मन के बात

बाति कहीं कि ना कहीं

बाति मन क कहीं

मन से कहीं

क़हत रहीं

सुनवइया भेंटाई का?

 

उमेद राखीं

भेंटाइयो सकेला

कुछ लोगन के भेंटाइलो बा

कुछ लोग अबो ले

जोहते बा, त बा

 

सुनवइया मन से बा

मन के बा

जोगाड़ल बा

बिचार करे के होखे

त करीं

के रोकले बा

रोकल  संभवे नइखे

लोकतंत्र नु हवे।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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