प्रकृति कहाँ बा मेला भारी, सभे करे मिलि-जुलि तइयारी। बादर-बदरी खुश हो अइलें, ढोल बजावत गीत सुनइलें, मस्ती में बूनी बरिसइलें, बिजुरी के सँग नाच देखइलें, धरती के हिरदया जुड़ाइल, घर-आँगन होखल फुलवारी। प्रकृति किहाँ बा मेला भारी।। सगरो लउके हरियर-हरियर, रसगर भइलें आहर-पोखर, नदी-नहर नाला उमंग में, गागर-गागर लागे सागर, बीज बोआइल हँसी-खुशी के, हँसल भविष्य के मनगर क्यारी। प्रकृति कहाँ बा मेला भारी।। पर्वत पत्थरदिल ना कहलस, तनिको कम ना ओमें बा रस, प्रेम बढ़ावत भू के छुअलस, हरखित होके सुध-बुध तेजलस, देखसु सूरज-चाँद चिहाके, कहसु हव सचमुच…
Read MoreDay: July 11, 2025
रिमझिम बरसेला सवनवां
रिमझिम बरसेला सवनवां में संवरिया बदरा। रस के गगरी चुआवेले बदरिया बदरा डर लागे अन्हियरिया में चमके चहुँ ओर बिजुरिया ओरियानी के पानी छींटा मारे सोझ दुवरिया । खटिया मचिया भीजे तकिया मुडवरिया बदरा करिया घटा नचावे बन में मोरवा संग मोरिनिया । दादुर मेघा मेघा टेरे चातक मांगे पनियां । बैरिन बंसिया बजावे बंसवरिया बदरा। अंगना लागे काई सम्हरि न पाईं फिसले पउवां झुलुआ झूलें कजरी गावें मिलि के सगरी गउवां उफनलि पोखरी में उछलेलीं मछरिया बदरा । चान सुरुज मिलि छिपि के खेलें दिनवो लागे राती। पवन झकोरा…
Read More