दूभर कइलस चलल डहरिया हो रामा कलही मेहरिया ॥ गाँव के रसता अचके भुलाइल जिनगी में उ जहिया से आइल भूल गइल अपनों सहरिया हो रामा कलही मेहरिया ॥ केहुके न छोड़लस एकहु बाकी कोना अंतरा गउंखा झाँकी ननदो पर ढारत कहरिया हो रामा कलही मेहरिया ॥ भाई भतीजन के देखते खीझे देवरो पर ना उ तनिको रीझे तूर दीहलस घर के कमरिया हो रामा कलही मेहरिया ॥ भोरही से उठिके पढ़ेले रमायन सास ससुर के गरिए से गायन जिनगी बनवलस जहरिया हो रामा कलही मेहरिया…
Read MoreTag: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
मन के बात
बाति कहीं कि ना कहीं बाति मन क कहीं मन से कहीं क़हत रहीं सुनवइया भेंटाई का? उमेद राखीं भेंटाइयो सकेला कुछ लोगन के भेंटाइलो बा कुछ लोग अबो ले जोहते बा, त बा सुनवइया मन से बा मन के बा जोगाड़ल बा बिचार करे के होखे त करीं के रोकले बा रोकल संभवे नइखे लोकतंत्र नु हवे। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreमहेंदर मिसिर उपन्यास के बहाने उहाँ के व्यक्तिव पर एगो विमर्श
आगु बढ़े से पहिले कुछ महेंदर मिसिर के बारे में जान लीहल जरूरी बुझाता – महेंद्र मिसिर के जनम 16 मार्च 1888, काहीं-मिश्रवालिया, सारण, बिहार आ उहाँ के निधन 26 अक्टूबर 1946 । उहाँ विद्यालयी शिक्षा ना हासिल होखला का बादो संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, भोजपुरी , बांग्ला,अवधी, आ ब्रजभाषा के विशद गियान रहे। चबात रहीं। महेन्दर मिसिर के पत्नी के नाम परेखा देवी रहे। परेखा जी कुरूप रहली। त कादों एही का चलते गीत-संगीत में अपने मन के भाव उतरले बाड़ें महेन्दर मिसिर। महेंदर मिसिर के एकलौता बेटा…
Read Moreमसाने में
शिव भोले हो नाथ, शिव भोले हो नाथ चलि अवता दिल्ली मसाने में। अवता त देखता दिल्ली के हालत दिल्ली के हालत हो दिल्ली के हालत सभे जूटल दारू पचाने में । शिव भोले हो……. अवता त देखता नेतन के हालत नेतन के हालत हो नेतन के हालत सभे जूटल ई डी से जान बचाने में । शिव भोले हो……. अवता त देखता पपुआ के हालत पपुआ के हालत हो पपुआ के हालत देखS जूटल, देस क इजत भसाने में । शिव भोले हो……. अवता त…
Read Moreअंगार पड़ गइल
का जमाना आ गयो भाया,आजु कल त सभे के सेस में बिसेस बने के लहोक उठ रहल बा। भलही औकात धेलो भर के ना होखे। सुने में आवता कि एगो नई-नई कवयित्री उपरियाइल बानी आ कुछ लोग का हिसाब से उ ढेर नामचीन हो गइल बानी । मुँह पर लेवरन पोत के मुसुकी मारल उहाँ के सोभाव में बाटे। कुछ लोग त उनुका एगो अउर सोभाव बतावेला। कबों रेघरिया के त कबों लोर ढरका के, कबों जात-धरम के पासा फेंक के एगो-दू गो कार्यक्रम में अतिथिओ बनि के जाये लगल…
Read Moreभोजपुरी साहित्यकार जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के ‘काव्य कौस्तुभ’ के मानद उपाधि मिलल
हिंदुस्तानी अकादमी के भिखारी ठाकुर सम्मान से सम्मानित भोजपुरी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के ‘काव्य कौस्तुभ’ के मानद उपाधि से नवाजल गइल। साहित्य मंडल नाथद्वारा राजस्थान में आयोजित भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति एवं राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह ( 6 – 7 जनवरी 2023) के उहाँ के एह उपाधि से सम्मानित कइल गइल । बतावत चलीं कि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के अब तक ले 5 गो पुस्तक प्रकाशित हो चुकल बाडी आ उहाँ के 3 गो पुस्तकन के सह सम्पादन कर चुकल बाड़ें। भोजपुरी साहित्य सरिता पत्रिका का पछिला …
Read Moreअँगनइया लोटे बबुआ
अँगनइया लोटे बबुआ, लेहिंजा बलाइया हो अँगनइया लोटे बबुआ, लेहिंजा बलाइया॥2॥ लेहिंजा बलाइया हो लेहिंजा बलाइया अँगनइया लोटे बबुआ, लेहिंजा बलाइया।। अँगना भर, धुरिये फइलावेला मुँहे भरिके, देही लगावेला धुरिये से पोत लेला दूनों कलइया। हो अँगनइया लोटे बबुआ, लेहिंजा बलाइया। अँगनइया लोटे बबुआ, लेहिंजा बलाइया॥ पवते मोका, भागेला दुअरे सोचत आवे ना, केहू नियरे धउरी धउरी ईया उठावेलीं कन्हइया। हो अँगनइया लोटे बबुआ, लेहिंजा बलाइया। अँगनइया लोटे बबुआ, लेहिंजा बलाइया॥ देखि देखि बाबा, उचकि निहारे उहो न रहि पावें, बेगर दुलारे बोली बोली बबुआ के बाबू…
Read Moreगजियाबादी नगर निगम हौ
लूट खसोट मचवलें प्रतिनिधि जन सुविधन पर गिरल सितम हौ। गजियाबादी नगर निगम हौ॥ मेयर की तो बात न पूछो लूट रहल सौगात न पूछो ठिकेदारन के ज़ेबा भइया इनका खातिर अति सुगम हौ। गजियाबादी नगर निगम हौ॥ निगम के पिछे कचरा के ढेरी लूटे खातिर लगत हौ फेरी शिकायत कइला पर भइया जिनगी ससुरी भइल ज़ुलम हौ। गजियाबादी नगर निगम हौ॥ सड़कन पर गढ़्ढन के लाइल अन्हियारा विकास के साइन मोहल्लन में गटर के पानी इनका खातिर चलत फिलम हौ। गजियाबादी नगर निगम हौ॥ लगल करै स्वक्षता के नारा…
Read More‘साहित्य आज तक’ के महोत्सव सम्पन्न
‘साहित्य आज तक’ के तीन दिन के समारोह बीत गइल।’साहित्य आज तक’, भा ‘आज तक’ भा इंडिया टूडे ग्रुप के ई बहुते सुखद आ सराहे जोग पहल रहल। शुरुवतिए से जवन टीका-टिप्पड़ी चले लगल रहल, तवन अभियो चल रहल बा। कुछ लोग रजनीगंधा के स्पानसरशिप के लेके कार्यक्रम के क्रिटिसाइज करत देखाइल आ कुछ लोग साहित्यकार चयन के लेके क्रिटिसाइज कर रहल बा। सभे के आपन-आपन तर्क बा, आपन-आपन विचार बा। जे घोड़ा पर चढ़ेला, ओकरे गिरे भा सँभरे के संभावना पर बात होले। आज बाजारवाद के समय ह, जवन…
Read Moreलोकतन्त्र के लास जरी
जब मनई मनई के आस जरी बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी। गली गली भरमावल जाई उलटबासी पढ़ावल जाई आइल फिर चुनाव के मउसम फुटही ढ़ोल मढ़ावल जाई। कवनो बहेंगा, फिरो गरे परी । बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी। लागत हौ दिन बदलल बाटे एही से अब लउकल बाटे जनता के हौ जनलस नाही उनुके बेना हउकत बाटे। अब घरे घरे जाई, गोड़ परी। बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी। जात क लासा धरम क लासा गढ़ि गढ़ि के नवकी परिभाषा केहु क गारी केहु क गुन्नर देहल जाई…
Read More