पुस्तक- निमिया रे करुआइनि
विधा-उपन्यास / उपन्यासकार – मीनाधर पाठक
प्रकाशन वर्ष-2024 /प्रकाशन संस्थान – सर्वभाषा प्रकाशन , नई दिल्ली -59
- ‘निमिया रे करुआइनि’ स्त्री संवेदना के उनुका मन के मोताबिक आ उनुका स्थिति का हिसाब से गढ़ाइल बा। कथाकार अपना कथा-विन्यास के स्मृतियन से जोड़त रोचक बनावे में कवनों कोर कसर नइखे छोड़ले।
- एह उपन्यास के नायिका सुरसतिया (सुरसती) के करुणा आ दुःख भरल जिनगी के जतरा जवन मन,मेहनत आ देह के शोषण से होके गुजरल बा , ओकर नीमन से शब्द चित्र खिंचाइल बा।
- एही उपन्यास के एगो अउर चरित्र मतउ जहवाँ मैला ढोवे वाली कुप्रथा के शिकार बाड़न, ई बतावत एगो पुरान कुप्रथा पर प्रहार कइल गइल बा, उहवें राजेश के बहाने अजुओ गटर में सफाई करे वालन के दुरदसा आ उनुके असमय मउवत वाली समस्या के उठावल गइल बा।
- निर्मलिया के चरित्र जहवाँ निःस्वार्थ सेवा के ऊँचाई दे रहल बा । उहवें उपन्यास के सभेले व्यापक चरित्र ‘अंजलिया’ के सहारे शिक्षा के महातिम के बखूबी उकेरल गइल बा।
- सुरुजा के अरब पलायन के जड़ में व्यवस्था से विद्रोह के झलक बा । उहवें ओकर दोसरा बेरी के पलायन परिस्थिति के सामना ना कइल, मनई के कमजोरी पर सभे के दीठी खींचे के परयास लेखा बा।
- मतउ के लकवा के शिकार भइला का चलते मतउ बो क उनुके सेवा टहल में अझुराइला का चलते जब घर के पतोह सुरसतिया घर-बाहर के सगरे कर्मठ करे लागतिया । ई ओकरा अपने सास ससुर के प्रति ओकर समरपन आ दायित्वबोध क समझ नीमन से पाठक के सोझा आ रहल बा।
- परिस्थिति बस छोटका बाबू आ उनुकर पत्नी राजनंदिनी के सुरसतिया के दुअरा गइल, राजनंदिनी क अँचरा पसारि के सुरसतिया से वंस माँगल आ दोसरा दिन सुरसतिया क बड़का घरे जा के राजनंदिनी के आपन लइका संउपल ओकरा के तेयाग के प्रतिमूर्ति बना रहल बा।
- एह उपन्यास के उतराव-चढ़ाव, बनावट-बुनावट पठनीयता के सुगम बना रहल बा आ पाठक के बान्ह के राखे में पूरा तरे से सफल देखात बा। कुछ कथा-कहानी आ उपन्यास अइसन होलें, जवना के बेर-बेर पढ़े के मन करेला,’निमिया रे करूआइनि’ ओही में से एगो बा।
- “एगो लमहर कहानी से शुरू भइल कथा के पसराव, बुनावट, समय के अंतराल अउर कलेवर का चलते ‘निमिया रे करूआइनि’ यकीनन उपन्यास के दरजा के चीजु ह ।”भूमिकाकार दिनेश पाण्डेय जी के एह कहानगी से असहमत होखला के कवनों कारन नइखे देखात।
- उपन्यासकार मीनाधर पाठक जी के लेखनी से जवन जीवंतता सोझा आइल बा , उ देखे जोग बा। एगो विशेष स्थिति के उकेरल देखी- जवना जनाना के मरद बहरवासू हो जाले ओकरा पर समाज के गीध-नजर कइसे गड़े लागेला। सुरसतिया के देखत छोटका बाबू के मनोभाव -“ओकरी देहि के एक-एक अंग अपनी ऑखिन से नापत-जोखत रहलें आ मन में सोचत रहलें,ससुर सुरुजा के कवने जनम के पुन्न-परताप जागल रहे कि अइसन मेहरारू पा गइल। अइसन उज्जर,मलाई जइसन चिक्कन देहि आ मछरी जइसन सुन्दर आँख -ना देखनीं कबो मेहर टोली में।”
- – सुरसतिया समाज के एह नजर से घवाहिल होके अपजस से प्रताड़ित भइला के बावजूदो आपन जनमावल अपना करेजा के टुकड़ा के छोटकी मलिकाइन के सौंप के आपन कलंक धो लेबे के जतन करत बिया, बाकिर दाग त दाग हs! समाज अपना नजाइज करनियो के कइसे पचा लेला आ अभिशप्त जीवन जीये खातिर अकेले कवनों मनई के बिलबिलाये खातिर छोड़ देला – एह उपन्यास के कथा एह बात के साफ कर देत बा।
- अंत में चलत-चलत एगो बहुत खास बात – भोजपुरी साहित्य में उपन्यास लेखन सन् 1950 के बाद शुरू भइल आ पहिल उपन्यास बिंदिया जवना रामनाथ पाण्डेय जी लिखले बानी। भोजपुरी में कवनो महिला द्वारा लिखल ई दोसरका उपन्यास ह । पहिला उपन्यास ‘कादम्बरी’ जेकरा डॉ. शैलजा श्रीवास्तव जी लिखले बानी। ओकरा बाद ई दुसरका उपन्यास बा जवन मीनाधर पाठक जी लिखले बानी।
- एकरा संगही हम उपन्यासकार मीनाधर पाठक जी के एह सुघर लेखन खाति बधाई आ शुभकामना देतानी । हमरा उमेद बा कि भोजपुरिया साहित्यानुरागी लोग एह उपन्यास के हाथो हाथ लेही।
जय भोजपुरी !!
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- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक
भोजपुरी साहित्य सरिता