एक सुझाव गीत

धरती के सिंगार बिरना आवा सजावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के बचावा हो।। हरे हरे पेड़ होइहैं फैली हरियाली, हरषी सिवान देखि पूरब के लाली, उसर के नाम अब जग से मिटावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के…… सुंदर समाज बनी शुद्ध होई पानी, ताजी हवा से मिली मन के रवानी, एसी में सोवल जे बा उनके जगावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के …… ओजोन चादर में छेद भइलैं भारी, कहियो ज फाटी चादर फैली बीमारी, “लाल” के बिचार भइया टोगें गठियावा हो। पेड़वा लगाके यही भुइँया के…….…

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लगै कि फागुन आय गयल

गायब पूष भयल बा भयवा, जइसे माघ….हेराय गयल। बहै ला पछुआ आन्ही जइसन, लगै कि फागुन आय गयल।। कइसो कइसो गोहूं बोवलीं, किल्लत झेललीं डाई कै, करत दवाई थकि हम गइलीं, खोखी रुकल न माई कै, मालकिन जी कै नैका छागल, कल्हिऐ कहूं हेराय गयल। बहैला पछुआ आन्ही जइसन, लगै कि फागुन आय गयल।। झंड भइल बा खेतीबारी, पसरल धान दुआरे पे, लेबी, बनियां केहु न पूछै, न्योता चढल कपारे पे, खरचा अपरम्पार देखि के , हरियर ओद झुराय गयल। बहैला पछुआ आन्ही जइसन, लगै कि फागुन आय गयल।। जाड़ा…

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हमहूं आजु दरिद्दर खेदब

हमहूँ आजु दलिद्दर खेदब, घुमि घुमि सूप बजाइब हो।, कहियै कै सोवलि किस्मत बा, ओके आजु जगाइब हो।। सूप बजावत पुरखा लोगवा, बदहाली में मरि गइलैं, घुसुरल जवन दरिद्दर बइठल, हमरे माथे थरि गइलैं, पकरि के टेटा ओहि कुकुरे कै, गड़ही ले दउराइब हो।, कहियै कै सोवलि किस्मत बा, ओके आजु जगाइब हो।। जेकर नाँव अकाशे दउरे, केतना सूप बजउले होई, कउने जोजन से ऊ अपने, भगिया के चमकउले होई, भगै दरिद्दर हमरे घर से , जुगुती उहै लगाइब हो।, कहियै कै सोवलि किस्मत बा, ओके आजु जगाइब हो।। लालबहादुर…

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बरसि गइलैं बदरा

बरसि गइलैं बदरा,आजु मोरी गुंइयां। मनवा जुड़ा गइलै,महकल ई भुइयां।। आजु मोरी गुंइयां,बरसि गइलैं बदरा।। आजु मोरी गुंइयां,बरसि…… खेतवा सिवनवा में भरि गइलैं पानी, पोखरी सुनावे ले हंसि के कहानी, तलवा के जइसे,छुवल चाहे कुंइयाँ। आजु मोरी गुंइयां,बरसि…… पेड़वन के फुंनुगी पे नाचल बा बुनियाँ, पात पात झूमल बा चहँकल टहनियाँ, मछरी तलइया में,मारें कलइया। आजु मोरी गुंइयां,बरसि…… गउवांं किसनवां के हियरा जुड़ायल, खेतीबारी रोपनी कै,मैसम बा आयल, उतरल सवनवाँ,करी पार नइया। लालबहादुर चौरसिया ‘लाल’ आजमगढ़

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भुला गइला का..!

बम्बई नगरिया,मोहा गइला का। नाहीं अइला बदरवा,भुला गइला का।। तलवा तलइया कै फाट गइलैं सीना, खेतवा टिबुलिया के छूटल पसीना, गउवांं से लागे, अघा गइला का। नाहीं अइला बदरवा,भुला गइला का।। डहके गगनवां अ सिसके धरतिया, सुलगे सिवनवां न आवे ले बतिया, कउनो गलइचा, ओंघा गइला का। नाहीं अइला बदरवा,भुला गइला का।। धुरिया उड़ावे ला पापी पवनवा, गउवां के देवता कै जरेला सपनवां, बतिया प कउनो, कोंहा गइला का। नाहीं अइला बदरवा,भुला गइला का।। तउवा प जइसे, छनकेला पानी, वइसे भइल ‘लाल’ सबकर कहानी, चार बूंद चुयि के, हेरा गइला…

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