बबुआ बोलता ना

कहवाँ से आवैला कवन ठाँउ जइबा,बबुआ बोलता ना,

के हो दिहलें तोहके बनवास, बबुआ बोलता ना!

 

कवने करनवाँ बतावा अइला बनवाँ?

कोने कोने घूमला भंवरवा जइसे मनवाँ

कउनी हो नगरिया में अंजोरिया नाही भावै, बबुआ बोलता ना,

कहवाँ रात भावै बरहो मास, बबुआ बोलता ना!

 

रूठि गइलीं रिधि-सिधि चललीं रिसियाइ के

कउनी हो नगरिया मे अगिया लगाइ के

कहवाँ के लोगवा के भोगवा नाही भावे, बबुआ बोलता ना,

दिहलै तोहके घरवा से निकास, बबुआ बोलता ना!

 

बिधना जरठ मति अटपट कइलै रे

किया कवनों भूल तीनों मूरति से भइलै रे

किया रे अभागा,कउनों लागा बाँदी कइलै, बबुआ बोलता ना,

किया कतहूँ पउला ना सुपास, बबुआ बोलता ना!

 

हम बनबासी बबुआ माना हमरी बतिया,

बावला समाज मे बिताला एक रतिया

कंद-मूल-फल-जल सेवा मे जुटइबै, बबुआ बोलता ना,

सेवा करबै, माना बिसवास, बबुआ बोलता ना!

 

  • राम जियावन दास ‘बावला’

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