सचहूँ; ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’

संस्मरण हिन्दी साहित्य के एगो अइसन गद्य बिधा ह जवन अपनी स्मृति प आधारित ह। कई बेर ई अत्यंत व्यक्तिगत भी होला आ सामाजिक चाहे राष्ट्र से जुडल भी। बाकिर केतनो व्यक्तिगत संस्मरण होखे, ई गद्य साहित्य के बिधा कहाला। जदि देखल जा त हिन्दी के संस्मरण लेखक लोग के एतना नाँव बा जे लिखल जा त एगो बड़हन सूची तैयार हो जाई। बाकिर भोजपुरी के ई पहिला संस्मरण से हमार भेंट भइल ह ‘भोजपुरी साहित्यांगन’ पर। ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ किताब के ई शीर्षक अपनी ओर आकर्षित करता।…

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फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया के बहाने से :

पछिला कुछ बरिस में भोजपुरी में लेखन फेर से अँगड़ाई ले रहल बा। भोजपुरी में लेखन पहिलहूँ खूब भइल बा। हर विधा में थोर-ढेर किताब लिखाइल बाड़ी सन। चूँकि पठनीयता के अभाव आ कवनो सरकारी सहजोग के बेगर भोजपुरी के किताबन के उपलबद्धता के लेके सभे के सब कुछ पता बा। कारन इहे बा कि भोजपुरी के किताब लेखक लो अपना जेब से कटौती क के करावेला आ अजुवो कमोबेस हालत कवनो ढेर बदलल नइखे। बाकि परेसानी आ विश्वसनीयता के लेके सोचल जाव त अब बहुत कुछ बदल चुकल बा। …

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