पितर पख आ सराध

पितर पख में पुरबुज लो के अतमा के शांति खातिर पूरे विधि-विधान से अनुष्ठान कइल जाला। पितर पख में तर्पण आ पिंडदान कइला से पुरबुज लो के असीस मिलेला।  घर में सुख-शांति बनल रहेले। वैदिक परम्परा का हिसाब से हिन्दू धरम में ढेर रीति-रेवाज़, बरत, तेवहार मनावल जाला। हिन्दू धरम में जनम से लेके मिरतुक के बादो कई संस्कार मनावल जाला। जवना में अंतेष्टि के अंतिम संस्कार मानल जाला। बाक़िर अंतेष्टि का बादो कुछ कारज अइसन होखेलें जवना के संतान के करे के पड़ेला। पितर पख आ सराध ओकरे में से एगो बाटे। सराध जवना बेरा में कइल जाला ओकरा के पितर पख भा महालय के नावों जानल जाला। अइसन मान्यता बाटे कि पितर पख में हमनी के पुरबुज धरती पर सूक्ष्म रूप में आवेलें। उनुका नाम से कइल गइल तर्पण के स्वीकार करेलें। एहसे पितर लो के आतमा के शांति मिलेले आ घर में सुख-शांति बनल रहेले।

हिन्दू रीति-रेवाजन आ वैदिक करम-कांड में आस्था न राखे वाला लोग ढेर कुतरक गढ़त रहेला। अपने पुरबुज लो के इयाद करे आ उनुका ला आपन सरधा के भाव-भूमि देवे क एहसे नीमन कुछ अउर नइखे हो सकत। पितर लोगन के खुस भइला से देवता लो प्रसन्न होखेलें। इहे कारन ह कि भारतीय संस्कृति में घरे के बड़-बुजुर्ग के सम्मान आ मरला का बाद सराध कइल जाला।

सराध के खातिर चाउर के माटी के हँड़िया में चूरा के ओकर लेड़ुया लेखा गोल-गोल बनावल जाला। ओकरा बाद ओके पतरी पर राखल जाला। एगो कवनो बरतन में दूध,जल,करियई तिल्ली अउर फूल लेके कुसा के संगे तीन बेर तर्पण कइल जाला। बाएँ हाथ में जल राख़ के दाहिने हाथ के अँगूठा के धरती का ओर क के लेड़ुया का उपरि डालल जाला । पितर के खातिर सगरी किरिया बाएँ कन्हा पर जनेव डाल के दाखिन का ओर मुँह क के कइल जाला।

सभे मनई लो के खातिर तीन गो पुरबुज बाबू, दादा अउर परदादा के वसु, रुद्र आ आदित के बरोबर मानल जाला। सराध करत बेरा उहे लो अउर सगरे पुरबुज लोगन के प्रतिनिधि मानल जालें। मान्यता इहे ह कि रीति-रेवाज़ का हिसाब से करावल गइल सराध से तिरपित होके पुरबुज अपना बंस बेल के परिवार का संगे सुख समरिध अउर स्वस्थ रहे के असीस देवेलें। सराध में बांचल गइल मंतर अउर आहुति के उ लोग अउर पितर लोग के लगे ले जालें।

उपनिषद में कहल गइल बाटे, देवता अउर पितर के काज में कबों आलस ना करे के चाही। पितर लो जवना जोनि में होखेलें, सराध के अन्न ओह जोनि के हिसाब से भोजन बन के उहाँ सभे के भेंटा जाला। सराध जइसन पवित्तर कारज में गाय के दूध , दही अउर घीव उत्तम मानल गइल बा। धर्मशास्त्र में पितर लोगन के तिरपित करे खातिर जौ, धान, गेहूँ , मूँग , सरसो के तेल ,कँगनी,कचनार के उपयोग बतावल गइल बाटे।              एहमें आम, बहेड़ा, बेल, अनार, पुरान अंवरा, खीर, नरियर, नारंगी, खजूर ,अंगूर, परोरा, चिरौंजी, बइर, जंगली बइर, इंदर जौ के सेवन करे के बिधान हवे। तिल्ली के देवता लोग के अन्न कहल गइल ह। करियई तिल्ली उ पदार्थ हवे जवना से पितर लोग तिरपित होखेलें। एही खातिर करियई तिल्ली से सराध करे के चाही।

सगरे मनई लो पर तीन गो रिन (करज) होखेला। पहिला देव रिन, दोसरा ऋषि रिन अउर तीसरा पितृ रिन। पितर पख में सरधा का संगे सराध क के तीनों रिन से उरिन होके मोक्ष पावल जा सकेला। सराध में करियई तिल्ली अउर कूसा के ढेर महातिम होला। सराध में पितर लो के अरपित कइल जाये वाला सगरी चीजु के पिंड का रूप में अरपित करे के चाही। सराध करे के अधिकार बेटवा,भाई,पोता, परपोता का संगे मेहरारूनो के होला। ना जनला का चलते ढेर लो सराध के नीमन ढंग से ना कर पावेलें, जवन बाउर बाति बा। काहें से कि शास्त्र का हिसाब से ‘ पितरो वाक्यमिच्छन्ति भवमिच्छन्ति देवता’ मने देवता लो भाव से परसन्न होखेलें अउर पितर लो साफ आ नीमन से कइल काज से।

सराध में पाकल चाउर,दूध,अउर तिल्ली के मिलाके पिंड बनावल जाला, ओकरा के ‘सपिंडीकरण’  कहल जाला। पिंड के अरथ सरीर होला। ई एगो पारंपरिक बिसवास हवे जवना के विज्ञानों मानेला। रउरा सभे जानते होखब कि हर पीढ़ी का भितरि माई आ बाबू दूनों जने के पहिले के पीढ़ी के मिलल ‘गुणसूत्र’ रहेलें। चाउर के पिंड जवन बाबू, दादा अउर परदादा के सरीर के प्रतीक बा, आपुस में पहिला मिल के फेर अलगा बांटेले।

ब्रह्म वैवर्त पुराण का हिसाब से देवता लोगन के परसन्न करे से पहिले मनई के अपने पितर लो के परसन्न करे के चाही। हिन्दू जोतिष का हिसाब से पित्र दोष के सभेले अझुरहट वाला कुंडली के दोष मानल जाला। पितर लो के शांति के खातिर हर बरीस भादों महिना के पुनवासी से कुआर महिना के अमवस्या तक के समय पितरपख के होला। मानल जाला कि एह समय में यमराज पितर लोग के धरती पर जाये ला आजाद क देवेलें जवना से कि पितर लो अपने परिजन के दीहल सराध के ले सकें।

कउवा के पितर लो के वाहक मानल जाला। अइसन मान्यता बाटे कि सराध लेवे खातिर पितर लो के वाहक कउवा नियत समय पर घरे आवेलें। अगर उहवाँ सराध ना भेंटाला,त उ लो कोरधा के सराप देके चल जालें। एहिका चलते सराध के पहिल भाग कउवा खातिर निकालल जाला।

माई के सराध नउमी के कइल जाला। जवना परिजन के अकाल मिरतुक भइल रहेले , उनुका सराध चतुर्दशी के कइल जाला। साधु अउर सन्यासी लो के सराध द्वादसी के अउर जवना पितर लो के मिरतुक के तिथि मालूम ना होखेले, उनुका सराध अमवस्या के दिन कइल जाला। एह दिन के ‘सरब पितर सराध’ कहल गइल बा।

उपरि भाग पर रहे वाला पितर लो के खातिर अन्हरिया पख नीमन होखेला। अन्हरिया पख के अष्टिमी के उनुका सभे के दिन शुरू होखेला। अमावस्या बीच में आवेला आ अंजोरिया पख के अष्टमी अंतिम दिन होखेला। धार्मिक मान्यता बा कि अमावस्या के कइल गइल सराध, तर्पण,पिंडदान पितर लो के संतोख आ ऊर्जा देवेला।

ज्योतिष शास्त्र का हिसाब से पृथ्वी लोक में देवता लो उत्तर गोल में विहार करेलें आ दाखिन गोल भादों महिना के पूर्णिमा के चंद्रलोक का संगे-संगे पृथ्वी का नियरे से गुजरेला। एही महिना के पुरबुज लो बरीस भर जोहत रहेला। उ लो चंद्रलोक का माध्यम से दाखिन ओर अपना मिरतुक का दिने अपना घर के दुआर पर चहुंप जाला आ उहवाँ आपन सनमान लेके खुसी-खुसी नवकी पीढ़ी के असीस देके चल जालें। ‘श्राद्ध मीमांसा’ में इहे वर्णन मिलेला। एह तरे पित्र रिन से फारिग होखे खातिर पितर पख में पितर लो के तर्पण आ पूजन कइल जाला।

हिंदू संस्कृति आ समाज में अपना पुरबुज आ गोलोक गइल माई-बाबू के ईयाद पितरपख में करत उनुका ला सरधा का संगे तर्पण , पिंडदान, यक्ष आ बाभन लो के जिमावे के परम्परा बा। पितर लो के सराध दू तिथि पर कइल जाला, पहिला मिरतुक के तिथि पर आ दोसरा पितर पख में । जवना महिना में जवने तिथि के पितर लो के मिरतुक भइल रहेला  भा जवना तिथि के उनुका दाह-संस्कार भइल रहेला , ओह तिथि के एकादस सराध कइल जाला।

 

पितर पख के बेरा में धियान राखे जोग बाति:

ई मानल जाला कि एह 16 दिन में सभे पुरबुज लो अपना कुटुम के असीस देवे खातिर धरती पर आवेलें। उनुका परसन्न करे खातिर तर्पण, सराध आ पिंडदान कइल जाला। ई सभ कइला से पुरबुज लो के अपना इष्ट लोक के पार उतरे में मदद मिलेले। उहवें जे अपना पुरबुज लो के पिंडदान ना करेला, उनुके पित्र रिन आ पितर दोस सहे के पड़ेला। एहिसे पितर पख में अपना पुरबुज लो के सराध करत बेरा कुछ बातिन के धियान राखे के चाही-

 

  • शास्त्रन का हिसाब से सभेले बड़ बेटा आ छोट बेटा के सराध करे क अधिकार होला। एकरा इतर कवनो खास परिस्थिति में कवनो बेटा सराध कर सकेला।
  • पितर लो के सराध करे से पहिले नहाय के साफ कपड़ा पहिरे के चाही।
  • कुसा से बनल अंगूठी पहिर के पुरबुज लो नेवते के चाही।
  • पिंडदान के एगो भाग का रूप में जौ के पिसान,तिल्ली आ चाउर से बनावल लेड़ुआ कउवा के खातिर बहरा राखल जाला।
  • मान्यता ई हवे कि सराध विद्वान ब्राह्मण से करावे के चाही। सरधा का संगे बाभन के दान देवे के चाही। गरीब आ जरूरतमंद के सहायता कइला से ढेर पुण्य भेंटाला। एकरा संगे गाय, कुकुर,कउवा आदि जानवर आ चिरई-चुरमुन के कुछ जरूर जिमावे देवे के चाही।

 

पितर पख में ई काज जनि करीं

 

1 पितर पख में कवनो शुभ काज ना कइल जाला।

2 एह समय में कवनो नई गाड़ी भा नया समान मति कीनी।

3 आमिष भोजन मति करीं सराध करत बेरा जनेव के दहिना कान्ही पर राखीं।

4 सराध करे वाला मनई के नाखून (नोह) ना काटे के चाही आ दाढ़ी भा केस ना कटवावे के चाही।

5 तमाखू ,सिगरेट,बीड़ी आ सराब के सेवन ना करे के चाही। ई कुल्हि कइला से पुण्य ना मिलेला।

6 घरे में 16 दिन चप्पल जनि पहिरीं।

7 दुआर पर आवे वाला जानवर भा मनई के बेगर सतकार आ भोजन जरूर करावे के परायास करीं।

8 सराध करे वाला मनई के ब्रह्मचर्य के पालन करे के चाही।

9 पितर पख में रहिला , दाल, जीरा, काला नमक, लौकी अउर खीरा, सरसों के साग ना खाये के चाही।

10 सराध के विधि करे में लोहा के बरतन के परयोग मति करीं। अपना समरथ का हिसाब से सोना, चानी,तामा भा  पितरी के बरतन के परयोग करीं।

11 कहल जाला कि गया, प्रयाग ,बदरीनाथ में सराध कइला से पितर लो के मोक्ष मिलेला। जे कवनो कारन से उहवाँ       ना जा सकेला ओकरा के अपना घर के अँगने में साफ-सफाई का संगे पिंड दान क सकेला।

12  सराध करे खातिर करियई तिल्ली के परयोग करे के चाही। पिंड दान करत बेरा संगे तुलसी जरूर राखे के चाही।

13 सराध साँझ के, रात में, सबेरे भा अन्हारे में ना करे के चाही।

14 पितर पख में गाय, कुकुर , चींटी आ बाभन के संभव होखे त जरूर जिमावे के चाही।

15 विधि बिधान से सराध कइला से जातक पित्र रिन से उरिन हो जालें। पितर पख में जातक जवन सराध करेलें ओहसे पितर परसन्न होलें आ अपने कुटुम के सुख समृद्धि ला असीस देवेलें।

(संकलन आ सम्पादन )

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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