सतुआन के नवकी परिभाषा

का जमाना आ गयो भाया, ओह दिनवा जे भोपू पर नरेटी फार-फार के नरियात रहल, आजु काहें घिघ्घी बन्हा गइल बा। दुका-दुका दोहाई दिया रहल बा।समय के चकरी त चलते रहेले आ चलियो रहल बा। ओह चकरी के चकर-चकर में कई लो चौनिहा गइल बाड़ें।काहें भाय, अब का भइल ?अपना पर परल ह, त दरद होता, दोसरा के बेरा मजा आवेला। अब कापी राइट के संस्था के पता बतावे आ पूछे वाला लोग केने कुंडली मार के बइठल बाड़ें ? बिल के बहरा आईं महराज। का भइल,आजु अपना जात-बिरादर के बात नइखी का?

हमरा त नगदे इयाद बा, फेसबुक पर भोपू लगा के तथाकथित विद्वान लो ,कामा, इनवर्टेड कामा आ दोहरे उद्धरण चिन्ह का ना लगवला के खातिर एगो बुजुर्ग साहित्यकार पर साहित्य चोरी के ठीकरा फोरत पानी पी-पी के गरियावत रहल। ई तब, जब उहाँ के जवना-जवना साहित्यकार लोगन के गद्य भा पद्य अपना किताबि में सामिल कइले रहलें, सभे के आभार व्यक्त कइले रहलें। दोसरा-तीसरा के लिखलका के उल्था क के बड़का साहित्यकार बनेवाला मनई गारी देवे में सभेले आगे रहल। ओह चौकड़ी में अइसनो लोग रहल, जेकरा पहिले से साहित्य चोरी के तमगा मिल चुकल रहे ।

अब जब बात निकलिये गइल बा त बतावत चलीं कि एगो हमरा गीत के एगो गायिका बेगर हमार नाँव दीहले आ कुछ ज़ोर-तोर क के गवले रहली आ अपना चैनल पर परोसले रहली, तबो ढेर लोगन के चरित्तर सोझा आइल रहल। जात आ जान-पहचान का संगही गोल-गोल बंदी देखि के पक्ष आ विपक्ष में ठाढ़ होखल इहवाँ के लोगन के खून में बा।मूल रचनाकार से प्रमाण माँगे क परम्परा भोजपुरी साहित्य में मजगर ढंग से फर-फूल रहल बा। ओके खाद-पानी इहवें के लोग मुँह देख-देख के देत रहेला। रचना फेसबुक पर डालल बा, कवनों पत्रिका में प्रकाशित भइल बा भा रचनाकार के किताब में प्रकाशित हो चुकल बा, एकर कवनो माने-मतलब नइखे। कुछ लोग ओह रचना के कापी राइट में अंकन के प्रमाण पत्र माँगे चहुंप आई। कदाचार आ सदाचार के परिभाषा मनई देख-देख के लिखल आ बाँचल जाला। आईं सभे अब सतुआनो के नवकी परिभाषा बाँची आ टटका प्रवचन सुनी।

 

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

Related posts

Leave a Comment