिखे आ छापे के काम भोजपुरी आ हिंदी के अखबारन के संगे-संगे पत्रिकन में भी लगभग आठ-दस दशक से चल रहल बा. बाकिर भोजपुरी में समीक्षा के विधात्मक स्वरुप अबे साफ नइखे भइल. समीक्षा आ आलोचना के एके मान के चलल ठीक नइखे. दुनो के भेद जानल जरुरी बा. किताबन…
Read Moreगाँव आ गोधन पूजा
असों सुजोग से देवारी पर हम गाँवे बानी। त ढेर कुछ भुलल–बिसरल मन परल।ओही में से एगो गोवर्धन पूजो बा। देवारी के एक दिन बाद भोजपुरिया समाज में गोवर्धन पूजा जवना के गोधना कहल जाला, बड़ सरधा का संगे मनावल जाला। आजु के गाँवन से सामुहिकता त बिला रहल बा, बाक़िर अबो ढेर कुछ बाचल बा। पहिले एक टोला में एगो गोधन बाबा बनावल जात रहलें आ पूजात रहलें। मय टोला के लइकी, मेहरारू लो जुटत रहे आ अपना-अपना भाई लोग सरापत रहे।अब कई जगह गोधन बने लागल बाड़न बाक़िर…
Read Moreभोजपुरी कविता के अतीत आ वर्तमान
भोजपुरी कविताई के सुरूआती दौर भोजपुरी कविता के प्रारम्भिक दौर के पड़ताल करत खा हमरा सोझा ओकर तीन गो रूप आवत बा – एगो बा सिद्ध, नाथ आ सन्त कबियन क रचल, दूसर लोकजिह्वा आ कंठ से जनमल, हजारन मील ले पहुँचल, मरम छुवे आ बिभोर करे वाला लोकगीतन के थाती आ तिसरका भोजपुरी के सैकड़न परिचित-अपरिचित छपल-अनछपल कबियन क सिरजल कविताई. साँच पूछीं त भोजपुरी कबिता सुरूए से लोकभाषा आ जीवन के कविता रहल बा. एही से ओमें सहजता आ जीवंतता बा. भोजपुड़ी कविता का अतीत के देखला से…
Read Moreकजली मंजू मल्हार
भोजपुरी लोक में तरह-तरह के गीतन के विधा बा। एहि लोक के कंठ में रचल-बसल एगो विधा के नांव बा कजली अथवा कजरी। भोजपुरी लोक जीवन खेती बारी प आधारित बेवस्था ह, आ खेतीबारी के चक्र आधारित बा मौसम बा रितुअन प। सुरूज़ जब उत्तरायन होखला के बाद आपन ताप से एह क्षेत्र के दहकावत रहेले त मानव से ले के हर जीव जन्तु के मन में इहे रहेला कि कब आसाढ़ के महीना आवे आ सुरूज़ के ताप कम होखे। कब बरखा के फुहार से कब धरती सराबोर होखस,…
Read Moreसावन मास पावन आ मनभावन
सावन शिव के मास ह।पूरा लोक शिवमय हो जाला सावन में। चहुंओर बोल-बम, हर-हर महादेव के गूंज वातावरण में गूंजत रहेला। प्रकृति पार्थिव शिव पर जलाभिषेक करे खातिर बारिश के रूप में बरिसत रहेला।सावन चढ़ते हवा आपन रूख बदल देला। धूप आपन ताप प्रभाव कम कर देला। वातावरण में धूल उड़ल बंद हो जाला।सूखल जलाशय पनिया – पनिया हो जाला।धरती के पियास बुझा जाला। चहुंओर हरियरी दिखाई पड़े लागला। जंगल मनोहारी हो जाला। मोर नाचे लागेला।मनई के मन ई देख कइसे नियंत्रित रहित।सावन आवते झूम उठेला। कहीं कजरी सुनाला त…
Read Moreआइल चइत उतपतिया हो रामा!
चइत के उतपाती महीना मस्ती के आलम लेले आ धमकल बा। कली-फूल के खिलावे के बहाना से बसंत अपना जोबन के गमक फइलावत चलल जा रहल बा। आम के मोजर में टिकोढ़ा लागि गइल बा आ सउंसे अमराई में टप-टप मधुरस टपकि रहल बा। कोइलरि के कुहू-कुहू के कूक माहौल में एगो अनूठा मोहक रस घोरत बा। अइसना मदमस्त महीना में जदी मन के सपनन के सजीला राजकुमार परदेस के रोटी कमाए चलि गइल होखे, त बिरहिन हमजोली के वेदना पराकाष्ठा पर जा पहुंचेले। अंगइठी लेत रस से भरल देह,…
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