इ भाषा बदे ही तमाशा चलत हौ
बिना बात के बेतहासा चलत हौ
इहाँ गोलबंदी, उहाँ गोलबंदी
बढ़न्ती कहाँ बा, इहाँ बाS मंदी ।
कटाता चिकोटी सहाता न बतिया
बतावा भला बा इ उजियार रतिया
कहाँ रीत बाचल हँसी आ ठिठोली
इहो तीत बोली, उहो तीत बोली ।
मचल होड़ बाटे छुवे के किनारा
बचल बा इहाँ ना अरारे सहारा
बहत बा दुलाई सरत बा रज़ाई
न इनके रहाई न उनके सहाई।
भगेलू क इहवाँ बनल गोल बाटे
सुमेरु क उहवाँ बनल गोल बाटे
दुनों के दुनों ना भगीरथ कहालें
सभहरे क दुख देख गंगा नहालें ।
घरे मे इहाँ पे उठल बाS हल्ला
इहाँ हउवन जुटल लखेरा निठल्ला
कबों बुनत बाना,कबों मारत ताना
कहीं निगहबीनी कहीं बा निशाना ।
करीं काम भाषा क होवे बड़ाई
शुरू होत जमके लिखाई पढ़ाई
इ भाषा बनै सिरजना कै निशानी
सँवारे सही से सभेके जवानी ।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी