बिख उगे घमवा अषाढ़ महीनवां में, बरखा के आस नाहीं सुरुज धिकाइल बा। पोखरी तलइया में नीर नाहीं नदी सूखि, त्राहिमाम सगरो धरतिया सुखाइल बा। झन-झन झिंगुरा झनकि दुपहरिया में, पेड़वा क पतवा मुरुझि लरुआइल बा। दुबुकल चिरइया खतोंगवा में छांह खोजि, बचवन के सँगवा पियासल पटाइल बा। धनि-धनि बदरा ना लउके सपनवों में, पपीहा वियोग जरें गर रून्हिआइल बा। केकरा अंजोरवा तूं अइबा बदरवा हो, जुगुनू के बत्तिया पसेनवा बुताइल बा। हेरें असमनवां में चान के अंजोरिया हो, खेतिया किसनिया के बेला इहे आइल बा। मेझुका मिलन बाट जोहेलीं…
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एगो पौराणिक उपन्यास ‘तारक’
सद्य प्रकाशित आदरणीय अग्रज ‘मार्कन्डेय शारदेय’ जी के पौराणिक उपन्यास सर्वभाषा प्रकाशन से भोजपुरी साहित्य जगत के सोझा आइल ह। ई कृति शारदेय जी के जीवंत लेखनी से प्रत्याभूत त बड़ले बा, संगही उहाँ के एह कृति के भोजपुरी के पुरोधा पाण्डेय कपिल जी के समर्पित कइले बानी। जब कवनों पौराणिक कथा कहानी के उपन्यास विधा में पिरोवल जाला, त उ सोभाविक विस्तार लेत कबों यथार्थ के धरातल आ कबों काल्पनिक धरातल पर समभाव से आगु बढ़त देखाला। एह घरी के हिन्दू समाज के सभेले कमजोर नस मने ‘अपने…
Read Moreभोजपुरी भाषा आ साहित्य : एक नजर
जवना माध्यम से अपना विचार के लेन-देन होला, उहे भाषा ह। भारत में पैशाची,संस्कृत , पाली, प्राकृत आ अपभ्रंश के संगे-संगे चलत भोजपुरी हजारन बरिस पुरान भासा हS। प्राकृत आ अपभ्रंश से 12 वीं सदी आवत-आवत असमिया,बंगला,उड़िया, मैथिली,मगही,आ भोजपुरी के अलगा-अलगा रूप निखरल। – उनइसवीं सदी का अंतिम चरन में भाषा के भोजपुरी नाँव मिलल। – 1789 ई0 में काशी के राजा चेत सिंह के सिपाहियन के बोली के भोजपुरी नाँव से उल्लेख भइल बाटे। – सन् 1868 ई0 में जान बीम्स आपन एगो लेख ‘रायल एसियाटिक सोसाइटी’ में पढ़ले…
Read Moreएक सुझाव गीत
धरती के सिंगार बिरना आवा सजावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के बचावा हो।। हरे हरे पेड़ होइहैं फैली हरियाली, हरषी सिवान देखि पूरब के लाली, उसर के नाम अब जग से मिटावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के…… सुंदर समाज बनी शुद्ध होई पानी, ताजी हवा से मिली मन के रवानी, एसी में सोवल जे बा उनके जगावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के …… ओजोन चादर में छेद भइलैं भारी, कहियो ज फाटी चादर फैली बीमारी, “लाल” के बिचार भइया टोगें गठियावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के…….…
Read Moreपूरबी
पियवा के सुधिया सतावे भरि रतिया साँवर गोरिया रे। तलफत सेजरिया पर जाय। सेही सेजरिया सपनवाँ ना भावे साँवर गोरिया रे। सोचि सोचि बतिया लोराय। कवने कारन पिया छोड़लें बेगनवाँ साँवर गोरिया रे। क़िसमत के कोसी पछताय। जेपी के कहना बा ठाना ठनगनवाँ साँवर गोरिया रे। आपन पियवा लेहु न बोलाय। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreगुलबिया हो
ना हमरा से नेह छोह ना रउरा से प्यार बा। फेरु गुलबिया हो, केकरा लग्गे सरकार बा। बुद्धू बकसवा में बइठ टर्राने केकरा खातिर पूछेलें फलाने केकरा साथ संगत के उनुका दरकार बा। गुलबिया हो…… केकरे ओठवा के नमी झुराइल बाति के सुनगुन से के बउराइल केहो छान-पगहा लिहले करत गोहार बा । गुलबिया हो…… अचके में आजु मार पड़ल अइसे करके भितरघउवा सुसुकीं कइसे अइसन दरद जवन कहलो बेकार बा। गुलबिया हो…… जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreबकरिया रे
बकरिया रे तोर महिमा बा भारी गुन गावे खूबे संविधान सरकारी ! दुधवा जे पियेला उ बनेला महातमा दुनिया कहेला महामानव देवातमा आजु होला पठरुन के बलि बरियारी ! तोरे से आ तोरे खातिर तोरे लोकतंतर ज्ञानी जन दिने राति जपे इहे मंतर बाकिर तोरा घरवा के देवेलन उजारी ! तहरे के बेचि कीनि चले दुकनदारी दूहि गारि लेवे नीके देवे दुतकारी काहें टुकुर टुकुर ताकि बनेलू बेचारी ! तहरा के दूहे सभ केहू पारापारी तबहूँ ना जिनगी के सधे देनदारी लोहू पीये मास चाभे बने अवतारी ! सभ अनमोल…
Read Moreमाई
पेट जारि के जिअवलू आपन बखरा खिअवलू , करनी अइसन कइलू कभों बिसराई ना केहू माई तोर करजा भरि पाई ना केहू । बहुते बेमार परीं हमहूँ नन्हईयाँ जोहलू न केहुके उठवलू कन्हईयाँ कोसनऽ ले जाई जा के लेहलू दवाई गुन गवला से कतनो अघाई ना केहू माई तोर करजा– जड़वे त कोरवे में साटि लुकववलू भेवनी बिछवना ओहू के झुरववलू किरिया धरावे केहू ठोनहक मारे दुख सहलू जवन ऊ भुलाई ना केहू माई तोर करजा– झोंझरी में भूँजा दे के पढ़े के पठवलू रार ना मचाईं कतों किरिया धरवलू…
Read Moreग़ज़ल
प्यार नइखे गर जिया में, जिंदगानी डाँड़ बा । रौब झाड़े चढ़ उतानी, तब जवानी डाँड़ बा ।। लाज अउरी शान बाटे, आदमी में आब ही, बे-हायाई में मिलावल, यार पानी डाँड़ बा ।। दाग इज्ज़त में बिया, जिनके तनिक उनके बदे, लाल पीला या गुलाबी, रंग धानी डाँड़ बा ।। बाप आ भाई क पगिया, बोर दे जे चाल से, घर अँटारी में पलल, बिटिया सयानी डाँड़ बा ।। बाँट अँगना घर दुआरी, दुश्मनी भाई करें, आज बड़की गोतिनी, या देवरानी डाँड़ बा ।। शोर जवना घर मचे ना,…
Read Moreईयाद आवे गउवाँ
शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ खेत, खरिहान अउर पीपर के छउवाँ ईयाद आवे गउवाँ॥ संगही ईयाद आवे, ईया के बतिया लइकन संगे खेललकी होला पतिया अचके मचल जाला जाये के पउवाँ। ईयाद आवे गउवाँ॥ शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ॥ संगही ईयाद आवे होरहा भुजलका खेतन के डांड़े भागत बेर गिरलका संझा खानि ओरहन धरि धरि नउवाँ। ईयाद आवे गउवाँ॥ शहर सपना अस, ईयाद आवे गउवाँ॥ संगही ईयाद आवे ऊख के तोड़लका पकड़इला पर उखिए उखिए पिटलका ठेहुना क दरद सरकि के गिरल खउवाँ। ईयाद आवे…
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