का जमाना आ गयो भाया, लागत बा कि जयचंदन के फिरो दिन बहुरे लागल। अपना के फलाना भाषा के साहित्यकार कहवा के लुगरी आ लकड़ी बिटोरे में सरम ना लागे बाक़िर ओह भाषा पर अंगुरी उठावत बेरा अपना के बड़का भाषाविद बुझे लागल बा लोग। साँच के नकारे के फेरा में लोग कुछो लिखे- बोले लागत बा। लोग बुझत बा कि ई भषवा परती सरकारी जमीन ह, ओहपे कुछो करीं, धरीं, केहू कहे सुने वाला नइखे। केहू साँच बतावतो होखे त बतावत रहे, अपना कोरट के जज अपनही नु बानी,…
Read More