“पढ़त -लिखत “: भोजपुरी आलोचना के कशमकश

भोजपुरी आलोचना में डॉ ब्रजभूषण मिश्र,डॉ विष्णुदेव तिवारी,डॉ सदानंद शाही आ डॉ बलभद्र के बाद डॉ सुनील कुमार पाठक एह सदी के तीसरा दशक में उभरत एगो आश्वस्तिदायक हस्ताक्षर बाड़न, हालांकि बहुत कम उमिर में ऊहां के भोजपुरी में एगो उभरत निबंधकार के रूप में आपन पहचान दे देले रहीं जब सन् 1985में”पाण्डेय योगेन्द्र नारायण छात्र निबंध प्रतियोगिता “भोजपुरी कविता के सामाजिक चेतना “विषय पर अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के 9वाँ राँची अधिवेशन में पंडित गणेश चौबे के हाथे प्रथम पुरस्कार ग्रहण कइले रहीं। सरकारी सेवा में गइला के बाद ऊहां का हाइकु छंद में कविता लिखे का ओर प्रवृत्त भइलीं आ सन् 1993 में भोजपुरी साहित्य के पहिला हाइकु संग्रह “नेवान”दिहलीं।उहां के जनम 8 फरवरी,1964ई के ह। सरकारी सेवा के अझुरहट में साहित्य सेवा मार खाला,एह में दू राय नइखे।16बरिस के अंतराल के बाद सन् 2009 में किताबघर पब्लिकेशन, मुजफ्फरपुर से हिन्दी कविता संग्रह “कविता का सर्वनाम”प्रकाशित भइल।दू बरिस बाद सन् 2011 में हिंदी निबंध संग्रह”उमड़े निबंध मेघ “प्रकाशित भइल। सन् 2020के बाद भोजपुरी साहित्य पढ़े लिखे के प्रति पाठक जी के एगो नशा लेखा चढ़ि गइल।एकरे परिणाम ह डॉ सुनील कुमार पाठक के “पढ़त -लिखत”जवन भोजपुरी कविता संग्रहन के समीक्षन के संकलन ह। भोजपुरी आलोचना में ई एगो विधागत आलोचना पुस्तक ह। भोजपुरी में प्रायः एके आलोचना पुस्तक में कविता,कहानी, उपन्यास, गीत, नवगीत,निबंध पर समीक्षात्मक आलेखन के संकलन प्रस्तुत करे के प्रवृत्ति बा।एह दिसाईं विवेच्य पुस्तक “पढ़त -लिखत”के विधागत प्रस्तुति सराहनीय बा।

“पढ़त -लिखत”दू खंड में प्रस्तुत बा –खण्ड क आ खण्ड ख।खण्ड क में छौ गो आलेख बा आ खण्ड ख में 15गो भोजपुरी कवियन के कविता संकलनन पर समीक्षात्मक आलेख बाड़ संँ।बाकी एके संकलन में गीत, नवगीत, ग़ज़ल, समकालीन कविता आदि पर समीक्षात्मक आलेखन के प्रस्तुतियो भोजपुरी में एगो नया प्रयोगे कहाई।काहे कि ग़ज़ल आ नवगीत आ समकालीन कविता के शिल्प, संवेदना, सरोकार,परंपरा, जमीन अलग-अलग होला।बात बा कि रचना होई तब नूं आलोचना होई। एगो अर्थ में आलोचना रचना के विस्तार ह।मूल होई तब नूं सूद के उमेद होई। समीक्षा में रचना के गुण -दोष के सहृदयता से विश्लेषण -विवेचन के अपेक्षा रहेला।एह ना बेसी झाल बाजे आ ना बेसी छील -छाल के बरोबर कइल जाये।

आलोचना अइसन पारदर्शी होखे कि पाठक आ सर्जक दूनों के अंतर्दृष्टि पुष्ट होखे आ साहित्य नवनिर्माण के एगो नया दिशा मिले।

खण्ड ‘क’ आ खण्ड ‘ख’से पहिले समालोचक डॉ सुनील कुमार पाठक के आत्मकथात्मक -संस्मरणात्मक भूमिका बा ‘आपन कहनाम ‘एह में समालोचक के प्रज्ञा भोजपुरी आलोचना के एगो नया दिशा देवे खातिर जबर्दस्त अंतर्द्वंद्व में उफनत बिया। बायें ना दायें,वाद में ना प्रतिवाद में,उत्तर ना दखिन;तनी मनी पछिमाहुत बाकी अपना ठांव पर अंगद पांव जमवले।एक ओर विचारधारा लउकत बा –“आज के दुनिया विचार -प्रधान बिया,तर्क आ तथ्यने के आधार पर मूल्यांकन के निकष तइयार हो रहल बा….. साहित्य में भावना आ संवेदना के साथे -साथे आज विचारो के खूब तरजीह मिल रहल बा (पृष्ठ 16)।”महाकवि तुलसीदास जी के दरवाजा खटखटावला पर ऊहां के कहनाम बा —

“जौ बरसई वर वारि विचारू,

होहिं कवित्त मुकुतामनि चारू।”

बाबा तुलसीदास के आदेश के अवहेलना कुंभीपाक के दर्शन करवाई। विचार -वारि से कविता के मुकुतामनि के चारूता आउरो बढ़ि जाई। समालोचक के जिज्ञासु मन संस्कृत के विद्वान राजशेखर से लेके हिंदी के आलोचक डॉ श्यामसुंदर दास लगे जाता।मन संतुष्ट नइखे होत। विचार, विज्ञान,दर्शन,पंछी, वनस्पति,मेघ,जल,जीव कुल्हि मानव निर्मित सरहद के अतिक्रमण करत रहेला।बाजार त सीमा सरहद मनबे ना करे,ऊ त राजपाट उलाट के आगे बढ़ि जाला।त समालोचक विचार खातिर सरहद पार करत बानीं,ऊहां के जात बानीं इन्साइक्लोपीडिया ‘ब्रिटेनिका’, इंग्लिश कवि -आलोचक जॉन ड्राइडेन (1908.08.1631–12.05.1700 जेकर काव्य प्रतिभा कविता में गीतात्मक तत्वन के आलोचना कइले बा),मैथ्यू आर्नल्ड (सन् 1822–1888), सैमुअल टेलर कॉलेरिज (सन् 1772–1834ई),ईवर आर्मस्ट्रांग रिचर्ड्स (सन् 1893–1979),टामस कार्लाइल (सन् 1795—1881),आदि।एगो आउर अधूरा नाम बा वर्सफोल्ड के।गूगलो कुछ बतावत नइखे। विदेशी विद्वानन के पूरा नाम कोष्ठक में कालावधि सहित होखे से पाठक के सुविधा होला।अधूरा विवरण से पाठक के मन आतंकित होला। एगो धारणा बनता कि समालोचक विदेशी आलोचना के खूब अध्ययन कइले बानीं। भोजपुरी पाठक के ई प्रेरणो मिलत बा कि खूब पढ़े के चाहीं।एह सूची में भारतीय काव्य आलोचकन के नांव ना मिले से मन तनी मनी निराश होता।

“पढ़त -लिखत”के लेखक भोजपुरी आलोचना में दिशा निर्देश खातिर संस्कृत वाङ्मय के आलोचक के चार प्रवृत्तियन के स्मरण करवले बानीं –(१)काक वृत्ति,(२)कोकिल वृत्ति,(३)मधुकर वृत्ति,(४)हंस वृत्ति। आलेख में एह वृत्तियन के कवनो उदाहरण नइखे।

आपन कहनाम में ओह तमाम भोजपुरी पत्र पत्रिकन के उल्लेख बा जे भोजपुरी आलोचना के समृद्ध कइले बा।एही तरे ऊ तमाम भोजपुरी आलोचना -समीक्षा ग्रंथन के प्रकाशन सहित उल्लेख बा।एही क्रम में भोजपुरी शोध ग्रंथन के भी उल्लेख बा। सरकार भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुसूची में शामिल करो भा मत करो, भोजपुरी भाषा के हर विधा विकसित हो रहल बा। भविष्य के शोधार्थीन खातिर ई सूची बहुत उपयोगी बा।एह श्रमसाध्य कार्य खातिर लेखक बधाई के पात्र बाड़न।

खण्ड -‘क’के पहिला आलेख ‘मातृभाषा के सवाल बा ‘।एह में जनपदीय भाषा ‘भोजपुरी के पक्ष में मजबूत तर्क बा,साथ हीं सत्ता के संरक्षण ना मिलला से भोजपुरी राजस्थानी अइसन समर्थ जनपदीय भसन पर आसन्न खतरा का ओर भी संकेत बा।

खण्ड -‘क’के दोसर आलेख बा:”गाँधी बाबा दुलहा बने हैं”। ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्ति खातिर भारतीय जनता के संगठित करे में महात्मा गाँधी के बहुत अवदान बा। बिहार के चंपारण में गांधी जी सत्याग्रह के श्रीगणेश कइलीं।ओह सत्याग्रह के भोजपुरी जनमानस पर अमिट छाप बा। भोजपुरी लोकमानस अपना भाषा में महात्मा गाँधी के खूब इयाद कइले बा,उनुकर खूब गुनगान कइले बा। महात्मा गाँधी के प्रति लेखक के नज़रिया के ई प्रमाण बा।

तीसरा आलेख महान स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद बाबू कुँवर सिंह के वीरतापूर्ण बलिदान पर केन्द्रित बा। भोजपुरी जनमानस में बाबू कुंवर सिंह के लोकप्रियता के प्रमाण ऊहां पर भोजपुरी में रचित विपुल साहित्य बा।हर समाज अपना नायक के संघर्ष के अइसहीं इयाद करेला।ई आलेख शोधपूर्ण आ श्रमसाध्य बा।एह में बाबू कुंवर सिंह पर रचित होली,चइता,धोबी -गीत,पँवरिया,मानर,पँवारा,कजरी,खेल -गीत,घनाक्षरी,प्रबंध काव्यन के उल्लेख बा।बाबू कुंवर सिंह के लोकप्रियता भोजपुरी समाज के हर जाति -वर्ग में बा। भोजपुरिया समाज के अस्मिता -प्रेम के गहन समाजशास्त्रीय अध्ययन उल्लेखित रचनन के आधार पर संभव बा। भोजपुरिया समाज के जातीय सांस्कृतिक दृष्टि के समझे में ई आलेख सहायक बा।

चउथा आलेख “एही ठइयां झुलनी हेराइल हो रामा”चइता गीतन पर केन्द्रित बेजोड़ आलेख बा। ई आलोचना से बेसी समालोचक के रम्य रचना बा।ऐन्द्रिक वर्णन से आलेख सुशोभित बा। महाकवि कालिदास के ऋतु संहार, रीतिकालीन बिहारीलाल,पदमावत के जायसी, कबीरदास, धर्मदास,दरिया साहब,संत केशोदास के निर्गुनिया चइता गीतन से खूब मुलाकात होता।

पाँंचवा आलेख”बासमती चाँंदनी उबीछ दीं त कइसे “भोजपुरी नवगीत के उदगम आ विकास पर केन्द्रित बा। हिंदी नवगीत के प्रथम प्रस्तोता ‘गीतांगिनी’के संपादक राजेन्द्र प्रसाद सिंह (मुजफ्फरपुर, बिहार) के मानल जाला (5फरवरी,1958के प्रकाशित गीतांगिनी)।बाद में शंभुशरण सिंह दावा पेश कइलन कि ऊ सन् 1951-52में काशी में नौका -गोष्ठी में नवगीत सुनवले रहलन।ऊ आउर कहलन कि 1956में इलाहाबाद में परिमल के काव्य गोष्ठी में नवगीत संज्ञा के प्रयोग कइले रहलन। हिंदी में ई विवाद चलत रहल कि नवगीत के पहिला प्रस्तोता राजेन्द्र प्रसाद सिंह रहलन कि शंभुशरण सिंह।जे जादे दिन जिही ऊ जीतबे करी।अइसने विवाद भोजपुरी नवगीत के बारे में ह कि भोजपुरी नवगीत के पहिला प्रस्तोता के ह डॉ विश्वरंजन (15.01.1940–16.07.1999ई)कि डॉ उमाकांत वर्मा (1931–07.08.1999)। आलेख में भोजपुरी के 24गो नवगीतकारन के नाँव बा। भोजपुरी में एगो आदत बा कि लेखक/कवि/गीतकार/आलोचक आदि के नांव के आगे कोष्ठक में उनकर कालावधि के जिक्र ना रहेला।ई जुटावल बड़ा कष्टसाध्य बा,बाकी करे के त पड़बे करी। डॉ विश्वरंजन के एगो कथन अकाट्य बा कि “भोजपुरिया लोग हिंदी में नवगीत लिखत रहे,उहे लोग हिंदी नवगीत के कामयाबी से प्रेरित होके,अपना भाषा भोजपुरियो में ‘नवगीत’ रचना शुरू कइल लोग।”एहिजा एगो विवेचना अपेक्षित रहे कि स्वतंत्रता के पश्चात छठा दशक के अंत (1958) में हिंदी -भोजपुरी दूनों काव्यधारा में परंपरागत काव्यरूप गीत के छोड़ि के नवगीत काव्यरूप अपनावे के कवन ऐतिहासिक सामाजिक सांस्कृतिक कारण रहे?का परंपरागत गीत अपना समय आ संदर्भ के चित्रित करे में असमर्थ/असफल हो गइल रहे?गीत आ नवगीत के काव्यवस्तु आ अंतर्वस्तु में का फर्क बा?काव्यरूप के बदल जाये से कवित्व चेतना में विकास मान लिआई?

एह आलेख के अंत विजेंद्र अनिल (21.01.1945—03.11.2007) के जनगीत से भइल बा। हालांकि समालोचक जनगीत के नवगीत कहे में सुविधा महसूस करत बाड़न।एह लेख में डॉ तैयब हुसैन ‘पीड़ित’, विजेंद्र अनिल, कैलाश गौतम, डॉ ब्रजभूषण मिश्र, कमलेश राय के एके पांत में राखल बा। कैलाश गौतम के एगो हिंदी नवगीत पढ़ी —

“कंडे बीन रही है/झुनियां देखो सूखे ताल में।

आग बरसती,लू चलती है,कितनी तेज न जाने।

अपना काम इसे सौंपा है। विधवा बूढ़ी मां ने।

बात -बात में चित हो जाती। पांच रूपली में सो जाती।

जैसे इसकी मां सोती थी,कभी पाव भर दाल में।

नवगीतकार कैलाश गौतम के उक्त नवगीत के अंतर्वस्तु पर विचार करीं आ आजु के नारी अस्मिता पर विचार करीं। कंडे बीन के जीवन यापन करेवाली,अदम्य जिजीविषा वाली, संघर्षशील झुनियां के शारीरिक शोषण आ अमानवीय यातना के कैलाश गौतम पुश्तैनी धंधा घोषित कइके शोषक -शासक समाज के वर्गीय मानसिकता के परिचय देले बाड़न।एह प्रतिगामी, प्रतिक्रियावादी,सामंती सोच के नवगीत में कतना रस झरत बा! भोजपुरी में सक्रिय अनेक नवगीतकार लोग के नांव बा।

समालोचक डॉ सुनील कुमार पाठक नवगीतकार शंभुनाथ सिंह (1916–1991) द्वारा घोषित ‘नवगीत के प्रतिमान ‘से लगभग सहमति जतावत बानीं।शंभुनाथ सिंह अपना पचहतरवां वर्षगांठ के अवसर पर नवगीत के घोषणापत्र जारी कइले रहीं जवना में 17गो प्रतिमान तय कइले रहीं —(१)छांदसिक लयात्मकता जे गेयता से भिन्न होखे,(२)संवेदनधर्मिता आ संस्पर्श शक्ति,(३)ग्राह्यता आ स्मरणीयता,(४)सम्प्रेषणीयता,(५)बिम्बधर्मिता भा चित्रात्मकता,(६)अनलंकृति आ सादगी,(७)खुलापन अर्थात स्वायत्तता भा प्रतिबद्धता,(८)लोक संपृक्ति आ जन के प्रति संसक्ति,(९)भारतीयता के चेतना आ जातीय बोध,(१०) यथार्थ प्रसंग, विसंगतियों के दर्द आ सामाजिक पीड़ा के अभिव्यक्ति,(११)जीवन के केन्द्र में मानव के प्रतिष्ठा,(१२) भारतीय ढ़ग के आधुनिकता बोध,(१३) ऐतिहासिक आ सांस्कृतिक चेतना,(१४)परंपरा के भीतर से जनमल नवता,(१५)सौंदर्य, प्रेम आ मानवीय भावस्थितियन के जीवनी शक्ति के रूप में स्वीकृति,(१६)जीवंतता आ गत्यात्मकता एवं (१७)आम आदमी के कविता।

विद्वान समालोचक डॉ सुनील कुमार पाठक आलेख के समाहार करत शंभुनाथ सिंह के नवगीत के प्रतिमानन के एगो संशोधन के साथे दोहरावत प्रस्तुत कइले बानीं।शंभुनाथ सिंह के सातवां प्रतिमान “प्रतिबद्धता”के अप्रतिबद्धता क देले बानीं (पृष्ठ -७६)।ई बदलाव विचारणीय बा। दसवां प्रतिमान “यथार्थ प्रसंग”भी संपादित बा। आलेख विचारोत्तेजक बा।

विवेच्य पुस्तक के खण्ड -‘क’के अंतिम आलेख बा –“कोरोजीवी कविता भोजपुरी के”।एह आलेख में कोरोना काल के दौरान लिखित रचित भोजपुरी के कवितन,गीतन,ग़ज़लन के सकारात्मक नकारात्मक पहलुअन के मानवीय दृष्टि से बेबाक विश्लेषण विवेचन बा। कोरोना काल के जवन कविता जाति,धर्म,रंग,रूप,भाषा आदि हर तरे के विभेदन से मुक्त एगो विवेकपरक आ वैज्ञानिक मानवीय जीवन दृष्टि सम्पन्न समाज के सपना आ उम्मीद के पक्ष में सृजित बिया,ओकर भूरि भूरि प्रशंसा एह आलेख में बा।लेखक के विश्लेषण बा कि “भोजपुरी के कोरोजीवी कविता के अंतर्वस्तु के फलक बहुते व्यापक बा आ एकर संरचनो में विविधता बा।पीड़ा आ दर्द के अभिव्यक्ति प्रायः साफ -सूथरा आ पारदर्शी बा।एह से एकनी में बिम्बधर्मिता आ प्रतीकात्मकता के गुंजाइश कमे बा।”

आलेख में भोजपुरी पत्रिका”हम भोजपुरिया “के लगातार छपल पाँच अंकन में छपल ‘कोरोना कवितावली’स्तंभ में छपल कवितन के व्यापक समालोचना बा। कोरोना काल में भय,निर्वासन आ मउअत के अनुभूतियन से मनई रोज -रोज गुजरत रहे।ऊ अकुलाहट आ उबियाहट महसूस करत रहे।एकाकीपन के बोध तारी रहे भोजपुरी के समकालीन कवि लोग ओह भय, निर्वासन,मउअत,उजबुजाहट,ऊब आ एकाकीपन बोध से संघर्ष करत मनई पर कविता लिखलक। आलेख में डॉ सदानंद शाही, डॉ धर्मप्रकाश मिश्र, अशोक कुमार दीप, डॉ बलभद्र, रंजन विकास, डॉ शशि कुमार सिंह ‘प्रेमदेव’,भगवती प्रसाद द्विवेदी,माधवी उपाध्याय, संध्या सिन्हा ‘सूफी’,सरोज त्यागी,दिवाकर उपाध्याय आदि के कविता गीत ग़ज़ल के व्यापक उल्लेख विश्लेषण बा।

भोजपुरी के कोरोना कालीन कुछ कवितन के पढ़ि के समालोचक के बहुत निराशा भी होता।एह प्रसंग में आलोचक के निर्मम टिप्पणी बा,”कोरोना पर कविता मतलब कइगो कवि लोग गाय पर लेख लिखे के बुझ लेले बा”।आपदा में अवसर तलाशेवाली राजनीतिक जुमलेवाजी पर निर्मम टिप्पणी बा। डॉ बलभद्र के फेसबुक वाल से उधृत एगो कविता पर मंतव्य बा:”भोजपुरी के ई कोरोनाजीवी कविता श्रम के मूल्य आ मजदूर मेहनतकश के जिनिगी के बड़ी भरोसा आ विश्वास के साथ देख रहल बिया आ ओकरा संघर्ष के भविष्य खातिर मनुष्यता के थाती मान के चल रहल बिया”।

विवेच्य पुस्तक के दोसरा खण्ड-‘ख’में भोजपुरी कविता के 15गो दमदार कृतिकार लोगन के कविता/गीत/ग़ज़ल पर समीक्षात्मक आलेख बाड़े सँ। समग्रता में विचार कइला पर एह आलेखन से अंतर्ध्वनि आवता कि समालोचक स्वयं आधुनिक भोजपुरी कविता के एगो नया प्रतिमान गढ़े खातिर जद्दोजहद कर रहल बाड़न। भोजपुरी आलोचना खातिर ई शुभ संकेत बा एह खातिर ऊ महाकवि तुलसीदास से लेके पाश्चात्य सौंदर्यशास्त्रीयन तक जात बाड़न, भारतीय काव्यशास्त्रीयन से लेके आधुनिक हिंदी कवि त्रिलोचन, केदारनाथ सिंह, नागार्जुन,अरुण कमल, श्री प्रकाश शुक्ल तक जाताड़न।उक्त कवियन में नागार्जुन आ त्रिलोचन के छोड़ि के सभ नागर बोध के कवि ह लोग।एगो नाम उल्लेखनीय बा: डॉ बलभद्र।इनकर कविता संग्रह “कब कहलीं हम”के समीक्षा बा:”जतिए भइल जहमतिया,ना ढोयले ढोआला ना इजतिया”। उदारतावाद आ वेश्वीकरण,मशीनीकरण,छँटनी,निजीकरण के एह जुग में जहां युद्धक विमानन से लेके कविता कथा के फॉर्म आ अंतर्वस्तु तक के आदान-प्रदान हो रहल बा,ओहिजा समालोचक के काव्य -दृष्टि में “आयातित माल से ती वितृष्णा बा। समकालीन कवि बलभद्र के कविता संकलन”कब कहलीं हम “(2015) के बारे में मंतव्य बा कि “बलभद्र के कविता भोजपुरी जन -जीवन में एकतरहीपन…देखे के नइखे मिलत।….विषय -वस्तु में विविधता,भावाभिव्यंजना में तरलता बा।”

“खरकत जमीन आ बजरत आसमान”भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ब्रजभूषण मिश्र के कविता -संग्रह (एही नाम से) के समीक्षा ह।एह संग्रह में 28गो मुक्तछंदी कविता संगृहित बाड़ी सँ,बाकी दोसर दोसर काव्यरूप के कविता बाड़ी सँ।संकलन के एगो कविता ‘कविता’के व्याख्या बा जवना में समालोचक के हिंदी के कवि निराला के कविता इयाद आवता।एगो नयी काव्य धारा ‘नवबोधी कविता ‘के आलोचक पाठक जी उल्लेख करत बानीं।’नवबोधी कविता ‘भोजपुरी आलोचना में एगो नया प्रत्यय बा,जवना के विशेषता “शब्दन में नया -नया अर्थ के विधान”कहल गइल बा।ओइसे कवि -गीतकार -ग़ज़लकार डॉ ब्रजभूषण मिश्र के गीत जनगीत के करीब ना समतुल्य बा,बाकी समालोचक उनुका के जनगीतकार गोरख पाण्डेय, रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’,केशव रत्नम, विजेंद्र अनिल के पांति में बइठावे में हिचकिचात बाड़े। संग्रह के अन्य काव्य रूपन के व्याख्या सटीक बा।

विलियम वर्ड्सवर्थ (1770–1850), के काव्य दृष्टि समीक्षक के अति पसंद बा।टी.एस.इलियट(1888–1965) के वर्ड्सवर्थ के काव्य दृष्टि के बारे में अभिमत बा:”वर्ड्सवर्थ भाव से इतने आविष्ट हैं कि काव्य के लिए विचार को अनावश्यक ही नहीं; अवांछनीय भी मानते हैं और कहते हैं कि बुद्धि काव्य की हत्या कर देती है (पृष्ठ 209, पाश्चात्य काव्य शास्त्र: देवेन्द्र नाथ शर्मा)।इलियट के मत बा:”महान कवि और महान काव्य में भाव और विचार का, भावुकता और बौद्धिकता का, वैयक्तिकता और परंपरा का, समकालीनता और शाश्वतता का समन्वय रहता है।”आ.देवेन्द्रनाथ शर्मा, के एह प्रसंग में कथन बा:”हिंदी साहित्य के संदर्भ में…. तुलसीराम एकीभूत संवेदनशीलता के सर्वश्रेष्ठ निदर्शन सिद्ध होते हैं। उनमें भाव और विचार का विचार का जैसा अद्भुत समन्वय है,वैसा किसी भी दूसरे कवि में नहीं है।…. प्रायः पूरे रीतिकाल में विचार पक्ष गौण है। द्विवेदी युग में विचार का प्राधान्य है तो छायावाद युग में भाव का।”कहे के मतलब बा कि भोजपुरी कविता ना हिंदी के छायावाद युग में लवटी ना विलियम वर्ड्सवर्थ के काव्य दृष्टि ओकर आदर्श होई।

भोजपुरी में समकालीन कविता खूब लिखाइल आ आजुओ लिखा रहल बा,बाकी ओकर चरचा कम होला चाहे ना होला।समीक्षक डॉ सुनील कुमार पाठक ‘पढ़त-लिखत’में समकालीन भोजपुरी कवि लोग पर यथेष्ट ध्यान देले बानीं।एह सिलसिला में प्रो ब्रजकिशोर, भूतपूर्व संपादक ‘भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका ‘आ’जौ जौ आगर ‘के वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी के काव्य संकलनन पर विवेच्य पुस्तक में मजीगर चरचा बा।

“पढ़त -लिखत”के खण्ड -‘ख’के पहिला आलेख ‘बिसरइह जनि जब चलि जाईं “में भोजपुरी में पाँच पुस्तकन के प्रणेता, स्वतंत्रता सेनानी,चिकित्सक डॉ राम विचार पाण्डेय (3.03.1900–05.02.1988) के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर केन्द्रित बा।

“चहकत प्रान मधुप मन डोलत”प्रेम प्रकृति के गीतकार अनिरुद्ध जी के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर केन्द्रित बा।खण्ड ‘ख’के तीसरका आलेख “हम त राही हईं,रूकीं कबले”भोजपुरी के ख्यातिलब्ध ग़ज़लकार, दोहाकार, भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका के भूतपूर्व संपादक आ भोजपुरी के चर्चित उपन्यास “फुलसुंघी”के रचयिता पाण्डेय कपिल के व्यक्तित्व आ कृतित्व बा केन्द्रित बा।किताब के सबसे छोट आलेख इनीके पर बा।तबो लेख के लंबाई चौड़ाई के ममिला में पाण्डेय कपिल जी गांधी बाबा के समतुल्य बानीं।

पं अक्षयबर दीक्षित जी (02.07.1930—13.01.2020) भोजपुरी साहित्य के अनन्य सेवी रहीं।ऊहां के भोजपुरी के कवि, कथाकार, निबंधकार,समीक्षक,संगठक,यात्री आ शिक्षाविद् रहलीं।’पढ़त-लिखत रहीं,गुनत मथत रहीं “आलेख में दीक्षित द्वारा प्रेषित प्रथम ग्रंथ ‘अंगऊं'(१९७७) में संकलित ११गो कवितन के समीक्षा बा।समीक्षक के कथन बा कि एह कवितन में भाव आ विचार के विविधता,कल्पना के नवीनता,रस के प्रवहमानता आ शिल्प के सौष्ठव देखे लायक बा।

“तन के दीप नेह के बाती,जरी देस खातिर दिन राती “चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह ‘आरोही'(२३.०१.१९३८—१७.०४.२०१५) भोजपुरी के बहुत बड़ रचनाकार रहीं।काव्य के हर रूप विधा में ऊहां के पुस्तकाकार रचना बाड़ी सँ। भोजपुरी गद्य में भी ऊहां के अविस्मरणीय अवदान बा। विवेच्य आलेख में चौधरी जी के कविता संग्रह”माटी करे पुकार ‘के विस्तृत समीक्षा बा।

सूर्यदेव पाठक ‘पराग’संस्कृत, हिंदी आ भोजपुरी के सशक्त हस्ताक्षर हईं।’पराग’जी के जनम ३मार्च,1943ई के ग्राम बगौरा जिला -सिवान, बिहार में भइल रहे। भोजपुरी में ऊहां के (१)हीरोचित मानस (हास्य व्यंग काव्य,1978),(२)भँवर में नाव,(ग़ज़ल संग्रह,2003),(३) अलग-अलग रंग (गीत -नवगीत संग्रह,2009),(४)अंजुरी भर फूल (रूबाई संग्रह,22009),(५)भइल भोर (बालगीत संग्रह,2009),(६)अछूत (उपन्यास,1986),(७) जंजीर (नाटक,1994),(८) प्रश्नचिन्ह (कहानी संग्रह,1998)(९)तिरमिरी (लघुकथा संग्रह,1994)आदि प्रकाशित बा।”विचार के झोरी जथारथ के जमीन पर”में ‘पराग जी के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर चरचा बा।

‘पाती’ के यशस्वी संपादक डॉ अशोक द्विवेदी हिंदी -भोजपुरी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हईं।”पढ़त -लिखत”में ‘कवि!तू धरती राग लिख ‘उनके व्यक्तित्व आ कृतित्व पर केन्द्रित बा।ऊहां के भोजपुरी पत्रकारिता आ साहित्य में अपूर्व योगदान बा। समालोचक डॉ सुनील कुमार पाठक विवेच्य आलेख में द्विवेदी जी के कृति “अढ़ाई आखर”(कविता संग्रह,1978)’फूटल किरिन हजार (गीत ग़ज़ल संग्रह,2004),’कुछ आग कुछ राग ‘(कविता संग्रह,2014),’रामजी के सुगना ‘(निबंध संग्रह),’गाँव के भीतर गाँव'(कथा संग्रह,1998),’आव लवटि चलीं ‘(कथा संग्रह,2000),’भोजपुरी रचना आ आलोचना ‘(समालोचना,2019) उल्लेख कइले बानीं।एह में डॉ अशोक द्विवेदी के तीसरका कविता संग्रह ‘कुछ आग कुछ राग ‘के विस्तृत समीक्षा बा।

एकरा अलावे विवेच्य पुस्तक में वरिष्ठ कवि डॉ तैयब हुसैन ‘पीड़ित‌‌‌ ‘, डॉ जौहर शफियाबादी,शायर तंग इनायतपुरी, प्रकाश उदय, के कविता संग्रह पर विशद समीक्षा बा।

पुस्तक के नांव:पढ़त -लिखत

लेखक: डॉ सुनील कुमार पाठक

प्रकाशक:सर्व भाषा ट्रस्ट,नई दिल्ली -59

जे.-49, स्ट्रीट नं 38, राजापुरी मेन रोड

उत्तम नगर

ई मेल -sbtpublication@gmail.com

मूल्य:₹229.00अजिल्द

समीक्षक: जितेन्द्र कुमार,आरा,मो नं 9113426600

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