ढेर चहकत रहने ह कि रामराज आई , हर ओरी खुसिए लहराई । आपन राज होखी , धरम करम के बढ़न्ती होई , सभे चैन से कमाई-खाई । केहू कहीं ना जहर खाई भा फंसरी लगाके मुई । केहू कबों भूखले पेट सुतत ना भेंटाई । कुल्हि हाथन के काम मिली , सड़की के किनारे फुटपाथो पर केहू सुतल ना भेंटाई , मने सभके मुंडी पर छाजन । दुवरे मचिया पर बइठल सोचत-सोचत कब आँख लाग गइल, पते ना चलल । “कहाँ बानी जी” के पाछे से करकस आवाज आइल,…
Read MoreTag: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
ए बाबू ! सपना सपने रहि जाई
का जमाना आ गयो भाया, अब त उहो परहेज करत देखाये लागल जे रिरियात घूमत रहल। आजु के समय में जब हिंदिये के ओकत दोयम दरजा के हो चुकल बाटे, त अइसन लोगन के का ओकत मानल जाव। हिंदियों वाला लो अपना बेटा-बेटी के अंगरेजी ईस्कूल में पढ़ावल आपन शान बुझता काहें से कि ओहू लोगन के नीमन से बुझा चुकल बा कि हिन्दी से रोजी-रोटी के गराण्टी भेंटाइल मोसकिल बा। हिन्दी के लेके जवन सपना रहे, उ ई रहे कि ई अङ्ग्रेज़ी के स्थान पर काबिज होई। बाकि अइसन…
Read Moreआपन ढेंढर भूलि दोसरा के फुल्ली निहारे के फैसन
का जमाना आ गयो भाया, एगो नया फैसन बजार में पँवरत लउकत बा, ढेर लो ओह फैसन ला पगलाइल बा। उचक के ओह फैसन के लपके खाति कुछ लोगन के कुटकी काट रहल बा। एह फैसन के फेरा में हर जमात के कुछ न कुछ लोग लपके ला लाइन लगवले देखात बा। कुछ लो लपकियो चुकल बा। एह फैसनवा के लपकते लोगन के चरचा होखे लागत बा। मने मुफ़ुत में टी आर पी के कवायद। ई कुछ चिल्लर टाइप के लो बा भा रउवा चिरकुट टाइप बूझ सकेनी, एह फैसन…
Read Moreअहम् के आन्हर सोवारथ में सउनाइल
का जमाना आ गयो भाया, आन्हरन के जनसंख्या में बढ़न्ति त सुरसा लेखा हो रहल बा। लइकइयाँ में सुनले रहनी कि सावन के आन्हर होलें आ आन्हर होते ओहन के कुल्हि हरियरे हरियर लउके लागेला। मने वर्णांधता के सिकार हो जालें सन। बुझता कुछ-कुछ ओइसने अहम् के आन्हरनो के होला।सावन के आन्हर अउर अहम् के आन्हरन में एगो लमहर अंतर होला। अहम् के आन्हरन के खाली अपने सूझेला, आपन छोड़ि कुछ अउर ना सूझेला। ई बूझीं कि अहम् के आन्हर अगर सोवारथ में सउनाइल होखे त ओकर हाल ढेर बाउर…
Read Moreअनुवाद के बाद के माने-मतलब
का जमाना आ गयो भाया। कुछ दिन से में/से के चकरी घूमे शुरू भइल बा। बाक़िर ई चकरिया के घूमलो में कुछ खासे बा। जवन आजु ले मनराखनो पांड़े के ना लउकल। ढेर लोग कहेलन कि अइसन कुल्हि काम पर मनराखन पांड़े के दिठी हमेशा जमले रहेले। अब मनराखनो बेचारे करें त का करें। उनका के आजु ले ई ना बुझाइल कि भोजपुरी में बयार मनई आ गोल-बथान देखि के बहेले। एक्के गोल में कई सब-गोल बाड़ी स, ओहिजो हावा के गति परिभाषा के संगे बहेले। जहवाँ एक गोल के…
Read Moreअँधेर पुर नगरी….!
का जमाना आ गयो भाया,सगरी चिजुइया एक्के भाव बेचाये लगनी स। लागता कुल धन साढ़े बाइसे पसेरी बा का। कादो मतिये मराइल बाटे भा आँखिन पर गुलाबी कागज के परदा टंगा गइल बा,जवना का चलते नीमन भा बाउर कुल्हि एकही लेखा सूझत बाटे। मने रेशम में पैबंद उहो गुदरी के। मने कुछो आ कहीं। मलिकार के कहलका के आड़ लेके आँखि पर गुलाबी पट्टी सटला से फुरसते नइखे भेंटत। मलिकार कहले बाड़े, ठीक बा, बाक़िर समय आ जगह का हिसाब से कुछो कहल आ कइल जाला। अपना लालच में मलिकारो…
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