मम्मी रे पापा से कह के ड्रेस एगो बनवा दे। हमहूं रोज इसकूल जाइब भइया के बतला दे। जूता मोजा कलम पेनसिल कापी किताब टाई। जेंटल मएन बनके जाइब जइसे जाला भाई। हरमेस हाथ पकड़ि के चलबि पीठ प लादि के बसता। इयाद पारि के रोजे रखिहे मम्मी ओ में नासता। मम्मी कान पकड़त बानी छोड़ देब सैतानी । सभ केहु के मान राखबि हम बोलबि गुर जस बानी। ना खाइब अब चिप्स कुरकुरा चाट अउरी समोसा। ए ममता के मूरत मम्मी अब त क ले भरोसा। सभ लइकन से…
Read MoreCategory: भोजपुरी कविता
पान थूक के
पढ़े लिखे में जी ना लागे बनि के घुमत हवा नमुन्ना पिता जी पूछलन पूत से अपने रगड़त खैनी संगे चुन्ना। तब बबुली झार अदा से अगबै पान थूक के बोलस मुन्ना सुना हे बाऊ नेता बनबै कइ देब दऊलत पल में दुन्ना। का घबड़ाला झूठमूठ क अँगुरी पर बस दिनवा गीन्ना लड़ब बिधइकी जल्दी हनहुँ फिर बुझबा हम हई नगिन्ना। जिला जवारी जानी हमके निक निक लोगवा छोड़ि पसिन्ना तोहरो नाम ऊँचाई छुई नाची सब डेहरी पर धिन्ना। खड़ा सफारी दुअरे होई मनी महोत्सव साथ…
Read Moreनून-तेल-लकड़ी मे फंसि गइल जनता
नून-तेल-लकड़ी मे फंसि गइल जनता नाहीं त तखता पलटि देत जनता! ओके लगेला की होत बा सब अच्छा नइखे मालूम के बा झूठा के बाद सच्चा भेड़ियन के बीच में भइल नंगी जनता नाहीं त तखता पलटि देत जनता! धरम-करम मेें उ बा गइल अझुराई जात-पात ऊंच-नीच के रोग लगाई भरम मे भागल जाले कांवर लेके जनता नाहीं त तखता पलटि देत जनता! बरध जइसे रात-दिन बहावे पसीना पेट जिआवे फारि धरती के सीना किसमत पे रोवै बइठ करे कुछ ना जनता नाहीं त तखता पलटि देत…
Read Moreकहानी का सुनायीं
गांव के परिवेश के कहानी का सुनायीं सभे बा मतलबी केकरा के समझायीं घर के पड़ोसिया लगावे दरहीं कूड़ा कहले पे हमके दिखावे लमहर हुरा धमकी त देत बा कईसे समझायीं गांव के परिवेश के……। संस्कार घर-घर के स्वाहा भईल जाला ईर्ष्या के आग में सबे जरते देखाला सुनि के अनसुनी करे माने नाहीं बतिया अंखिया में धूल झोके संझिये के रतिया अइसने मतलबियन के कईसे समझायीं गांव के परिवेश के……..। ऐश आ फिजूल में करेला सभे खरचा मुहवा से कब्भो नाहीं धरम के चरचा मतलब परेला त…
Read Moreबरम बाबा
तू त देखतअ हउअ सब दिन-रात बरम बाबा नाहीं बा अब पहिले जइसन बात बरम बाबा सुक्खू अपने अँगने में भी नल लगवा लेहलेन कुँआ पाट के रामधनि बइठका बना देहलेन बुधनी के दुआर पर खम्भा घर में लाइट बा बालकिशुन बिल देवे लगलेन जेबा टाइट बा घरे-घरे पैखाना बा ,लोटा क जुग बिसरल केहू नाही अब जंगल में जात बरम बाबा || घर घर में टीवी बा ,डिश बा,इंटरनेट भी बा सबके पल्ले मोबाईल क बढ़िया सेट भी बा बर्गर,पिज़्ज़ा,चाउमीन सब मिलय लगल अब त केक, पेस्ट्री ,काफी,कुल्फी दिखय लगल अब त …
Read Moreतीन चौथाई आन्हर
बाबू आन्हर माई आन्हर हमै छोड़ सब भाई आन्हर के-के, के-के दिया देखाई बिजुली अस भउजाई आन्हर॥ हमरे घर क हाल न पूछा भूत प्रेत बैताल न पूछा जब से नेंय दियाइल तब से निकल रहल कंकाल न पूँछा ओझा सोखा मुल्ला पीर केकर-केकर देईं नजीर जंतर-मन्तर टोना-टोटका पूजा पाठ दवाई आन्हर॥ जे आवै ते लूटै खाय परचल घोड़ भुसवले जाय हँस-हँस बोलै ठोंकै पीठ सौ-सौ पाठ पढ़वले जाय केहू ओनइस केहू बीस जोरै हाथ निपोरै खीस रोज-रोज मुर्गा तोरत हौ कइसे कहीं बिलाई आन्हर॥ …
Read Moreभाषा के खातिर तमासा
इ भाषा बदे ही तमाशा चलत हौ बिना बात के बेतहासा चलत हौ इहाँ गोलबंदी, उहाँ गोलबंदी बढ़न्ती कहाँ बा, इहाँ बाS मंदी । कटाता चिकोटी सहाता न बतिया बतावा भला बा इ उजियार रतिया कहाँ रीत बाचल हँसी आ ठिठोली इहो तीत बोली, उहो तीत बोली । मचल होड़ बाटे छुवे के किनारा बचल बा इहाँ ना अरारे सहारा बहत बा दुलाई सरत बा रज़ाई न इनके रहाई न उनके सहाई। भगेलू क इहवाँ बनल गोल बाटे सुमेरु क उहवाँ बनल गोल बाटे दुनों के दुनों…
Read Moreगिरगिट
सोझ हराई में साजिश के बुनत रहल बिखबेली जे, काहे दुन कुछ दिन ले भइया, बाँट रहल गुर भेली से। ढलल बयस तबहूँ ना जानसि अंतर मुरई गाजर के, रँहचट में सोना के सपना आन्हर काढ़सि काजर के। जेकर बगली फाटल रहुवे हाथे रखल अधेली से। जे बघरी में फेंकत रहुवे सँझहीं से कंकर पत्थल, अन्हियारे के मत्थे काने सबद पसारल अनकत्थल। आजु-काल्हु ना जाने काहे उलुटे बाँस बरेली से। जुर्जोधन के मत भरमइलसि ठकुरसुहतियन के टोली, जरल जुबाँ कइसे कस माने भनत फिरस माहुर बोली। गांधारी के आँखे झोंपा…
Read Moreमम्मा
आपन रीति आपन नीति आपन करम भुला गइलन। देखs घरवाँ रार मचावे शकुनि मम्मा आ गइलन॥2॥ सोचलन उहवाँ होई का,का करत होइहें ओहनी फाँका। देखलें जरत घीव क दियरी चउकठ लँघते बउरा गइलन॥ देखs घरवाँ रार मचावे शकुनि मम्मा आ गइलन॥2॥ बाबू-माई कबों न बुझलन भाईन के भाई न समुझलन बहिनो घरवाँ फाँड़ करावे दिन अछते हहुआ गइलन॥ देखs घरवाँ रार मचावे शकुनि मम्मा आ गइलन॥2॥ घर वालन के ठेलि भुइयाँ हित-मीत ला इनरा-कुइयाँ अपने नीमन खाट पकड़ि के लोटs खातिर अगरा गइलन॥ देखs घरवाँ रार मचावे…
Read Moreतलफत भुभुरी सोंच के
सोंचे में सकुचातानी कहे में भीतरे डेराइला, रोज अंजुरी में धुंध सहोरले दिल के कठवत में नेहाइला।। बेवहार के बागि नोचाता फीकीर केहुके हइए नइखे, जब कहीं करम के पटवन कर त हम केकरो ना सोहाइला।। सभे बवण्डर बनिके चले रेगिस्तानी राग अलापता, कपट के करवन लोटकी से सभके के नेहवाइला।। कसमकस से कलपत काया करीखा के बनल संघाती, सोंच के तलफत भुभुरी में डेगे डेग नहाइला।। जेने देखीं झूठ के ढेरी ना बाजे कवनो रणभेरी, आंखि अछइत आन्हर भइनी कुकुर जस चिचिआइला।। कइसन दइब के ज्ञानी बस्तर झूठ फरेब…
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