2020 के भिखारी ठाकुर भोजपुरी सम्मान ‘आखर – आखर गीत’ के दीहल जाई

देश के  प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रयागराज शुक्रवार के  अपने राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारन  घोषणा कइलस। एह बेरी भोजपुरी खाति भिखारी ठाकुर भोजपुरी सम्मान आखर – आखर गीत बदे  चंदौली जिला के बरहुआं गाँव के बेटा गाजियाबाद में रहि रहल जयशंकर प्रसाद  द्विवेदी के दीहल जाई। ए सम्मान के साथे उनुका के संस्था के ओरी से एक लाख रुपए के धनराशि भी दीहल जाई । भोजपुरी का क्षेत्र में दीहल जाये वाला ई एगो महत्वपूर्ण सम्मान ह। बतावत चलीं कि एह किताबि के प्रकाशन सर्वभाषा ट्रस्ट कइले बा। वर्ष…

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नयनवा से लोर झरे

हिया बेंधेले संवरिया के बाति नयनवाँ से लोर झरे ॥   जागल जबसे बा पहिली पिरितिया रहि – रहि उभरेले सँवरी सुरतिया मोहें निदिया न आई भर राति नयनवाँ से लोर झरे ॥   रहिया निरेखी बीतल दुपहरिया मन मुरुझाई जाय लखते दुवरिया बुला आई जाँय रतिओ – बिराती नयनवाँ से लोर झरे ॥   हुन  टुन ननदी के गभिया सुनाला मुसुकी से ओकरा बोखार चढ़ि जाला उहो डाहेले सवतिया के भाँति नयनवाँ से लोर झरे ॥   हिया बेंधेले संवरिया के बाति नयनवाँ से लोर झरे ॥   जयशंकर…

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चुनरिया ए बालम

तिकवेले भरि भरि नजरिया ए बालम रंगब रउरे रंग मे चुनरिया ए बालम ॥   तोपले तोपाई न, लक़दक़ सेहरा करबे निबाह जब लागल इ लहरा निकलब जब तोहरी डहरिया ए बालम ॥ रंगब रउरे रंग मे चुनरिया ए बालम ॥   करके  करेज सभ उजरल महलिया सून कई गउवाँ के साँकर गलिया चलि अइली तोहरी दुवरिया ए बालम ॥ रंगब रउरे रंग मे चुनरिया ए बालम ॥   खनका के कँगना उड़ी जाई सुगना अचके पसर जाई , लोर भरि अँगना बिछी जब ललकी सेजरिया ए बालम ॥ रंगब…

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गीत

जानके केहू आहत कईल जान के तान के तनके तनके नयन बान के   केस छितरावत घेरत गगन में घटा फूल अस कोमल अंगन के अजबे छटा फूल उपमण्डल चेहरा  लगे चान के   नाम ओठन पर आंखिन में सूरत बसल आस तूरत ना  पूरत जरूरत असल ओही मूरत के देवी जपी मान के   घाव उसुका के  मुसुका के मारत रहे प्रान ओही के पल पल पुकारत रहे चैन जारत उजारत जे  असमान के   लोक रीति के कवन बात संजोग के खुस बा सोमेश लेके कठिन रोग के…

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बिजुरिया हाय पड़ल बदरा का पाले

विधना का लिखना पर जरि जरि बुताले। बिजुरिया हाय पड़ल बदरा का पाले..   बिचरत चरिवातन पर दूर दूर रोले आवत छावत अन्हार अकड़ि अकड़ि बोले लखि के कुलबोरन के लोरन नहाले बिजुरिया हाय पड़ल बदरा का पाले..   असमय अरियात रहनि समझ में न आवे उमरत बेढंग बान घेरी के चलावे घाव घोर मनवा के तनवा के शाले बिजुरिया हाय पड़ल बदरा का पाले..   करकत दरकत करेज आसमान फाटे छूटत चिनगी जिनगी रहि रहि दिन काटे चमके दमके सोमेश लमके नहाले। बिजुरिया हाय पड़ल बदरा का पाले..  …

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पहुना भइल जिनगी

कब दरक गइल जियरा उधियाइल भिनुसहरा अब टोवत बेवाई सभे अहमक़ कहाई । साटल पेवना भइल जिनगी ॥   घाव बाटे जियतार टकटोरत बार बार उहाँ उजार खोरिया देखीं जवने ओरिया काँच खेलवना भइल जिनगी ॥   बड़की बिटिया सयान सभे उझिलत गियान दाना ला मोहताज कइसे चली राज काज ओद लगवना भइल जिनगी ॥   माँग बहोरि आंखि नम पायल बाजल छमाछम केहरो मन के खटास टूटि बिखरल बा आस बिसरल चूवना भइल जिनगी ॥   घरे खलिहा सिकउती इचिको नइखे बपउती कहवाँ बाटे चउपाल भर गउवाँ बा बेहाल…

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बिला रहल थाती के संवारत एगो यथार्थ परक कविता संग्रह “खरकत जमीन बजरत आसमान “

मनईन के समाज आउर समय के चाल के संगे- संगे  कवि मन के भाव , पीड़ा , अवसाद आउर क्रोध के जब शब्दन मे बान्हेला , त उहे कविता बन जाला । आजु के समय मे जहवाँ दूनों बेरा के खइका जोगाड़ल पहाड़ भइल बा , उहवें साहित्य के रचल , उहो भोजपुरी साहित्य के ,बुझीं  लोहा के रहिला के दांते से तूरे के लमहर कोशिस बा । जवने भोजपुरी भाषा के तथाकथित बुद्धिजीवी लोग सुनल भा बोलल ना चाहेला , उहवें  भोजपुरी  के कवि / लेखक के देखल ,…

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माथे कS सिङार बाबूजी

बाटें भरि भरि के आपन दुलार बाबूजी । तोहीं हमनी के माथे कS सिङार बाबूजी ॥   सभके नियमित जगावें नेह बचवन पर लुटावें करें नेहिया के बारिस हर बार बाबूजी ॥ तोहीं हमनी के…..   दरदिया सिरहीं उठावें हँसि बिहँसि के दुलरावें कइने दिन रात आपन निसार बाबूजी ॥ तोहीं हमनी के…..   बीपत कइसनो लहरे उनके समने न ठहरे सहलें समय क मार , हर बार बाबूजी ॥ तोहीं हमनी के…..     जयशंकर प्रसाद द्विवेदी  

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कबले होइहं गवनवा हमार

कबले होइहं गवनवा हमार भउजी। बाटे मौसम मे आइल खुमार भउजी।   बसंती हवा चले देहीयां दुखाता। कोइलर के बोलियो माहुर बुझाता। नीक लागे ना पायल झंकार भउजी। कबले होइहं गवनवा हमार भउजी।   सरसो के खेतवा मता के पिअराइल। आमन के बगिया बा खूबे मउराइल। सून्न लाग$ता सगरो जवार भउजी। कबले होइहं गवनवा हमार भउजी।   अपने बहिन से  बियाह रचवइलू। ओकरे बाद आजू ले ना बोलवलू। भइल फागुन मे हमके बुखार भउजी। कबले होइहें गवनवा हमार भउजी।   अब गवना करा द तोहार गुन गाइब। लइकन के तोहरे…

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ऑक्सीजन से भरपूर ‘पीपर के पतई’

कहल जाला कि प्रकृति सबके कुछ-ना-कुछ गुण देले आ जब ऊहे गुण धरम बन जाला त लोग खातिर आदर्श गढ़े लागेला। बात साहित्य के कइल जाव त ई धरम के बात अउरी साफ हो जाला। ‘स्वांतः सुखाय’ के अंतर में जबले साहित्यकार के साहित्य में लोक-कल्याण के भाव ना भरल रही, तबले ऊ साहित्य खाली कागज के गँठरी होला। बात ई बा कि अबहीने भोजपुरी कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के पहिलकी कविता के किताब ‘पीपर के पतई’ आइल ह। ई किताब कवि के पहिलकी प्रकाशित कृति बा बाकिर ऊहाँ…

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