अठवीं से लेके बरहवीं शताब्दी ले चौरासी सिद्ध लोग अपभ्रंश में कविता करत रहे ।सिद्ध लोगन के कविता में भोजपुरी शब्द आ क्रिया रूप मिलल शुरू हो गईल रहे। चौरासी सिद्धन में सबसे प्रसिद्ध रहलें सरहपा । उन कर एगो कविता देखल जां –नगर बाहर रे डोंबि तोहारि कुडिया/छोड़- छोड़ जाई सो बाभन नाड़िया /आलो डोंबि तो सम करबि मो संग /जाम मरण भाव कइसन होई/जीवन्ते भले नाहि विसेस ।‘ एमे ‘छोड़ि छोड़ि जाई’ आ ‘कइसन होई’ भोजपुरी प्रयोग हवे ।सिद्ध लोगन के कविता में एह तरे के बहुत उदाहरण…
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भउजी देह अंइठली अउरी फागुन आय गइल
फगुआ! आहा! चांद-तारा से सजल बिसुध रात छुई-मुई लेखां सिहरता. सोनहुला भोर मुसुकाता. प्रकृति चिरइन के बोली बोलऽतिया. कोयल कुहुक के विरहिनी के जिया में आग लगावऽतिया. खेत में लदरल जौ-गेहूं के बाल बनिहारिन के गाल चूमऽता. ठूंठो में कली फूटऽता. पेड़ पीयर पतई छोड़ हरियर चोली पहिर लेले बा. आम के मोजर भंवरन के पास बोलावऽता. कटहर टहनी प लटक गइल बा. मन महुआ के पेड़ आ तन पलाश के फूल बन गइल बा. हमरा साथे-साथ भउजी के छोटकी सिस्टर भी बउरा गइल बाड़ी. माधो काका भांग पीके अल्ल-बल्ल…
Read Moreधुआंला ना जेकर चुहानी ए बाबू
आसिफ रोहतासवी के नांव भोजपुरी गजल लिखे वाला ओह लोग में शामिल बा, जे गजल के व्याकरण के भी खूब जानकार बा। उनकर रचनाशीलता के पूरा निचोड़ गजल ह, खास क के भोजपुरी गजल। खाली भाषा से ही ना, पूरा मन मिजाज से ऊ भोजपुरी के गजलकार हवें। भोजपुरी के लोकधर्मी गजलकार कहे में हमरा कवनो उलझन नइखे। काहे कि उनकर गजल जवना चीज से बनल बा, जवना दरब से (ई शब्द हम अपना बाबा से सुनले रहीं। ऊ पइसा- कउड़ी के अर्थ में प्रयोग करत रहलें। इहां द्रव्य के…
Read Moreमामा के सपना, उनकर सुख आ बिछोह
जितेंद्र कुमार हिंदी आ भोजपुरी दूनो भाषा में कविता, कहानी, समीक्षा आ संस्मरण लिखेलन। जितेंद्र कुमार के हिंदी आ भोजपुरी के कुछ किताबो छपल बा, जेकर चर्चा लोग करत रहेला। जितेंद्र जी के भोजपुरी कहानी के एगो किताब ह ‘गुलाब के कांट’। ओह में एगो कहानी बा ‘कलिकाल’। ‘कलिकाल’ के बारे में लोक में अनेक रकम के बात चलत रहेला। कुछ लोग ‘कलयुग’ कहेला। कुछ लोग ‘कलऊ’ कहेला। जब नीति-अनीति के बात होला, झगड़ा के, झंझट के, भाई-भाई के बीच विभेद के, रसम-रेवाज के टुटला के, त लोग कहेला कि…
Read Moreमोथा आ मूंज के जिद आ धार के गजल
भोजपुरी के कवि शशि प्रेमदेव के दूगो गजल भोजपुरी के पत्रिका ‘पाती’ के अलग अलग अंक में जब पढ़लीं त ई महसूस भइल कि एह कवि के ठीक से पढ़े के चाहीं। ई कवि आज के समय के कटु सत्य के अपना गीत- गजल के विषय बना रहल बा। ऊ समय के सांच के कहे में नइखे हिचकत। सांच कहल आज कतना कठिन भ गइल बा, ई हमनी के बूझ- समुझ रहल बानी जा। हमनी के जाने के चाहीं कि हर थाना में चकुदार (चौकीदार) होलें। उनकर काम रहत रहे…
Read Moreटिकुरी से बहावल अंखिए बर रहल बा
रामजियावन दास बावला के एगो गीत राह चलते इयाद आवेला आ मन ओह गीत के गुनगुनाए लागेला। ऊ गीत ह -” हरियर बनवा कटाला हो कुछ कहलो ना जाला।” आगे के लाइन ह -” दिनवा अजब चनराला हो, कुछ कहलो ना जाला। ” हरियर बन के कटाइल एगो मामिला बा जवन रोज देखे में आवत बा। रोज हरियर गांछ -बिरिछ विकास के नांव प कटा रहल बा। बन उजड़ रहल बा। जंगल प माफिया आ कॉरपोरेट जगत के दबाव बढ़त जा रहल बा। ई सब हो रहल बा आ बावला…
Read Moreबाउर बातिन का बिरोध से बेसी जरूरत बा नीमन बाति के लमहर परम्परा बनावे के !
हम विषय पर आपन बात राखे का पहिले रउवा सभे के सोझा 3-4 बरिस पहिले के कुछ बात राखल चाहत बानी। 20-22 करोड़ कथित भोजपुरी भाषा भाषियन का बीच 3-4 गो पत्रिका उहो त्रमासिक भा छमाही निकलत रहनी स। ओह समय भोजपुरी के नेही-छोही रचनाकार लोगन का सोझा भा भोजपुरी के नवहा रचनाकार लोगन के सोझा ढेर सकेता रहे। ओह घरी 3-4 गो जुनूनी लोगन का चलते भोजपुरी साहित्य सरिता के जनम भइल। एकरा पाछे एगो विचार रहे कि भोजपुरी के नवहा लिखनिहार लोगन के जगह दीहल जाव, पुरान लोगन…
Read Moreबावला: एगो किसान कवि
रामजियावन दास बावला भोजपुरी के एगो कवि, पुरनकी पीढ़ी के. इनका के जाने वाला जादेतर लोग भक्त-कवि मानेला, राम कथा से जुडल कवितन के चर्चा करेला. बात सहियो लागत बा. कतने कुल्हि प्रसंग बा इनका कविता में जवन कुछ त तुलसी-वाल्मीकि से मेल खाला आ कुछ एक दम इनकर आपन कल्पना के उपज ह. मेल खाए वाला प्रसंगों जवन बा तवन खाली घटना के आधार पर मेल खाला, ओहकर प्रस्तुति एक दम नया बा. आ मिलतो बा त कुछे-कुछ. भोजपुरी में उपजीव्य काव्य के परंपरा देखे में आ रहल बा.…
Read Moreभोजपुरी गीत के भाव-भंगिमा
कविता के बारे में साहित्य शास्त्र के आचार्य लोगन के कहनाम बा कि कविता शब्द-अर्थ के आपुसी तनाव, संगति आ सुघराई से भरल अभिव्यक्ति हऽ। कवि अपना संवेदना आ अनुभव के अपना कल्पना-शक्ति से भाषा का जरिये कविता के रूप देला। कवनो भाषा आ ओकरा काव्य-रूपन के एगो परंपरा होला। भोजपुरी लोक में ‘गीत’ सर्वाधिक प्रचलित आ पुरान काव्य-रूप हऽ। जेंतरे हर काव्य-रूप (फार्म) के आपन-आपन रचना-विधान, सीमा आ अनुशासन होला, ‘गीतो’ के बा। दरअसल गीत एगो भाव भरल सांकेतिक काव्य-रूप हऽ, जवना में लय, गेयता आ संगीतात्मकता कलात्मक रूप…
Read Moreमुफ़लिसी में चमकल नगीना-हीरा प्रसाद ठाकुर
साहित्य के अखाड़ा मे कुछ अइसनो कवि आ लेखक पहलवान पैदा भइलें,जे ‘स्वांतः सुखाय’ खातिर आपण कलाम दउरावत रहलें आ अपना कृतिअन के प्रकाशन आर्थिक लाभ के दृष्टि से ना बलुक सेवा भावना से करत रहि गइलें आ उ ग्लोबल हो गइलें।ओइसनें हिन्दी आ भोजपुरी के सुपरिचित गीतकार कविवर ‘हीरा प्रसाद ठाकुर’ जी रहनीं। उहाँ के भोजपुरी साहित्य के मुख्यधारा से एकदमे अलग-थलग। पाटी-पउवा से कोसहन फरका। पत्र-पत्रिकन से कवनों मतलब ना। सोरहो आना स्वतंत्र। नदी के बहाव लेखा उन्मुक्त रहिके आपण लेखनी गोदनी। ‘माटी के आवाज’ नामक कविता संग्रह…
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