अंगार पड़ गइल

का जमाना आ गयो भाया,आजु कल त सभे के सेस में बिसेस बने के लहोक उठ रहल बा। भलही औकात धेलो भर के ना होखे। सुने में आवता कि एगो नई-नई कवयित्री उपरियाइल बानी आ कुछ लोग का हिसाब से उ ढेर नामचीन हो गइल बानी । मुँह पर लेवरन पोत के मुसुकी मारल उहाँ के सोभाव में बाटे। कुछ लोग त उनुका एगो अउर सोभाव बतावेला। कबों रेघरिया के त कबों लोर ढरका के, कबों जात-धरम के पासा फेंक के एगो-दू गो कार्यक्रम में अतिथिओ बनि के जाये लगल…

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बूड़ल बंस कबीर

1 तीन तिरिखा- देह, मन के, तत्त्व के। रूप-रस-धुनि-गंध-परसन तीर रहलन सत्त्व सारा देह के, आदिम समय से। भटक जाला बेबसी में अनवरत मन, भाव के फैलाव-घन में। चिर तरासा अस बयापल तत्त्व के बुनियाद में, कन परस्पर डूब रहलन तिश्नगी में। के कही कि के पियासल- नदी-जल कि माछरी? बेअरथ जनि हँस कबीरा। 2 छोटीमुटी गुड़ुही में बुलुकेला पनिया, छलछल गुड़ुही के कोर। पनिए से उपजलि नन्हींचुकी जीरिया, जीरिया भइल सहजोर। सातहूँ समुन्दर के सोखेली मछरिया मछरी में छुपल अकास। अँखिया में मचलेली नन्हीं-सी बुँदनिया, बुँदनि के मिटे न…

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