सपना मे सुध–बुध के खेती
अंगे-अंग कचनार ।
सखी रे, अइसन होला प्यार ।
लैला-मजनू हीर के देख
प्रेम मे पसरल पीर के देख
राधा के पायल के धुन पर
मुरली के तस्वीर के देख
श्रवण के कांधे के बहँगी
जगत भइल उजियार ।
सखी रे, अइसन होला प्यार ।
लक्ष्मण,राम,भरत सम भाई
दुर्दिन मे जे साथ निभाई
भूखा रहके भाग्य जगावे
अइसन जग मे चाही भाई ।
जब भाई के प्रेम कथा सुन
छलके लोरन के धार ।
सखी रे, अइसन होला प्यार ।
यमुना तट पर कान्हा ठारे
कदम तरुवर नीति उचारे
दीन हीन विधवा पीड़िता के
केहु जा के भाग सँवारे ।
प्रीत न जाने जात-कुजाति
प्रेम सरस उपहार ।
सखी रे, अइसन होला प्यार ।
प्रेम के जाति-धर्म कहाँ बा
प्रेम जहां बा , धर्म उहाँ बा
आपन आ बेगाना कइसन
ईश्वर बाड़े प्रेम जहां बा
प्रेम बिना सब लोक बा निर्जन
सुना बा संसार ।
सखी रे, अइसन होला प्यार ।
- डॉ जौहर शफियाबादी