सप सप चले ले लुअरिया हो
सखि ! मध दुपहरिया।
कइसे बचाईं जवरिया हो
सखि ! मध दुपहरिया॥
एकहू बाग बगइचो ना बाचल
नदी नार पोखर नइखे सवाचल
बन्हओ क टुटल कमरिया हो।
सखि ! मध दुपहरिया॥
हरियर बनवा सपन होई गइलें
सहर आ गउवाँ प्रदूषित भइलें
गरमी के बढ़ल कहरिया हो।
सखि ! मध दुपहरिया॥
चिरई चुरमुन के असरा बिलाइल
बिरवा के सँगे कियरियो सुखाइल
घरवो में डाहे लवरिया हो ।
सखि ! मध दुपहरिया॥
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
5/6/2022