दू गो लघुकथा

१.बेटी के बियाह

बेटी के बियाह खातिर चिन्तित महतारी अपना पतिदेव से कहली- एजी! रउरा बेटी के बियाह के कवनो चिन्ता बा की ना ? बेटी पढ़ि -लिख के पांच बरीस से नोकरीयो करऽ तिया, पैंतीस बरीस के उमीरो हो गईल। समय से शादी-बियाह कईल हमनीं के जिम्मेवारी बा बाकिर रउरा त कवनो फिकीरे नईखे।
मेहरारू के बात सुनि के पतिदेव जी कहनीं- बेवकुफी मत करऽ।
बबुआ इंजिनियरी पढऽ ता, दूसरा साल ह। अबहीं बियाह के बात टारऽ, काहां से आई हर महीना पच्चीस हजार रुपीया आ हमनीयों के आपन जिनगी बा। एहि बिचे बेटी प्रेम बियाह क के अपना दुलहा के संगे अशीरबाद खातिर माई-बाप के सोझा खड़ा रहे,माई-बाप के त मूंह खूलल के खूलले रहि गईल।

२.बड़हन अपराध कवन ?

टीवी पर चल रहल खबर देख के सात बरिस के लईका अपना बाबूजी से पूछलस- बाबूजी! बेअदबी का कहाला ?
बाबूजी- कवनो धरम के अदब ना कईल बेअदबी कहाला।
लईका फेरु पूछलस- बेअदबी आ हत्या में बड़हन अपराध कवन बा?
लईका के बाबूजी बात अनसुना कर के झट से चैनल बदल दिहले।

अशोक मिश्र
कटनी, म प्र

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