विध्वंस आ सिरजन एह सृष्टि रूपी सिक्का के दू गो पहलू लेखा बा। एक के दोसरा अलगा राख़ के देखल मोसकिल ह। मने अलगा-अलगा राखल भा देखल संभव नइखे। अब जवन कुछ संभवे नइखे,ओह पर कवनो बतकही बेमानी बा। बाक़िर एह घरी त पत्थर पर दूब्बा उगावे के पुरजोर परयास हो रहल बा। परयास देखउकी भर के बा भा साँचों ओकर छाया जमीन पर उतर रहल बा, ई त समय के ऊपर छोडल जा सकेला। एह छोड़लको पर लोगन के नजरिया अलग-अलग हो सकेले,बाक़िर दोसर कवनो रासतो त नइखे। दुनिया…
Read MoreCategory: संपादकीय
सुधि के मोटरी से कुछ-कुछ
रउवा सभे के मालूम होखबे करी कि जिनगी के जतरा लइकई से गवें गवें आगु, बढ़त, जवानी के जीयत, अधेड़पन के संवारत बुढ़ापा के काटत एक दिन अंतिम जतरा पर निकल जाला। मनई के जिनगी में ढेर पल –छिन अइसन जरूर आवेला जवना के उ जोगा के राखलों चाहेला। भा ई कहल जाव के कुछ गुजरत पल मनई के स्मृति में आपन पक्का ठेहा बना लेवेलन सन। अइसने स्मृतियन के आधार पर कवनो विषय भा बेकती पर जवन कुछ लिखल जाला, ओकरा के संस्मरण भा स्मृति आलेख कहल जाला। भा…
Read Moreचैता आ चुनाव
गज़ब हाल बा भाई! एक त चइत चहचहाइल बाटे आ मन,मनई,मेहरारू संजोग वियोग के चकरी में चकरघिन्नी भइल बाड़ें, ओही में ई चुनाव के घोषणा, मने धधकत आगि में घीव डला गइल। दूनों ओर जी हजूरी के तड़का, अब उ नीमन लागे भा बाउर। जिये के दूनों के पड़ी, मन से भा बेमन से। जब लोग बाग खेती-किसानी से दूरी बनावे लागल बा, त ओहमें ई राँड रोवने नु कहाई कि अब ढोलक के थाप आ झाल के झंकार सुनात नइखे। खेती-गिरहस्थी से थाकल लोगन खातिर फगुआ आ चइता टानिक…
Read Moreफागुन के गोइयाँ, बसंत अगुवानी में
पुरनकी पतई झरे लगनी सन मने नवकी फुनुगी के अवनई के डुगडुगी बज गइल। अब डुगडुगी के अवाज सुनाइल कि ना, ई बिचारे जोग बात बाटे।बातिन के बिचारे खातिर समय होखे के चाही, सुने–देखे में त इहे आवता कि केहुओ के भीरी समय नइखे। सभे कतों ना कतों अझुराइल बा। अझुरहट सकारात्मक बाटे कि ना, एकरा के छोड़ीं । बसंत पंचमी त आ के जाइयो चुकल बाक़िर कतों बसंती गीत आ फगुआ के ढ़ोल, झाल, मजीरा के अवाज सुनाइल ना। सुनाई देही त कहवाँ से, जब कतों फगुआ गवात होत,…
Read Moreआँखिन देखी —
गंवे गंवे भोजपुरी साहित्य के पठनीयता के मिथक टूट रहल बा,अइसन हम ना बजार कहि रहल बा। एकरा पाछे मुख्य कारण उपलब्धता आ विश्वसनीयता के मानल जा सकेला। डिजिटल युग एहमें अहम भूमिका निभा रहल बा। भोजपुरी के पुस्तक पहिलहूँ प्रकाशित होत रहनी स आ अजुवो प्रकाशित हो रहल बानी स। एह दिसाई साहित्यांगन आ सर्वभाषा प्रकाशन एगो मजगूत बड़ेर लेखा सोझा बाड़ें। पुस्तक मेला, जगह-जगह लागे वाला स्टाल भाषा के नेही-छोही लोगन के संगही दोसरो भाषा भासी लोगन के सोझा भोजपुरी के किताबन के उपलब्धता सुगमता से सुलभ करा…
Read Moreखेतिहर अजुवो जस के तस बा —-
‘खेती बाढ़S अपने करमे’, ‘आगे खेती आगे-आगे, पाछे खेती भागे जोगे’ जइसन कतने कहाउतन से भोजपुरिया लोक गह गह बाटे। बाक़िर कतों न कतों ई कुल्हि कहाउत कई गो बातिन के खुलासा करे क समरथ रखले बाड़ी स। पहिल बात ई कि भोजपुरिया समाज के अर्थव्यवस्था के रीढ़ खेती-किसानी आ पशुपालने रहल बा। कवनो दौर के भोजपुरी लोक साहित्य होखे भा भोजपुरी भाषा साहित्य संत आ कवि लोग खेती-बारी पर जनता के जगावे आ उनुका तकलीफ बतावे में कबों कोताही नइखे कइले। बाबा कबीर के समय से भोजपुरी कविताई में…
Read Moreआपन बात
ईश्वर की सृष्टि के साथ मिले, त तनाव दूर होखे के सथहीं रचना में इहे आदमी के मूड के बेहतर करे के रसायन भी बन जाला। ई हमनी के शरीर के कोशिका सभन के भी पोषित करेला। । मानसिक स्वास्थ्य खातिर भी ई एगो टॉनिक होखेला। एहसे ऊर्जा, ताजगी, चैतन्यता के साथे जीवनशक्ति बढ़ जाला। प्रकृति के रचना के संग सुकूं आ शांति भी मिलेला जेह से तनाव आ चिंता भी दूर हो जाला आ सोच सकारात्मक दिशा के साथ कुछ नया करे खातिर प्रेरित करेला।अइसहीं सभ त्योहार के आपन…
Read Moreआपन बात
अनघा भाव मन के उद्बबेगत बहुत कुछ कह जाला। उहे सब जब लेखनी में समा के कागज पर उतरेला तब सबकुछ नया नया लागेला। बीतल समय से बहुत सुन्दर चित्र मिलेला जवना में वर्तमान परिप्रेक्ष्य खुद हीं अपना के फिट पावेला आ ई मेल मन के खूबे भावेला।सुख, दुख,दया, अहम ,क्रोध आदि भाव साक्षात आपन प्रभाव डालेगा। अपना गुण के अनुकूल ई रिश्ता में खटास आ चाहे मिठास ले आवेला बाकिर रचना के मरम हमेशा आनंद में परिवर्तित हो के मिलेला। शिव सृष्टि के सिरजक हईं।उहाँ के मानुष आ प्रकृति …
Read Moreआपन बात
अझुरहट के सझुरावत ,रसता बनावत गवें-गवें आगु बढ़े के जवन तागत साहित्य से मिलेले उ कहीं अउर से भेंटाले कि ना, एह पर कुछ कहल एह घरी हमरा उचित नइखे बुझात। भोजपुरी साहित्य के धार के आपन बहाव ह,लहर ह,तरंग ह, हुहुकारल ह, फुफुकारल ह। ओही में आपन-आपन नइया लेके हिचकोला खात किनारा पहुँचे क ललक जिनगी के प्रान वायु लेखा बा। आजु भोजपुरी में जहाँ साहित्य के झोली भरा रहल बा, उहें एहमें ढेर विकारो आ रहल बा। जवने क हाल-समाचार समय-समय पर उतिरात रहेला। कई बेर साँच के…
Read Moreआपन बात
साहित्य अपना में समाज का संगे सभे के हित समाहित राखेला आ हरमेसा बढ़न्ति का ओर गति बनवले राखे के उपक्रम विद्वान साहित्यकार लोग करत रहेलें। अइसने कुछ साहित्य जगत के मान्यतो ह। बाकि हर बेर ई सही ना होखे। कई बेर एकरा से उलट होत लउकेला। जान-बूझ के भा इरखा बस कवनो नीमन चीजु के अनदेखी कइल, उहो अइसन लोगन द्वारा जेकरा के हद तक मानक मानल जात होखे, ढेर बाउर लागेला। अइसन भइलका मन के गहिराह टीस दे जाला। कई बेर उ टीस मन के उचाट क देवेले।…
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