ईयाद करी छठी माई के गीत “ पांचऽ पुतऽर आदित हमारा के दिहिना, धिअवा मंगिले जरुर” छठ माई के परब करेवाली आजुओ ई गाना गावेली. आ सुनहु में ई गाना के बड आनन्द आवेला. यानी कि जब ई गाना के प्रचलन शुरू भईल होई ओहघरी आबादी कम होई. आजू के लोग से दिल से पूछी त केहू पांच गो लईका ना चाहत होईहे. जईसे जईसे समय बदले लागल कम परिवार होखे लागल. ओह घरी एगो घर में रिस्ता रहत रहे. परिवार आ गाँव में एक दोसरा के घर के आपन आ दोसरा के लईका के आपन लईका समझऽत रहले. केहू आन ना बुझात रहले. लईकन के गलती कईला प चटकन धरावे से भी परहेज केहू ना करत रहले. आजू ऊ समय नईखे कवनो लईका के मारी दिही त देखि तमासा. एही सब प नजर दौरावत कम होखे लागल परिवार आ महंगाई के मारी से परिवार में भुलात रिसता प धेयान दिही.
ईयाद होई बड परिवार के छोट करे खातिर भारत सरकार एगो स्लोगन निकलले रहे “हम दो हमारे दो” . सरकार एकरा के एगो अभियान के तौर प निकलले रहे. मकसद रहे बढ़त आबादी प हुक लगावल. ओकरा के कम कईल . ढेर दिन तकले लोगन के घर के दिवार प , अखबारन में , बईनर पोस्टर हर कही एकर ईस्तेमाल होत रहे. धीरे-धीरे परिवार के आकार तीन से दू लईका तकले सिमित होखे लागल. 1952 से 1980 तकले कम से कम तीन भा ओकरा से अधिक लईकन के आबादी के ट्रेड रहे. 1980 से 2000 के बीच एगो भा दू लईका वाला परिवार 65 प्रतिशत तक रहल. एहिजा तकले त सभ ठीक रहल कि परिवार में लईकन के लगभग हर रिस्ता मिलल जईसे , चाचा, फुआ, दीदी. भईया, . बाकी परिवार प महंगाई के जे ना मारी पडल कि अब परिवार में एगो ट्रेड बनल जात बा कि “हम दो हमारे एक”. 2000 से 2014 के बीच हम दू हमार एक के ट्रेड 10 प्रतिशत तक बढ़ गईल. नतीजा हमनिके सामने बा , परिवार के जानल मानल कईगो रिस्ता धीरे-धीरे ख़तम हो रहल बा.
एह सब के पीछे सबसे बड कारन बा कि महंग होत स्कूली शिक्षा. एकर असर खासकर बड शहरन में ढेर बा. औधोगिक संगठन एसोचेम आपन एगो रिपोर्ट में जानकारी देले बा कि पिछला दस बरिश में स्कूली पढाईके खर्च डेढ़सो प्रितिशत तक बढ़ गईल बा. 2005 में एगो लईका प शिक्षा में सालाना खरचा पचपन हजार रूपया रहे. अब ई डेढ़ लाख रूपया हो गईल बा. अईसना में अब परिवार एगो लईका से अधिक नईखन चाहत. पहिले लईका होखला के बाद एक- दू साल स्कूली शिक्षा के प्लानिग कईल जात रहे. अब माई- बाबूजी लईका जन्म से पहिलही पईसा के जुगाड़ में लागी जात बाडन. काहे कि एगो प्लये स्कूल के फीस 35,000 से 75,000 तकले पहुच गईल बा.
एसोचेम द्वारा 10 शहर दिल्ली, मुबई, बंगलूर ,पुणे, अहमदाबाद, चंडीगढ़, लखनऊ और देहरादून में सर्वे कईल गईल,. जेकरा में 70 प्रतिशत दम्पति द्वारा कहल गईल कि उनका तलब के 30 -40 प्रतिशत हिस्सा लईकन के स्कूली शिक्षा प खर्च हो जात बा. नीचे धेयान दिही लईकन प खर्च…………
सालाना औसत स्कूली खर्च –
एह सब प | एगो लईका प | दुगो लईका प |
टिउशन फी ,ट्रांसपोर्ट | 35,000 | 65,000 |
भवन फंड | 25,000 | 40,000 |
ड्रेस/शुज | 6000 | 12300 |
बैग आ बोतल | 1500 | 3000 |
बुक्स/ कोपी | 8400 | 17000 |
अन्य खर्च में | 13,500 | 25,500 |
टिउशन आ कोचिंग –
स्तर | एगो लईका प | दुगो लईका प |
प्राइमरी स्तर प | 5,000 | 10,000 |
सेकेंडरी स्तर प | 25,000 | 50,000 |
एक्सट्रा एक्टीविटी –
प्राइमरी स्तर प | 5,000 | 10,000 |
सेकेंडरी स्तर प | 25,000 | 50,000 |
- .डॉ० उमेशजी ओझा
९४३१३४७४३७