गीत

माई-बाबू से ना बढ़ि के

देवता पितर हवें हो

इहे हवें सोना चानी ऊ त पीतर हवें हो !

माई के अँचरा

सरगवा के सुखवा

बबुआ खातिर ऊ सहेली सभ दुखवा

सभ तिरिथन से बढ़ि के पवित्तर हवें हो !

बाबूजी त सपनो में

राखेलें आकाश में

सुखवा जुटावे सभ भुखियो पियास में

इहे देलें छत्तरछाया ऊ त भीतर हवें हो !

धरती से बढ़ि के

ह माई के धीरज

बाबूजी चाहेलें बबुआ बने हमार नीरज

ईहे जिनिगी के दाता ईहे मित्तर हवें हो !

देवता ई अइसन

कि कुछुओ ना माँगे

नेहिया, सरधवा से भाग्य सूतल जागे

उड़ि जइहें पछतइबs अइसन तीतर हवें हो

कांटक कहेलें भइया

माइये के पूजs

बाबूजी के सेवा करs दुख उनुके बूझs

देवी देवता साछात ई बिचित्तर हवें हो !

इहे हवें सोना चानी ऊ त पीत्तर हवें हो !

 

  • सुरेश कांटक

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