अझुरहट के सझुरावत ,रसता बनावत गवें-गवें आगु बढ़े के जवन तागत साहित्य से मिलेले उ कहीं अउर से भेंटाले कि ना, एह पर कुछ कहल एह घरी हमरा उचित नइखे बुझात। भोजपुरी साहित्य के धार के आपन बहाव ह,लहर ह,तरंग ह, हुहुकारल ह, फुफुकारल ह। ओही में आपन-आपन नइया लेके हिचकोला खात किनारा पहुँचे क ललक जिनगी के प्रान वायु लेखा बा। आजु भोजपुरी में जहाँ साहित्य के झोली भरा रहल बा, उहें एहमें ढेर विकारो आ रहल बा। जवने क हाल-समाचार समय-समय पर उतिरात रहेला। कई बेर साँच के…
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बाप के माल ह
इनकर उनकर सबकर दबा के हजम कइल रउरे चाल ह। बेसरमी से कहेलन बाप के माल ह। कुछो जोड़-घटा द इहाँ उहाँ के कुछो सटा द कुछ गूगल से उधार करS बाचल-खुचल अनुवाद करS फेर कतनों अनवाद करS थेथरई त ढाल ह। बाप के माल ह। एगो गिरोह बना ल कुकुर-बिलारो के मंच पर चढ़ा द जेकरा स के नइखे पता ओकरा शोध के काम पकड़ा द कबों अपनों विरोध करवा द एह पर त सभे निहाल ह। बाप के माल ह। कतों घुसुर के तर्क-बितर्क अपना…
Read Moreदुनिया त गोले नु बा
का जमाना आ गयो भाया, मजबूरी के लोग अपनइत बता रहल बा आ हाल देखि-देखि के थपरी बाजा रहल बा। कवनो मउसम विज्ञानी के रिमोट दोसरा के हाथ में थम्हावत देखल कुछ लोगन के अचरज में डाल रहल बा। ढेर लोग त देखि के चिहा रहल बा। कवनो मुँहफुकवना भिडियो बना के सोसल मीडिया पर डाल देले बा। जहवाँ भिडियो देखिके मउसम विज्ञानी के संघतिया लोग के बकारे नइखे फूटत। उहवें उहाँ के गोतिया लोग चवनिया मुसुकी काटि-काटि के माजा मार रहल बा। एक-दोसरा से भुसुरा-भुसुरा के मउसम विज्ञानी के…
Read Moreबतावा बुढ़ऊ
काहें काशी पर मोहइला बतावा बुढ़ऊ। काहें आदि देव कहइला बतावा बुढ़ऊ। जाने के त सभ जानेला हउवा बड़का दानी भगतन खातिर कई जाला, बढ़-चढ़ के मनमानी काहें असुरन पर लोभइला बतावा बुढ़ऊ। जेकर अरजी तहरे लग्गे दुख ओकर भागेला दाही-दुसमन भूत-प्रेत, पानी सबही माँगेला काहें दसानन से लुटइला बतावा बुढ़ऊ। हम निरधन तहरा सोझा,हमके राह देखावा मझधार में बूड़त नइया, ओके पार लगावा काहें हम पर ना छोहइला बतावा बुढ़ऊ। कैलास के बासी हउवा, मृग छाला पहिरेला जंगल झाड़ का बतलाईं, पहड़ो में रहि लेला।…
Read Moreकजरी
भर सावन मोहे तरसइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना। कवना सउतिन में अझुरइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना। खेतवा फाटे अस फटे बेवइया बेहन सूखत जइसे मुदइया काहें असवों नाहीं अइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना। कइसे जीहें चिरई-चुरमुन बबुआ चलिहें कइसे ढुनमुन ई बुझियो ना सरमइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना। मचल बाटे हाहाकार अवता लेता सभे उबार कवना बातिन से कोहनइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना। तोहू भइला जस विकास तूरला किसानन के आस जनता फेरा में फंसइला हो बदरु कहवाँ भुलइला ना। …
Read Moreबनउवा रूप तहरा
दहके पलास फूल जिया डहकावे हो। बनउवा रूप तहरा हमरा ना भावे हो॥ सोरहो सिंगार ओढ़ि ललखर चुनरिया गाँव नगर होत आइल सइयाँ दुअरिया गोरिया के नखरा जिया ललचावे हो। बनउवा रूप—– घर अँगनइया में धप-धप अँजोरिया टटके सजल बाटे ललकी सेजरिया गजरा गुलाबी गोरी जिया बहकावे हो॥ बनउवा रूप—– रूसियो के फूलल नाहके कोहनाइल पजरा पहुँचि गोरी नियरा ना आइल उपरल हिया में सूल जिया दहकावे हो॥ बनउवा रूप—– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreबरम बाबा
राउर महिमा रउरे जानी हम ना जानी मरम बाबा का का गाईं बरम बाबा॥ रउरे किरपा सोनरा के घर पसरल मजगर उजियारी पूजन अरचन करि करिके दीहलस कुलवा तारी। जियत जिनगी करम करत मानि आपन धरम बाबा। का का गाईं बरम बाबा॥ पहिले दिनवाँ कटत रहे जइसे तइसे,बाँची पतरा तहरे दीठि से पूरन भइल मुंसी से मालिक के जतरा आँखि खुलल सनमान बढ़ल नइखे कवनों भरम बाबा। का का गाईं बरम बाबा॥ सरधा जेकर बा तहरा में किरपा ओपर बरसावेला ओकरे किरती के अँगना अँजोरिया…
Read Moreकुल्हि हमरे चाही
हमही त बानी असली राही कुल्हि हमरे चाही। हमही से उद्गम हमरे में संगम धमकी से करब हम उगाही कुल्हि हमरे चाही। हमरे से भाषा हमरे से आशा छपि के देखाइब खरखाही कुल्हि हमरे चाही। हमही चउमासा बुझीं न तमासा खम खम गिरिहें गवाही कुल्हि हमरे चाही। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreमध दुपहरिया
सप सप चले ले लुअरिया हो सखि ! मध दुपहरिया। कइसे बचाईं जवरिया हो सखि ! मध दुपहरिया॥ एकहू बाग बगइचो ना बाचल नदी नार पोखर नइखे सवाचल बन्हओ क टुटल कमरिया हो। सखि ! मध दुपहरिया॥ हरियर बनवा सपन होई गइलें सहर आ गउवाँ प्रदूषित भइलें गरमी के बढ़ल कहरिया हो। सखि ! मध दुपहरिया॥ चिरई चुरमुन के असरा बिलाइल बिरवा के सँगे कियरियो सुखाइल घरवो में डाहे लवरिया हो । सखि ! मध दुपहरिया॥ जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 5/6/2022
Read Moreउतार गइल मुँहवा क पानी
करिया करम बीखि बानी उतार गइल मुँहवा क पानी॥ कतनों नचवला आपन पुतरिया लाजो न बाचल अपने दुअरिया नसला इजत खानदानी । उतार गइल मुँहवा क पानी॥ झुठिया भौकाल कतनों बनवला बदले में लाते मुक्का पवला मेटी न टाँका निसानी उतार गइल मुँहवा क पानी॥ साँच के बचवा साँचे जाना नीक आ नेवर अबो पहिचाना फेरु न लवटी जवानी उतार गइल मुँहवा क पानी॥ अब जे केहुके आँख देखइबा ओकरा सोझा खुदे सरमइबा कइसे के कटबा चानी उतार गइल मुँहवा क पानी॥ जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 31/03/2022…
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