सात पुहुत के उखड़ गइल खूँटा

सात पुहुत के उखड़ गइल खूँटा बेंचा गइलें स बैल दुआर कुछ दिन रहल उदास बाकिर सन्तोषो ई कम ना रहल कि अतना जोतइला के बादो निकल गइल दाम गहँकी अइलें स तय भइल दाम धरा देल गइल पगहा पगहा धरावत दाम धरत माथ पर गमछा धइल ना परल भोर रिटायर होत समय चाचा सोचलें आ सोचल आपन सगरो गवलें कि रहब गाँवे खेत-बधार घूमब रिटायर भइला के साले-दू साल बाद बँटा गइल घर चूल्हा-चउका फरिया गइल गुमसुम रहे लगलें चाचा एह गुमसुमी के लागल कतने माने-मतलब कबो अन्हारें कबो…

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डिजिटल जमाना अउर रामधनी बब्बा

खुद से त अब नाही उनकर कइल बा लड़िकन के बुद्धि पे पत्थर धइल बा मोदी क अभियान का चल गइल बा रामधनी बब्बा क फजीहत भइल बा   जब से खुलल हउए जनधन क खाता खाता में रुपिया न आवत न जाता कुछ गड़बड़ी बा रुकल बाटे पेंशन बब्बा से ज्यादा हौ आजी के टेंशन न पइसा मिली त चली काम कइसे बिना माल मुद्रा क आराम कइसे टूटल हउए खटिया फटल बा रजाई इ सुरति सुपारी कहाँ से अब आयी बब्बा लगवअत हयन खूब चक्कर घुमावअत बहुत हउए…

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कुछ दिन बचके रहअ गुरु

कुछ दिन बचके रहअ गुरु घर में घुस के रहअ गुरु केहू से मत तनिक सटअ सबसे कट के रहअ गुरु फइलल बाटै खूब कोरोना ख़ूब मचल हौ रोना-धोना कउनो दवा न असर करत बा नाहीं कउनो मंतर टोना चीन से फइलल दुनिया भर में गाँव-गाँव में,शहर-शहर में एक लोग से अउर लोग में एक घरे से, दुसरे घर में सर्दी से शुरुआत करअ ला खाँसी दिनों रात करअ ला फिर जम के बुखार देला ई किडनी पर फिर घात करअ ला   पहिले चीन में ठोकलेस ताल फिर इटली…

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सावन भादो फेल भइल ह

जेठ में अइसन खेल भइल ह सावन भादो फेल भइल ह । नदी नहर फूफकरले बाटे ताल पोखर भी भरले बाटे धान क बिआ सांस ना लिहलस अइसन इहां झमेल भइल ह सावन भादो फेल भइल ह । केकर लगल ह उल्टा बानी लूह के बदले बरसे पानी ललका पानी भरल सिवनवां पूरा रेलम रेल भइल ह सावन भादो फेल भइल ह । तेलहंडा में गइल किसानी कइसे रइहें पशु परानी का खइबा का देहं लगइबा महंगा सरसो तेल भइल ह सावन भादो फेल भइल ह । सांचो में भठजुग…

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केकरे ख़ातिर

दिनवा दिनवा भागत हउवअ केकरे खातिर रतिया रतिया जागत हउवअ केकरे खातिर   बीवी-बच्चा ख़ातिर भी ना  समय बचत बा ऑफिस में ही सारा-सारा समय कटत बा पइसा त आवत बा लेकिन जीवन बा फीका पइसा खर्च करअ क टाइम कहाँ मिळत बा   बहरअ रहअ चाहत हउवअ केकरे खातिर झूठअ मन बहलावत हउवअ केकरे खातिर   करअ नौकरी के रोकत बा खूब करअ खिंचअ रुपिया के टोकत बा खूब धरअ लेकिन अपने देहियों क तनी करअ फिकिर के कहले बा नया जमाना देख मरअ   बेटाइम क चाभत हउवअ केकरे खातिर छुप के चूरन फांकत  हउवअ केकरे खातिर   दूसरे क बस देख -देख क होड़ मचल…

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बगल में छुरी

आन्हर बहिर गरहो से गहिर पोतले चन्नन उजरे पहिर।   ओढ़ले कमरी लिहले गगरी बिष से भरल चललें डहरी।   कुछहू बोलत सगरों  डोलत सरम छोड़िके गठरी खोलत।   कुछ के बटलें सभके कहलें मुँह पर ढकनी बन्हले रहलें।   कउड़ा तपलें उलटा जपलें बाउर माहुर सोझहीं नपलें।   करमें भगलें धउरे लगलें हाथ जोरिके मफ़ियो मगलें। राखीं दूरी मिलें त थूरीं जिनके मुँह राम बगल में छुरी॥   डॉ जे पी द्विवेदी संपादक भोजपुरी साहित्य सरिता

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हमार टोला

घरे-घर पालेलें सपोला, हमार टोला। सभही बनेला रामबोला, हमार टोला॥   चर-चेरउरी से बतिया बनावेला आगु-पाछा घूमि उनुका पटावेला कतहूँ उठवले फिरे झोला, हमार टोला ॥   जोरत गाँठत सुतार  जोगावेला चन्नन छिरकी जगहियो गमकावेला ओहमें मिलवले बिसगोला,हमार टोला॥   बीने-बरावे में बखत खपावेला आपन अपने के कुल्हि चमकावेला निकसेला बइठी के डोला,हमार टोला॥   जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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