फागुन में नाचल

हंसि हंसि क बहार उतान भईल, अगराई के फाग जब फागुन में नाचल ।   फगुआ के जब आगुआन भईल, अबीर-गुलाल आपना सुघर भाग पे नाचल।   बबुआ-बुचिया के जब रंग रंगीन भईल , फिचकारी के संग उछल- कुद के नाचल ।   बुढा-जवान के भेद सभ भुल गईल , फागुन फगुआ के जब मधुर तान पर नाचल।   आपन-आन के सब ध्यान गईल , जब बैर तेज के सब केहु गले मीली नाचल।                उमेश कुमार राय ग्रा0+पो0- जमुआँव , जिला- भोजपुर (बिहार )

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भोजपुरी त पहेली बा

साँचो  में  रउआ सुन के भक फाट जाई। भोजपुरी एगो पहेली बन गइल बा ।नइहरे में बेआबरू भइल बेटी जइसन हाल एह घरी भोजपुरी साहित्य आ साहित्यकार लोगन के बा ।साहित्यकार कइगो मोटकी-मोटकी किताबन में माथा खापावेलन आ रात-दिन एक करके कलम-कागज के साथ मगजमारी (माथापची )करेलन तब जाके एगो रचना तइयार होला ।रचना एकजुट करेलन आ माल-पताई के जोगाड़ करके  भोजपुरी साहित्य  बनावेलन। ई भोजपुरी साहित्य के परेमवे नु बा । बाकी हद त तब होला कि सउसे छपल साहित्य भेट दे के सधावे के परेला। सउसे मेहनत फोकटे…

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