प्रकृति किहाँ बा मेला भारी

प्रकृति कहाँ बा मेला भारी, सभे करे मिलि-जुलि तइयारी। बादर-बदरी खुश हो अइलें, ढोल बजावत गीत सुनइलें, मस्ती में बूनी बरिसइलें, बिजुरी के सँग नाच देखइलें, धरती के हिरदया जुड़ाइल, घर-आँगन होखल फुलवारी। प्रकृति किहाँ बा मेला भारी।। सगरो लउके हरियर-हरियर, रसगर भइलें आहर-पोखर, नदी-नहर नाला उमंग में, गागर-गागर लागे सागर, बीज बोआइल हँसी-खुशी के, हँसल भविष्य के मनगर क्यारी। प्रकृति कहाँ बा मेला भारी।। पर्वत पत्थरदिल ना कहलस, तनिको कम ना ओमें बा रस, प्रेम बढ़ावत भू के छुअलस, हरखित होके सुध-बुध तेजलस, देखसु सूरज-चाँद चिहाके, कहसु हव सचमुच…

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रिमझिम बरसेला सवनवां

रिमझिम बरसेला सवनवां में संवरिया बदरा। रस के गगरी चुआवेले बदरिया बदरा डर लागे अन्हियरिया में चमके चहुँ ओर बिजुरिया ओरियानी के पानी छींटा मारे सोझ दुवरिया । खटिया मचिया भीजे तकिया मुडवरिया बदरा करिया घटा नचावे बन में मोरवा संग मोरिनिया । दादुर मेघा मेघा टेरे चातक मांगे पनियां । बैरिन बंसिया बजावे बंसवरिया बदरा। अंगना लागे काई सम्हरि न पाईं फिसले पउवां झुलुआ झूलें कजरी गावें मिलि के सगरी गउवां उफनलि पोखरी में उछलेलीं मछरिया बदरा । चान सुरुज मिलि छिपि के खेलें दिनवो लागे राती। पवन झकोरा…

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