भोरे मोरे अँगना

कि खनकेला जइसे, सुघर हाथे कँगना

बिहँसे किरिनिया, किलक उठे ललना

पसरि उठे रंग ना।

भोरे मोरे अँगना॥

 

चंहके चिरइया, आई अँगनइया

ललना के मइया लेलीं बलइया

हुलसि उठे पग ना।

भोरे मोरे अँगना॥

 

भोरहीं बबुआ,माँगे जोन्हइया

दुअरा बहारी दुलारेलीं मइया

बजाई घरे घुघुना।

भोरे मोरे अँगना॥

 

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

 

 

 

 

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