झंखे साँच

झंखे साँच झूठ क जयकारा हौ बाबू हई देखा आइल हरकारा हौ बाबू ।   मंच क पंच तक कारोबार फनले बा कीमत असूले ला रउबार ठनले बा । गीत चोरन क चढ़ गइल पारा हौ बाबू । झंखे साँच—   पीढ़ा पर बइठ के सबका के कोसल टुटली कमरिया संगे धरि धरि पोसल कबों छूटी ना मजगर चारा हौ बाबू। झंखे साँच—   भावेला उनुका त पतुरिया के संगत मुँह बेगर दाँत क चउचक बाटे रंगत पानी घाट घाट के त खारा हौ बाबू। झंखे साँच—   गुरुजी आ…

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