गाँव-गिरांव के मड़ई से आध्यात्म के शिखर का अनूठा कवि- अनिरुद्ध

पुरूबी बेयार से रसगर भइल गँवई सुघरई के सँवारत, ओकरे छटा के उज्जर अंजोरिया में छींटत-बिदहत कविवर अनिरुद्ध के गीत आ कवितई अपना तेज धार में सभे पाठक आ श्रोता लोगन के बहा ले जाये के कूबत राखेले। अनिरुद्ध जी के गीत आ कवितई अपना स्पर्श मात्र से पथरो पर दूब उगावे लागेले। फेर कतनों नीरस मनई काहें ना होखों, ओकरा के सरस होखे में देर ना लागे।जवने घरी भोजपुरी गीत भा कविता मंच पर ले जाइल, उपहास करावत रहे, ओही घरी अनिरुद्ध जी अपने गीतन से हिन्दी काव्य मंचन…

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भोजपुरी साहित्य के आधी आबादी

हाल के कुछ बड़ घटना में एक बात इहो बा कि लेखन के दुनिया में औरतन के हिस्सेदारी पर बातचीत कइल जाता। शहर-शहरात से लेके गांव-जवार के दूर-दराज़ इलाका में जइसे-जइसे सामाज आ राजनीति में महिला लोगन के भागीदारी बढ़ल जाता, ओह पर चर्चा भी खूब होता। बाकिर आपन जिनगी के मूल समस्या के लेके हिन्दी या हिन्दी के इलाकाई बोली में जेतना ढेर संख्या में महिला रचनाकारन के उभार भइल बा, ओकर एक चौथाई हिस्सा पर भी लिखल-पढ़ल, बोलल-बतियावल अभी नइखे गइल। एह में कउनो शक-शुबहा नइखे कि महिला…

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