हमनी अइसन नगर में बसे खातिर रहली जा सरापित जेहवाँ सलीका के ना बाँचल रहे केवनो पड़ोस सिरमौर बनि के रहे जिनगी में तटस्थता बिना केवनो काम के प्रतिरोध एह घरी खलिसा एगो रूप मानल जात रहे मूर्खता के जेकरा किछुओ भेंटा जात रहे ऊहे मानल जात रहे रसूख़दार पद पैरवी पुरस्कारे से आँकल जात रहे केवनो आदमी के सरकारी संस्थानी ‘साहित्यभूषण’ के उपाधिए पहचान बनि गइल रहे बड़हन साहित्यकार के जे एक्को दिन क्लास में जाइ के ना पढ़ावत रहे ऊहे पावत रहे शिक्षक शिरोमणि के सम्मान चरने चाँपल…
Read MoreCategory: भोजपुरी कविता
बाप के माल ह
इनकर उनकर सबकर दबा के हजम कइल रउरे चाल ह। बेसरमी से कहेलन बाप के माल ह। कुछो जोड़-घटा द इहाँ उहाँ के कुछो सटा द कुछ गूगल से उधार करS बाचल-खुचल अनुवाद करS फेर कतनों अनवाद करS थेथरई त ढाल ह। बाप के माल ह। एगो गिरोह बना ल कुकुर-बिलारो के मंच पर चढ़ा द जेकरा स के नइखे पता ओकरा शोध के काम पकड़ा द कबों अपनों विरोध करवा द एह पर त सभे निहाल ह। बाप के माल ह। कतों घुसुर के तर्क-बितर्क अपना…
Read Moreनदी के लाश बेहतर बा गुरूजी
बहत हर आदमी धारा में लेकिन किनारा पा सकल ना आज तक भी , सहारा अब कहां पाईं, भेटाई इशारा कर रहल इतिहास तक भी । खुदी के हाथ पर विसवास राखी ओही के आखिरी पतवार बुझी। नदी के लाश बेहतर बा गुरूजी। नदी के लाश,,,,,,,,, । नियम कानून कऊनो ना बनल ह कि कऊने रास्ता से केई जाई , उहा दरबान भी मिलीहे न तोहके कि बढ़ी के बोल दे एहरे से आईं । तोहार इमान ही बलवान ओहिजा भरल जिनगी जवन तोहसे अबुझी, नदी के लाश बेहतर…
Read Moreरहे इहाँ जब छोटकी रेल
देखल जा खूब ठेलम ठेल रहे इहाँ जब छोटकी रेल चढ़े लोग जत्था के जत्था छूटे सगरी देहि के बत्था चेन पुलिग के रहे जमाना रुके ट्रेन तब कहाँ कहाँ ना डब्बा डब्बा लोगवा धावे टिकट कहाँ केहू कटवावे कटवावे उ होई महाने बाकी सब के रामे जाने जँगला से सइकिल लटका के बइठे लोग छते पर जा के अरे बाप रे देखनी लीला चढ़ऽल रहे उ ले के पीला छतवे पर कुछ लोग पटा के चलत रहे केहू अङ्हुआ के छतवे पर के उ चढ़वैइया साइत बारे के पढ़वइया…
Read Moreचिरईं फेर से चहकी
पुरवा फेर से बहकी। हर पत्ता पियराइल बा कतहूं गंध हेराइल बा टेढ़ परीक्षा आइल बा फूलवा फेर से महकी। अबहीं रात के डेरा बा सब समय के फेरा बा धीरज धरे के बेरा बा चिरईं फेर से चहकी। डॉ हरेश्वर राय सतना, मध्य प्रदेश
Read Moreखेला
नदी पर ढेर दिन ले पूल ना रहे केहु कहे कि नदी के पूल पसन ना ह केहु कहे कि पूल के इ नदी पसन नइखे बूढ़वा बिधायक दूनू जाना के बात गाँठ बान्ह लेले रहनी कहीं कि, जवन नदी के पसन जवन पूल के पसन, उ पब्लिक के पसन जवन पब्लिक के पसन उ बिधायक के करतब्ब बिधायक जी छव गो चुनाव पार क गईनी बिना पूल के . . . . बाकि एकरा के खेला मत बुझीं खेला त इ रहे कि तीस साल में पूल छव…
Read Moreबाबूजी
घरवा के मुखिया लइकन के मुस्कान बाबूजी के पाकिट में रहेला सब के जान। सब के ख़ुशहाली बजा के ताली सब दुख दूर होला चुटकी में खाली। बाबूजी जइसन छाता हमनी के विधाता। दुनिया जहान में नइखे आइसन सुंदर नाता। माई के सिंदूर चमके। खेत बधार गमके। बाबूजी के पसीना से अंगना अँजोर दमके। बहाके पसीना जगाके आस। रोटी में आवेला मिठास। कर देलन चुटकी में दूर परेशानी, उनका जइसन केहू नइखे ख़ास। सविता गुप्ता राँची झारखंड
Read Moreसतुआ
पहिले सतुए रहे ग़रीबवन के आहार केहू जब जात रहे लमहर जात्रा प त झट बान्हि लेत रहे गमछा में सतुआ,नून, हरियर मरीचा आ पियाजु के एकाध गो फाँक केवनो चापाकल भा ईनार से पानी भरि के लोटा भर सुरूक जात रहे केहुओ बेखटके ऊ बिस्लरी बोतल के ज़माना ना रहे सतुआ सानि के गमछिए प खा लिहल जात रहे ओह घरी गरमी में केवनो पीपर,बर आम भा महुआ के छाँह में पहिले लोग क लेत रहे गुज़र-बसर सतुओ खाके ओह घरी बजार में बेंचात ना रहे केवनो फास्टफूड अब…
Read Moreतमासा घुस के देखै
लख लतखोर कहाय, तमासा घुस के देखै॥ सौ सौ जुत्ते खाय, तमासा घुस के देखै॥ इनका उनुका बहकावे में नाटो क खिचड़ी पकावे में जेलस्की इतराय, तमासा घुस के देखै॥ गावत फिरत देस के गीत संहत छोड़ि परइलें मीत बइडेनवा मुसकाय, तमासा घुस के देखै॥ बरसे लगल रसियन मिसाइल खड़हर सहर मनई बा घाहिल खूनम खून नहाय, तमासा घुस के देखै॥ मानवता के नारा कइसन नैतिकता क पहाड़ा जइसन कबौं बदल ऊ जाय, तमासा घुस के देखै॥ के बा नीक, नेवर के बा फयदा केकरा…
Read Moreफागुन में नाचल
हंसि हंसि क बहार उतान भईल, अगराई के फाग जब फागुन में नाचल । फगुआ के जब आगुआन भईल, अबीर-गुलाल आपना सुघर भाग पे नाचल। बबुआ-बुचिया के जब रंग रंगीन भईल , फिचकारी के संग उछल- कुद के नाचल । बुढा-जवान के भेद सभ भुल गईल , फागुन फगुआ के जब मधुर तान पर नाचल। आपन-आन के सब ध्यान गईल , जब बैर तेज के सब केहु गले मीली नाचल। उमेश कुमार राय ग्रा0+पो0- जमुआँव , जिला- भोजपुर (बिहार )
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