बड़की माई

ए बबुआ काल्ह जवन बाजारी से चीनी ले आइल रहस नु ओहमें हतना कम बा , बड़की माई तपेसर के हाथ में एगो झिटिका पकड़ा के कहली । बड़की माई त का सोचतारू हम चिनिया खा गइल बानी , अरे ना रे मटिलागाना बनिया नु डंडी मरले बा जाके ओकरा से देखइहे आगे से बरोबर दीही। आ फिर ओसहीं हो जाई त का करबु । ना नु होई ओकरा से लेबे से पहिले इयाद दिला दिहे कि पिछला बेर कम देले रह एह बेर ठीक से जोखिह ।

फिर दोसरा बेर बड़की माई पा भर सूजी मंगवले रही ले आके दे देनी आ देखे लगनी आज केतना बड़ झिंटिका आवत बा , पहिले त एक किलो रहे आज पा भर में केतना कम बा।इ सोचते रहीं तले बड़की माई आ गइली फेर से हाथ में झिटिका रहे बाकि एह बे छोट रहे ।आवते कहली ओकरा से ना कहले रहस कि पिछला बे कम जोखले रहे, फेर एह बे कम देले बा । हमा समझ में ना आवे कि जवना दोकान पो ग्राहकन के भीड़ लागल रहेला उ कम जोखके आपन धंधा काहें चौपट करी। बाकी बड़की माई अपना उसूल के पक्का कम बा त बा उनका त बाजारे जायेके ना रहे आ हम जानत रहीं कि दोकानदार सही वजन देले बा । हम टोल पड़ोस में सिधावा लइका गिनात रहीं आ सभे हमरा पो विसवास करत रहे , बाकी तनी भुलक्कड़ रहीं केहु चिठ्ठी डाले के देत रहे त पंद्रह दिन त हमरा किताब में रहत रहे फेर इयाद परला पो लेटर बक्स में डालात रहे। एह बेर बड़की माई के जरूरत रहे एक किलो दाल के त हम दोकान प से एक किलो सौ ग्राम दाल लेके अइनी आ बड़की माई के दे के उनका झिटिका के इंतजार करे लगनी , बाकी एह बेर झिटिका ना आइल। बड़की माई हमरा के बधाई देबे खातिर अइली का कहली , देख त बोलला पो ठीक से जोखले बा नु एह बे डंडी नइखे मरले तनीमनी नवते देले बा । हम खुश होके कहनी कि इ कइसे हो गइल बड़की माई तनि हमहुँ देखतीं, बड़की माई अपना घरे हमरा के ले गइली आ बड़का तरजुई निकलली जवना पो धान के ढ़ेरी तउलात रहे ओह पर एक किलो आ पा भर तउलत रही। हमरा के देखाके कहली देख तनि नवते देले बा , फिर हम थोड़ा थोड़ा निकाले लगनी सौ ग्राम निकाल देनी त बड़की माई कहली कि देख एहबार एतना जादा देले बा । तें पहिले ओकरा के हड़कवले रहिते त नतिया कम ना नु दिहित।हमरा बुझा गइल कहनी बड़की माई इ राउर तरजुई ढ़ेरी तउले वाला ह एह पो सौ डेढ़ सौ ग्राम के कम बेसी पता ना चली देख हम दाल सौ ग्राम जादा ले आइल रहीं आ हई देखीं उहे सौ ग्रामवा निकाल देले बानी अब त ठीक बा नु । त इ हमरा से पहिले काहें ना कहले हा |

सुन्दर सुभूमि भईया भारत के देशवा ……. इ कालजयी गीत हम उनके मुँह से पहिला बार सुनले रहीं ओह समय हमरा गीत के मतलब ना बुझात रहे | लरिकाईं के अधिका समय बड़की माई के संगे बितत रहे , काहें से कि उनका व्यक्तित्व में एगो खिंचाव रहे आ सबसे जाता उ हमरे पो बहुत विश्वास करत रही कवनो काम उ दोसरा से ना कहत रही| बड़का बाबूजी के मरला के बाद उ घर में अकेल हीं रहत रही, उनका देह से एगो लइकी रही जेकर बियाह बहुत प्रतिष्ठित घर में भइल रहे जीजाजी यूनिवरसिटी के एगो उच्च पद पर आसीन रहस |  बड़की माई से मिले खातिर अकसरहाँ लोग आवत रहे त हमरो खेले के संघतिया घर हीं मिलजात रहन, एक बेर बड़की माई के छोटका नाती के माउथ आर्गन खेलवना बाजत ना रहे त हमरा से कहली बबुआ एकरा के बना दे, उनका हमरा पो एतना विश्वास रहे| हम माउथ आर्गन पुरा खोल देनी पर कतहीं गीत गावे वाला ना लउकल त हार थाक के फिर से कस देनी | अब जवनो फुं फुं करत रहे उहो बंद हो गइल | आही बबुआ जवनो तनी बाजत रहे उ हो बंद क देलस तोरा से ना होखेवाला रहे त काहें खोलले हा बड़की माई खिसिआ के कहली बाकि उनका बात के हमरा दुख ना लागल आ काहें लागी गलती जे हमार रहे हमरा बिना जनले सुनले ना खोलेके चाहत रहे बाकि उनकर प्यार हमरा से नु काम करवावत रहे|

उ अपना घर में अकेल हीं रहत रही एह से कवनो बेरा उनका भीरी जाये में हमरा तकलीफ ना होत रहे , घर में चारो ओर देवाल पो भगवान के फोटो लागल रहे उनकर घर घर ना एगो मंदिर रहे आ ओह मंदिर में बड़की माई जियत मूर्ति रही | रोज सुबह केतीन बजे से भजन गावे के शुरू करीहन त जबले चिरईं ना बोलिहन स कार्यक्रम बंद ना होत रहे| निंद में जब उनकर भजन आ निर्गुन के आवाज कान में पड़त रहे त सुतले सुतल समाधी लाग जात रहे, माई हमार डांटत रही कि भिनुसार हो गइल आ अबहीं ले सुतल बाड़े , बाकि उ काजानस कि हम बड़की माई के साथ हीं तीने बजे से जागल बानी खाली शरीर खटी पो बा मन त बड़की माई के साथे भजन में मगन बा | आज बड़की माई नइखी बाकी अाजो रोज हमरा के तीन बजे जगा देली तन विस्तर पर रहेला मन  भाव में बहेला |

 

  • कन्हैया तिवारी “रसिक”

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