भोजपुरी समीक्षा के बढ़त डेग

2021 के जून महीना भोजपुरी समीक्षा खातिर बढ़िया रहल।दूगो महत्वपूर्ण किताब सर्वभाषा ट्रस्ट, दिल्ली से छपल।प्रो.बलभद्र के एगो किताब -“भोजपुरी साहित्य :हाल फिलहाल”आ डा.ब्रज भूषण मिश्र के किताब -“भोजपुरी साहित्य :प्रगति आ परख”सामने आइल।एह दूनू किताबन से भोजपुरी के सृजनशीलता के पता चली।एकनीं में संकलित आलेखन में कवनो -न -कवनो एगो खास भोजपुरी रचना भा रचनाकार के वैशिष्ट्य आ रचनाशीलता पर विचार भइल बा। एकनी से कवनों समालोचनात्मक दृष्टिकोण भा विचार- स्थापना के क्रम में समग्र विश्लेषण के आस भा उमेद लगावल ना त उचित होई ना एह किताबन के ऊ अभीष्टे बा।एकनी के अधिकतर लेख कवनो ना कवनो किताब के भूमिका भा ओपर लिखल -छपल समीक्षा के संगिरहा बाड़े सं।ई आलेख सब एगो किताब में संकलित होके भोजपुरी के सर्जनात्मक साहित्य के बारे में परिचय पावे के इच्छुक पाठकन खातिर बहुत उपयोगी हो गइल बाड़े सं।

बलभद्र जी के भोजपुरी विषयन पर हिन्दी में लिखल किताब-“भोजपुरी साहित्य :देश के देस का”के बाद “भोजपुरी साहित्य हाल -फिलहाल ” में उनकर 25 गो समय- समय पर कहीं-कहीं लिखल आलेखन के संकलित कइल गइल बा।भोजपुरी में आदिकवि कबीर के मानल जाला।कुछलोग सिद्ध-नाथ साहित्य आ गोरखनाथ जी के रचननो में भोजपुरी के पइसार के बात कइले बा। एह सब के अगर विरासते मानल जाव तभियो ई सच्चाई बा कि भोजपुरी कविता के शिष्ट रूप आजादी के आंदोलन के दौरान मजिगर रूप में सामने आ गइल रहे।’बटोहिया’ 1911में ‘बंदे मातरम’ (1882) आ ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा'(1905)के सोझा खड़ा हो चुकल रहे।गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के ‘जन गण मन’ तs 1912 में रचाइल।बाकिर आश्चर्य होई कि भोजपुरी के पहिलका उपन्यास ‘बिंदिया'(रामनाथ पांडेय)1956 में छपल।छिटफुट गद्य रचना मिल जइहें सं बाकिर उपन्यास जवन कि गद्य के मनोमुकुट मानल जाला ओकरा लिखाये में 45 बरिस के देरी हो गइल।अइसने विलम्ब भोजपुरी समालोचनो में हो रहल बा।आज ले ना कवनो भोजपुरी साहित्य के इतिहास सुबहित ढंग से सामने आइल ना कवनो सम्यक समीक्षा के ग्रंथ।किताब के समीक्षा भा कवनो कवि भा कथाकार पर लिखल टिप्पणी भा आलेख समग्र समीक्षा के कमी नइखे पूरा कर सकत।भोजपुरी साहित्य के इतिहास लिखा गइल बहुत जरुरी बा।चैप्टर बांट के लिखवा दिआव आ दू आदमी मिल के संपादित कर देव त भोजपुरी के विद्यार्थी-शोधार्थी आ पाठकन के बहुत कल्यान हो जाइत।डा.नगेन्द्र के संपादित ग्रंथ “हिन्दी साहित्य का इतिहास” एह दिसाईं मार्गदर्शन कर सकत बा।आजो कृष्णदेव उपाध्याय, दुर्गाशंकर सिंह आ उदयनारायण तिवारी जी के किताबे भोजपुरी भाषा आ साहित्य के परंपरा आ प्रगति के समझे खातिर अपरिहार्य बाड़ी सं।

बलभद्र जी में समीक्षा के एगो साफ-सूथर दृष्टिकोण आ लेखन-शैली विकसित हो चुकल बिया।कवनो विषय पर कइसे सोचे के बा ,का-का विचारे के बा,एगो सम्यक विश्लेषण आ विवेचन कइसे हो सकत बा-एह पर पूरा धेयान उनकर बा।कहीं के ईंट कहीं के रोड़ा जोगाड़ करके ऊ भानुमति के कुनबा नइखन खड़ा कइले।कवनों बात कहे के उनकर एगो आपन ढंग बा,तौर-तरीका बा।अपने कवनों एगो लेख के स्थापना के दोसरा में खंडित करत ऊ नइखन दिखत।रहल बात हाल -फिलहाल के रचनन पर विचार के त एहपर सभकर आपन आपन मत हो सकत बा।हाल- फिलहाल बलभद्र के एह किताब में केतना ले बा एह ले ज्यादा जरूरी बा कि ओह पर हाल- फिलहाल वाला नजरिया से विचार भइल बा कि पुरनके ढुआ-ढच्चा आ पारंपरिक मन-मिजाज आ तौर -तरीका से-ई देखल जाव।हाल- फिलहाल वाला नजरिया तबे विकसित होई जब कम -से -कम हिन्दी भा इतर भारतीय भाषा से संपर्क बनल रही।बलभद्र जी जेतना भोजपुरी में सक्रिय बाड़ें ओतने हिन्दियो में।एह से उनका समीक्षा में हाल -फिलहाल वाला नजरिया त जरूर देखे के मिलत बा।दोसरा ओरि ब्रज भूषण जी के किताब में सूचनात्मक बहुत कुछ नया देखे-पढ़े लायक बा।

आम तौर पर निष्पक्ष समीक्षा के मतलब मानल जाला कि ऊ कवनो रचना भा रचनाकार के शक्ति आ सीमा दूनू बताई।निष्पक्ष समीक्षा के आपन कवनो जुबाने ना होई, ऊ खाली तथ्यन के प्रस्तुति भर होई -अइसन बात नइखे। निष्पक्ष समीक्षा अगर केहू के पक्षे में ना होई, त एकर मतलब बा कि ना ओकर कवनों जमीन होई ना कवनों आसमान।ओकरा पक्षधर होखे के पड़ी आम जन के,ओकरा संघर्ष के आ ओकरा सपना के।समीक्षा एह मुक्तिकामी सोच आ जन -पक्षधरता से अगर कटल चली त ऊ बेमतलब आ बेमानी हो जाई।बलभद्र के समीक्षा में पूरा शिद्द्त के साथे आम भोजपुरिया मनई के चुनौती,संघर्ष आ सपनन के शिनाख्ते भर नइखे बलुक ओकरा के रूप आ रचाव मिलल बा।

ब्रजभूषण मिश्र के किताब उनकरा 28 गो ओह आलेखन के संग्रह बा जवन ऊ कवनो किताब के भूमिका भा साहित्यकार के बारे में लिखले बाड़ें।भूमिका लिखत समय केहू भूमिका-लेखक कवनो कृति के समर्थने आ पक्षे में लिखेला ओकरा कमियन के स्वाभाविक तौर पर नजरंदाज कर देला।एह से एह तरे के आलेखन के ओही नजरिया से एह किताब में पढ़ल जाये के चाहीं।हं जवना आलेखन में कवनों कवनो रचना भा रचनाकार पर स्वतंत्र रूप से विचार भइल बा ओजवा सम्यक समालोचना के रूप जरूर सामने आइल बा।

आज त एह किताबन पर परिचयात्मक रूप से समिलाते बाकिर जरूरत बुझाई त अलगो से विचार होखी।

ई दूनू किताब भोजपुरी समालोचना के बढ़त डेग आ आगे के संभावना भरल डगर का ओर इसारा करे खातिर काफी बाड़ी सं।स्वागत होखे के चाहीं एह दूनू किताबन के।एकबार फेर साधुवाद के अधिकारी बा समहर रूप से सर्वभाषा ट्रस्ट परिवार भोजपुरी के बढ़न्ती में अपना सहयोग खातिर।

 

  • सुनील कुमार पाठक

 

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