अइसे कइसे

महटिया के सूतल जागी, अइसे कइसे। सभे बनत फिरे बितरागी, अइसे कइसे।   सोझे आके मीठ बोलवा सोरी में अब डाले मंठा। ओकरे फेरा घर बिलाई फिरो बजावत रहिहा घंटा। सूपा पीट दलिदर भागी, अइसे कइसे । सभे बनत—-   बेगर बुझले बिना ताल के ओही रागे अपनों गउला। सब कुछ तहरा राख़ हो गइल आग लगवलस समझ न पउला । उनुका खाति बनला बागी, अइसे कइसे । सभे बनत—-   हीत-मीत के बात न बुझला ओकरे रौ में मति मराइल । अपनन के घर बाहर कइला तहरा जरिको लाज…

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जय हो गाजियाबाद

एगो सांसद चार बिधायक मेयर संगे सै गो पार्षद सबके सब आबाद । जय हो गाजियाबाद।   नगर निगम के हाल न पूछा जी डी ए से  ताल न पूछा पूरे पूरा सहर के बबुआ जनता बा बेहाल न पूछा। कोसिस करत करत मरि जइबा होखी ना संवाद । जय हो गाजियाबाद।   कतो सड़क पर गटर क पानी स्वच्छता के क़हत कहानी बेगर मंगले कुछौ मिले ना अधिकारिन के हौ मनमानी। चिट्ठी प चिट्ठी भेजले जा सुने ना केहू नाद । जय हो गाजियाबाद।   सभके चारो ओरी घेरा…

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झंखे साँच

झंखे साँच झूठ क जयकारा हौ बाबू हई देखा आइल हरकारा हौ बाबू ।   मंच क पंच तक कारोबार फनले बा कीमत असूले ला रउबार ठनले बा । गीत चोरन क चढ़ गइल पारा हौ बाबू । झंखे साँच—   पीढ़ा पर बइठ के सबका के कोसल टुटली कमरिया संगे धरि धरि पोसल कबों छूटी ना मजगर चारा हौ बाबू। झंखे साँच—   भावेला उनुका त पतुरिया के संगत मुँह बेगर दाँत क चउचक बाटे रंगत पानी घाट घाट के त खारा हौ बाबू। झंखे साँच—   गुरुजी आ…

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युद्ध के भट्ठी पर सिरजना के लेप

विध्वंस आ सिरजन एह सृष्टि रूपी सिक्का के दू गो पहलू लेखा बा। एक के दोसरा अलगा राख़ के देखल मोसकिल ह। मने अलगा-अलगा राखल भा देखल संभव नइखे। अब जवन कुछ संभवे नइखे,ओह पर कवनो बतकही बेमानी बा। बाक़िर एह घरी त पत्थर पर दूब्बा उगावे के पुरजोर परयास हो रहल बा। परयास देखउकी भर के बा भा साँचों ओकर छाया जमीन पर उतर रहल बा, ई त समय के ऊपर छोडल जा सकेला। एह छोड़लको पर लोगन के नजरिया अलग-अलग हो सकेले,बाक़िर दोसर कवनो रासतो त नइखे। दुनिया…

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अउवल दरजे वाली बकलोली

का जमाना आ गयो भाया,इहवाँ त बेगार नीति आ बाउर नियत वाला लो सबहरे ‘अँधेर नगरी’ का ओर धकियावे खातिर बेकल बुझात बा। का घरे का दुअरे , का गाँवे का बहरे सभे कुछ ‘टका सेर’ बेंचे आ कीने क हाँक लगावे में प्रान-पन से जुट गइल बा। अइसन लोगन का पाछे गवें-गवें ढेर लोग घुरिया रहल बा। अपना सोवारथ का चलते ओह लोगन के सुर में आपन सुरो मिला रहल बा। मने ‘मिले सुर मेरा- तुम्हारा’ क धुन खूब बज रहल बा। अउर त अउर धुन उहो लो टेर…

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मंगरुआ के मौसी

मंगरुआ के मौसी मुँहझौसी ! कतों मुँह खोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल।   नाड़ा के बाति भाड़ा के बाति उजरकी कोठी आ कलफ लागल कुरता दूनों के तोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल।   कहाँ, के खोलल टटोलल ! कहाँ कतना मोल भइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल।   आजु मेजबान फेरु बेजुबान घर घर घरनी के अदला-बदली तक टटोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल।   कंकरीट के जंगल में लहलहात कैक्टस लेवरन अस साटल मुसुकी से परम्परा के सुनुगत बोरसी तक अचके झकोल गइल। ढेरे…

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अब ना जगबा, त ओरा जइबा

सिकुरत सिकुरत बचला मुट्ठी भर अब ना जगबा, त ओरा जइबा। पुरबुजन के नाँव हँसा जइबा॥   जे जे कांपत रहल नाँव से ओहन से अब कांपत हउवा। बीपत जब सोझा घहराइल भागत भागत हांफत हउवा॥ कतों बिलइला आ भाग परइला साँच बाति के कब पतिअइबा॥  अब …   कवन डर पइसल बा भीतरी जवना से घबराइल हउवा। लालच के लत लागल तहरा बेगर बाति क घाहिल हउवा। जहाँ धरइला आ उहें छंटइला केकरा सोझा दुखड़ा गइबा॥  अब…   ईरान क, का हाल छिपल बा अफगानिस्तान पुरा सफाया। दहाई में…

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जीरो माइल बा

गाँव घरे क बात करीं जनि, रिस्ता-रिस्ता घाहिल बा। सब कुछ जीरो माइल बा॥ पुस्तैनी पेसा ना भावत कहाँ गवैया नीमन गावत गीतकार क बात करीं जनि, इहाँ जमाते जाहिल बा। सब कुछ जीरो माइल बा॥ छोड़ि के आपन घर-गिरहस्ती बहरे हेरत फिरत हौ मस्ती मेहनत के बात करीं जनि, असकत सिरे समाइल बा। सब कुछ जीरो माइल बा॥ ईमानदार से डर लागै मोलाजिम करतब से भागै घुसख़ोरी क बात करीं जनि उहाँ भिरी देखाइल बा। सब कुछ जीरो माइल बा॥ जहाँ बेबस मरीज कटत हौ डागदरन में माल बटत…

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सुधि के मोटरी से कुछ-कुछ

रउवा सभे के मालूम होखबे करी कि जिनगी के जतरा लइकई से गवें गवें आगु, बढ़त, जवानी के जीयत, अधेड़पन के संवारत बुढ़ापा के काटत एक दिन अंतिम जतरा पर निकल जाला। मनई के जिनगी में ढेर पल –छिन अइसन जरूर आवेला जवना के उ जोगा के राखलों चाहेला। भा ई कहल जाव के कुछ गुजरत पल मनई के स्मृति में आपन पक्का ठेहा बना लेवेलन सन। अइसने स्मृतियन के आधार पर कवनो विषय भा बेकती पर जवन कुछ लिखल जाला, ओकरा के संस्मरण भा स्मृति आलेख कहल जाला। भा…

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अति का भला न बोलना —–

का जमाना आ गयो भाया,सभे बेगर आगा–पाछा सोच के भोंपू पर नरियाये में जरिको कोर-कसर नइखे उठा राखत। मने कतों, कबों, कुछो जबरिये फेंक रहल बा। एह ममिला में सावन से भादों  दुब्बरो  नइखे। सुननिहारन  के कत्तई अहमके बूझ रहल बा लोग । एहनी के केहू बतावहूँ वाला नइखे कि- ‘ उ जमाना लद गइल जवना में गदहो पकौड़ी खात रहले सन। समय बदल रहल बा। सोच बदल रहल बा आ मनई उत्तर देवे क तरीको बदल रहल बाड़न। अब दोसरो लोगन के अपना काम-काज के तौर-तरीका बदले के पड़ी,…

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