[पढ़े के पहिले निहोरा-भोजपुरी लोकचेतना के बानी हियऽ।सामूहिक चेतना के ।इहाँ कवनों प्रवृत्ति के उभरत- पसरत देर ना लागे।इहाँ जवन होला भा लउकेला ऊ सामूहिक चेतने से निकसिये के कहीं पइसारो पावेला।एह से एह आलेख के ओही नजरिया से पढ़ल जाये के चाहीं।तबे आनंद मिली।कवनों बात के अपने पर लोकल ओतने बेजाँय हऽ जेतना अपना खुशामद पर अगरा के आसमान छूये खातिर उछले लागल।]
हमनीं से जिन अझुरइहें हबकि लिहब ~~~~~~~~~~~○○~~~~~~~~~~
भोजपुरी में एगो त पढ़ के लिखे वाला मनइये कम बाड़न आ जिन बड़लो बाड़न ऊ अपना के केहू ‘इक्लोपीडिया’ मान लेले बा त केहू रामचंद्र शुक्ल आ केहू नंददुलारे वाजपेयी।जबकि ई वास्तविकता बा कि एमें के केहू ना रामचंद्र शुक्ल लेखा ज्ञानी बा ना विद्वान ना समझदार। इहाँ के विद्वान लोग अपना पैसा से खरीद के अखबारो ना पढ़े बाकिर विश्व राजनीति पर पूरा अधिकार से प्रवचन करेला।एजवा के विद्वान लोग दूगो किताब हिन्दी के पढ़ि के ओकरे अनुवाद करि के ओकरे के गरिआवत भोजपुरी के विद्वान बने लागेला।अंग्रेजी आ संस्कृत के ज्ञान आपवादिक तौर पर टापाटोइया भले एकाध जने लगे होखे बाकिर कोटेशन में अंग्रेजी आ संस्कृत डाल के एहू भाषा पर अपना ज्ञान के परिचय बघारे लागेला।एजवा ज्ञान के बात कम बतकूचन जादे होला।पढ़े-लिखे वाला के दुरदुरा के भगावे में एह घेरौंदा के लोग ओसहीं माहिर बाड़न जइसे एक टोला के भौं-भौं वाला के दोसर टोला के भौं-भौं वाला चहेट के भगा देलन।एजवा के इनारन में खूब भांग घोराइल बा आ ओकर सेवन करिके मेंक-माक,मेंक-माक करेवाला पिअरका ढबुसवो लोग के कमी नइखे!
इहाँ राजनीति के सेवक लेखाँ भोजपुरियो के सेवक मजिगर भेंटालन।केहू कही कि हम पचास साल से भोजपुरी के सेवा में लागल बानीं त केहू कही हम साठ साल से। मतलब कि एह साठसाला के केहू बात काटी भा ना मानीं त ऊ आपन चोंत गिरा दीहें ओकरा मुँहे पर।आ एहू से ना मानीं त आपन पोसुआ लोहकार दींहे जवन केहू के देहे नोंच लीहे सं।
एजवा चेलवाहियो खूब चलेला।चेला पोसे के आ आ अपना के गुरु कहवा के गरूर में अईंठत मठाधीश कहवावे के मूरखपन भरल दंभ पालहूँ वाला ढेर मिल जइहन।
भोजपुरी में फतवा जारी करे के लमहर परम्परा आजुओ बड़ा कायदा से जारी बिया। फलनवा हमरा गुट के हउवन त ऊ उहे बानी बोलिहें जवन उनकरा गुट के पैगम्बर बोलत बाड़ें।
एजवा जात-जमात के लंगा-नाच लौंडा नाच ले बेसी जमेला।एजवा के चैता- गायन में जनानी नचनिया से सटल छीटा बजावत गवैया खूब मिल जइहें।गायक- गायिका लोग एजवा गावत-गावत नाचे लागेला आ नचनिया लोग नाचत-नाचत गावे लागेला।ठीक ओइसहीं जइसे सम्मेलन के झोरा ढोवे वाला लोग एजवा हर अगिला साल विद्वान लेखक बनि जाला।एह इलाका में एह साल के खलासी अगिला साल डरेवर हो जालें। एह साल गिलवा- मसाला बनावे वाला अगिला साल राजमिहतिरी हो जालें।एह साल के कम्पाउन्डर अगिला साल डाकडर बनि जाले।परमोशन घड़ाक -धड़ाक मिलेला एजवा ।
भोजपुरी क्षेत्र में जनाना लोग जाँत चलावल आ जँतसार गावल छोड़ दिहल बाकिर मरद लोग एह परम्परा आ जँतसार -संस्कृति के अपना में बखूबी जिआ के रखले बा। मरद लोग के जँतसार-संस्कृति में भींगे-नहाये के होखे त फेसबुकिया पोस्ट के महाकुंभ में उतरि के आपन जनम सवारथ कइल जा सकेला।
भोजपुरी के एके गो सपना बा आ एके गो संकल्प। एही के नींनी भोजपुरिहा सूतेलें आ जागेलें।बाकिर एने एहू प्रसंग में शोध शुरु हो गइल बा कि एह माँग के अपना कंठे कढ़ावे वाला पहिलका परानी के रहे आ भोजपुरी आन्दोलन के पहिला धरनार्थी के हऽ? एजवा अपना-अपना गुट के पहिलका बनावे खातिर होड़ लागल रहेला। बाकिर ‘इक्लोपीडिया देवता’ जेकरा के जवन कहिहें उहे ‘ऊ ‘रही त ठीक ,ना त ऊ सराप दीहें तऽ ओह बबुआ-नवहा के पनकल-पसरल त दूर ,उनका मउरातो देरी ना लागी!
भोजपुरी में एगो हवाईयो बाबा बाड़ें ।जेकरे ना तेकरे के आपन बीरुदावली सुनाके मोहे लागेलें ।कुछ लोग इनका के ‘सेलीब्रेटी बाबा’ कहेला।एह ‘भोजपुरी-भाग-विधाता बाबा’ के कहनाम बा कि भोजपुरी के भाग अब जल्दिये जागेवाला बा। देश के भाग जगावे वाला सिरमौर लोग के अब ऊ समझा देले बाड़ें ।ऊ लोग मान गइल बा। भोजपुरी के सिकहरा चढ़े में अब कवनों देरी नइखे।
भोजपुरी के ‘कॉमिक पोएट्री’ वाला एगो अवड़धत्त फॉरेन रिटर्न पोएट के कहनाम बा कि उनकरा पोएट्री के लमहर परम्परा आ भविष्य बा भोजपुरी में । ऊ जवना के कविता कहिहें बस उहे कविता रही बाकिर सब छँटा जाई।
अब हमार ई ललित-कलित-गलित-सड़ित-तड़ित-गणित निबंध अब एजवे खतम हो रहल बा।हमरा के विद्यानिवास मिश्र, विवेकी राय भा हरिशंकर परसाई ना कहेब अपने सभे तऽ हम मुँह फुला लेब आउरो बड़का अकरहर-अनुष्ठान नाध दिहब। हमरो एगो मठिया चलावे के मन बा। भरती खातिर अप्लाई के डेट निकले वाला बा। हिन्दी में ‘नयी वाली हिन्दी’ के एगो दुकान खुलल बा , पटना पुस्तक मेला में देखले होखबि अपने सभे। अब नयी वाली भोजपुरियो के खुले वाला बा। हिन्दी नकली भाषा हियऽ ,टकसाली भाषा हियऽ,हमनी सेल्फमेड। खाँटी मौलिक। निहायत नेचुरल। हमनीं से जिन अझुरइहें हबकि लिहब।
-सुनील कुमार पाठक