मति मारीं हमके

ओई दिन माई घर की पिछुवाड़े बइठि के मउसी से बार झरवावत रहे। तवलेकहिं बाबूजी आ गइने अउर माई से पूछने की का हो अबहिन तइयार ना भइलू का? केतना टाइम लगावतारू? माई कहलसि, “बस हो गइल, रउआँ चलिं हम आवतानी।” खैर हम समझि ना पवनी की कहाँ जाए के बाति होता। हम लगनी सोंचे की बिहाने-बिहाने बाबूजी माई के लिया के कहाँ जाए के तइयारी करताने। अरे इ का तवलेकहिं हमरा बुझाइल की मउसी त सुसुक-सुसुक के रोवतिया। हम तनि उदास हो गइनी काहें की हमरा लागल की मउसी…

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एगो त्रिवेणी ईहवों बा

मन में घुमे के उछाह, सुन्दरता के आकर्षण आ दू देशन के राजनैतिक सीमा के बतरस के त्रिवेणी में बहत ही हम त्रिवेणी जात रहनी। हमनी के छह संघतिया रहनी जा आ एगो जीप के ड्राईवर। हमरा के छोड़ के सभे एह प्रान्त से परिचित रहे। हमरा बेचैनी के एगो इहो कारन रहे की आजू ले हम त्रिवेणी स्थान के नाम इलाहबाद के संगम खातिर सुनले रहनी। ई त्रिवेणी कवन ह? उत्तर-प्रदेश के कुशीनगर जिला मुख्यालय से लगभग नब्बे किलोमीटर उत्तर-पछिम के कोन में बा ई त्रिवेणी। पाहिले त गंडक…

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भोजपुरी रचनात्मक आन्दोलन के माने-मतलब

केहू दिवंगत हो जाला त आमतौर पर कहल जाला कि भगवान उनुका आत्मा के शांति देसु। हमार एगो कवि-मित्र कहेले कि बाकी लोग के त पता ना, बाकिर कवनो रचनाकार खातिर अइसन बात ना कहे के चाहीं। शान्त आत्मा से कवनो रचना त हो ना पाई आ ना हो पाई त बेचारा दुबारा मर जाई। कहे के अतने बा कि रचना अपना आपे में एगो उदबेग ह, आन्दोलन ह, कुछ उदबेगेला त ऊ आवेला आ आवेला त उदबेगेला। रचनात्मकता, चाहीं त कह लीं, कि आन्दोलित भइले-कइला के एगो आउर नाँव…

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लोकमन आ लोकरंग के चतुर चितेरा भिखारी ठाकुर

लोकमन आ लोकरंग के चतुर चितेरा भिखारी ठाकुर आजुओ भोजपुरी के सबसे चर्चित व्यक्ति बाड़न. केहू उनके समय-संदर्भ के सर्वाधिक चर्चित नाटककार का रूप में, भोजपुरी के ‘शेक्सपियर’ मानल त केहू भोजपुरी भाषा-साहित्य के प्रचार-प्रसार खातिर ‘भारतेन्दु’ का नाँव से नवाजल. पुरबी राग के जनक महेन्दर मिसिर का बाद, बलुक उनहूँ ले ढेर भिखारी ठाकुर क नाँव चर्चा में रहल. साहित्य अकादमी उनके भारतीय साहित्य निर्माता का वर्ग में रेघरियावत “भिखारी ठाकुर” नाँव क ‘मोनोग्राफ’ प्रकाशित कइलस. भिखारी आखिरकार ई सिद्ध कइये दिहलन कि लोकप्रियता कवनो रचनाकार कलाकार के महान…

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नेता काका

नेता काका के असली नाव हमरो पता नइखे पर गाँव-जवार,हित-नात सब केहू उनके नेते-नेते कइले रही….हँ कुछ लोग उनके दरबरियो कहेला। दरअसल एक बेर के बाति ह की चुनाव में नेता काका राजमंगल पाणे के परचार करत रहने। ओ ही बीचे उ एक बेर कवनो अउर नेता के परचार में देखि लेहल गइने। अब ए में नेता काका के कवन दोस बा, उ केहू के मनो त ना क सकेने। अब जब राजमंगल पाणे के इ बाति मालूम चलल त उ नेता काका के बोलववे अउर कहने की ए दरबारी असली नेता तूँ ही…

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मांगलिक गीतन में प्रकृति-वर्णन

लोक-जीवन में आदमी के सगरो क्रिया-कलाप धार्मिकता से जुड़ल मिलेला। आदमी एह के कारन कुछू बुझेऽ। चाहे अपना पुरखा-पुरनिया के अशिक्षा आ चाहे आदमी के साथे प्रकृति के चमत्कारपूर्ण व्यवहार। भारतीय दर्शन के मानल जाव तऽ आदमी के जीवन में सोलह संस्कारन के बादो अनगिनत व्रत-त्योहार रोजो मनावल जाला। लोक-जीवन के ईऽ सगरो अनुष्ठान, संस्कार, व्रत, पूजा-पाठ, मंगल कामना से प्रेरित होला। ई सगरो मांगलिक काज अपना चुम्बकीय आकर्षण से नीरसो मन के अपना ओर खींच लेला। एह अवसर पर औरत लोग अपना कोकिल सुर-लहरी से अंतर मन के उछाह…

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भोजपुरी गीतन में होली वर्णन

भोजपुरिया धरती उत्सवधर्मी  धरती ह। भोजपुरिया लोकजीवन मुख्य रूप से खेती-किसानी पर आधारित बाटे ना, त मेहनत मजदूरी पर। भोजपुरिया लोकजीवन के हर एक परब त्योहार कृषि से जुड़ल बाटे। एह त्योहारन में होली-फगुआ के त कहहीं के का बा?घर के कोठिला में घान-चाउर भरल रहेला, बघार में गेहूँ गदरात रहेला,आम-महुआ मोजरात रहेला आ सरसो पिअर रंग फुलाए लागेला,त समझीं बसंत आ गइल बा। किसान-मजदूर देख-देख हरखित होला आ बसंत पंचमी से शुरू होखे वाला होरी के उत्सव अबीर खेल के शुरू करेला आ लगभग चालीस दिन तक एह त्योहार…

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ब्रजभूषण मिश्र आ उनकर रचना संसार

ब्रजभूषण मिश्र कवि, निबंधकार, संपादक, समीक्षक आ संगठनकर्ता होखे का पहिले साफ मन-मिजाज आ दिल-दिमाग के सोगहग मनई हउवें। साफ मन-मिजाज के मनई मतलब सभकरा हित आ चित के खेयाल राखेवाला। घरियो छन जे इनका से बोल बतिआ लेलस ओकरो के पीठ पीछे कहत सुनले बानी – ए जी, एह जुग-जबाना में मिसिर जिउवा अइसन सहज मनई मिलल मुश्किल बा। एकदम से ‘बारह भीतर एक समाना’। गोसाईं जी का सबदन में – सुरसरि सम सभकर हित होई। एही गुन-धरम वाला के बावा जी कहल जाला। इसे सब गुन-धरम त इनका…

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जनगीत आ भोजपुरी जनगीत

जनगीत में जन आ गीत एक साथे बा।एह में जन पहिले बा आ गीत बाद में।एह पहिले आ बाद के जवन मतलब ह तवन ई ह कि जन के कंठ में गीत बसेला,ओकर हिया से गीत फूटेला।जन आ गीत के जुगलबन्दी में पूरा जीवन धड़केला।राग-रंग के साथे विरह-बिछोह,दुख-तकलीफ आ जीवन-संघर्ष।सज्जी समाज मय नाता-रिश्ता के साथे।जनगीत कवनो एगो भाषा आ देश के चीज ना ह।हर देश हर भाषा में पावल जाला।हँ, ओकर रूप आ अभिव्यक्ति अलग -अलग होला आ बहुत कुछ आश्चर्यजनक रूप से मिलतो जुलत होला।जनगीत के हालाँकि एगो खास…

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भोजपुरी समीक्षा के बढ़त डेग

2021 के जून महीना भोजपुरी समीक्षा खातिर बढ़िया रहल।दूगो महत्वपूर्ण किताब सर्वभाषा ट्रस्ट, दिल्ली से छपल।प्रो.बलभद्र के एगो किताब -“भोजपुरी साहित्य :हाल फिलहाल”आ डा.ब्रज भूषण मिश्र के किताब -“भोजपुरी साहित्य :प्रगति आ परख”सामने आइल।एह दूनू किताबन से भोजपुरी के सृजनशीलता के पता चली।एकनीं में संकलित आलेखन में कवनो -न -कवनो एगो खास भोजपुरी रचना भा रचनाकार के वैशिष्ट्य आ रचनाशीलता पर विचार भइल बा। एकनी से कवनों समालोचनात्मक दृष्टिकोण भा विचार- स्थापना के क्रम में समग्र विश्लेषण के आस भा उमेद लगावल ना त उचित होई ना एह किताबन के…

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