दूभर कइलस चलल डहरिया हो रामा
कलही मेहरिया ॥
गाँव के रसता अचके भुलाइल
जिनगी में उ जहिया से आइल
भूल गइल अपनों सहरिया हो रामा
कलही मेहरिया ॥
केहुके न छोड़लस एकहु बाकी
कोना अंतरा गउंखा झाँकी
ननदो पर ढारत कहरिया हो रामा
कलही मेहरिया ॥
भाई भतीजन के देखते खीझे
देवरो पर ना उ तनिको रीझे
तूर दीहलस घर के कमरिया हो रामा
कलही मेहरिया ॥
भोरही से उठिके पढ़ेले रमायन
सास ससुर के गरिए से गायन
जिनगी बनवलस जहरिया हो रामा
कलही मेहरिया ॥
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी