दुनिया त गोले नु बा

का जमाना आ गयो भाया, मजबूरी के लोग अपनइत बता रहल बा आ हाल देखि-देखि के थपरी बाजा रहल बा। कवनो मउसम विज्ञानी के रिमोट दोसरा के हाथ में थम्हावत देखल कुछ लोगन के अचरज में डाल रहल बा। ढेर लोग त देखि के चिहा रहल बा। कवनो मुँहफुकवना भिडियो बना के सोसल मीडिया पर डाल देले बा। जहवाँ भिडियो देखिके मउसम विज्ञानी के संघतिया लोग के बकारे नइखे फूटत। उहवें उहाँ के गोतिया लोग चवनिया मुसुकी काटि-काटि के माजा मार रहल बा। एक-दोसरा से भुसुरा-भुसुरा के मउसम विज्ञानी के दोसरका भिडियो सोसल मीडिया पर वायरल करे में जी-जान से लाग गइल बा, जवना में मउसम विज्ञानी उनुका संगे ठाढ़ ना होखे के फतिहा पढ़त माटी में मिल जाए के कवल उठा रहल बाड़ें। ओह घरी गोतिया के पाँत वाला लोग थपरी से मेज बजा रहल बा आ दयाद लोग बगली झाँक रहल बा।

तिवारी बाबा के पान के दोकनिया एकरा चलते फेरु गुलजार हो गइल बा। भर दिन लोग एह नउके मउसम विज्ञानी के चरचा में मसगूल रहत बा आ पान पर पान चबा के पिचिर-पिचिर थूक रहल बा। काल्हु एक जना क़हत रहलें कि अपना इहाँ एकही गो मउसम विज्ञानी जामल रहलें। उनुका मुअते बुझाता उनुका अतमा इनका सरीर में पइस गइल बा। लपेटा में त पहिलही से रहलें आ ओकर झलक देखवतो रहलें। एही से इनका गियान के भुसउल टहटहाये लागल बा आ अब सभे लोग इनका के नउका मउसम विज्ञानी मान लेले बा। पहिलका आ नउका मउसम विज्ञानी लोग कुरसी पर काबिज होखे वाला सगरे गुन से लबालब रहल। राजा केहू होखे, परजा केकरो बेसी चाहत होखे बाक़िर मलाईदार कुरसी पर बइठे क परम्परा मउसम विज्ञानी लोग गढ़ देले बा। अब परम्परा बा त मानल जरूरी बा। पहिलका मउसम विज्ञानी के गाँव से बहरा के मलाईदार कुरसी भावे बाक़िर नउका के गाँवही वाली कुरसी से इश्क बा। अब एगो नया तमासा, जनता में से ढेर लोग हमार भाई, हमार बिरादर बोल-बोल के लहालोट हो रहल बा आ मुंगेरी लाल लेखा उनुका के कादो कवना मटेरियल का जोग बोल के दिनवें में सपना देखा रहल बा। जवना दयाद के संगे मउसम विज्ञानी एह घरी सटल बाड़ें, ओह दयाद के एह घरी बिरुदावली गवा रहल बा आ किंगमेकर बतावल जा रहल बा। मउसम विज्ञानी के ई दयाद पहिला के बड़ भोजन भट्ट रहल बाड़ें आ उनुका के कुछों खाये-चबाये के आदत बा। एकरा चलते अक्सरहाँ ओलियावले रहेलन। एह घरी हवा-पानी बदले ला बहरा आइल बाड़ें।

भोजन भट्ट के छोटका बेटहना एह घरी खूब लम्मा-लम्मा फेंक रहल बा आ ओकर संघतिया लोग लपेटे में जीव-जाँगर का संगे लागल बा। बाकी लोग का हिस्सा में त तमासा देखे के बाँचल बा, आ उ लोग मन-मिजाज का संगे देखियो रहल बा। छोटका के कुछ चमचा-बेलचा लोग इहाँ-उहाँ खूब रइता फइला रहल बा। एह भरम में कि उहे छोटका मुखिया हवे। रउवा सभे के जवन बूझात होखे बूझत रहीं, हम चल रहल बानी। फेरु भेंट होखी काहें से कि दुनिया त गोले नु बा।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

Related posts

Leave a Comment