भोजपुरी कविता में रचल – बसल रस के मिठास से सराबोर एगो मजिगर पोथी

भोजपुरी कविता के इतिहास बहुत पुरान बा। बाबा गोरखनाथ आ संत कबीर के कवित के थाती त भोजपुरी कविता में बड़ले बा साथे ओह काल से लेके आजु तक भोजपुरी कविता समय के साथ कदम ताल करत कविता के हर विधा में आपन जोड़दार उपस्थिति दर्ज कइले बा। महेंद्र मिश्र, भिखारी ठाकुर, रघुवीर नारायण सिंह, प्राचार्य मंनोरंजन, महेंद्र शास्त्री से होत आजु तक के भोजपुरी कविता के यात्रा अपना भीतर बहुत कुछ समेटले बा जेकरा पर हमनीं भोजपुरिया के गुमान बा। भोजपुरी काव्य में का नइखे? राष्ट्र गीत, सिंगार गीत, किसानी कविता, समकालीन आ प्रगतिशील, आधुनिक भाव के कविता, धर्म, अध्यात्म, प्रतिरोध, श्रम गीत, पर्व त्योहार, पारंपरिक, आधुनिक, लोक आ संस्कार गीत का नइखे? दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, आदिवासी विमर्श, वृद्ध विमर्श, पर्यावरणीय चिंतन, उत्तर आधुनिक चिंतन, वैचारिक दर्शन भाव के काव्य का नइखे? रुचि, रचाव, बनावट, कसावट के उत्कृष्टता एक ओरि दिखाई पड़ेला त दूसर ओरि छंद, मुक्त छंद, जापानी शैली, पारंपरिक के साथ-साथ अनेक रंग से भरपूर विविधता के झलक मिलेला भोजपुरी काव्य संसार में। गद्य के अपेक्षा भोजपुरी साहित्य में पद्म के प्रमुखता सदा रहल बा आ आजुवो बा। भोजपुरी कविता के इतिहास के भोजपुरी साहित्य के इतिहास के मान्यता देल गइल बा ई बाति पुरोधा दूर्गा शंकर प्रसाद सिंह ‘ नाथ ‘ के ‘ भोजपुरी के कवि और काव्य ‘ से लेके ब्रजभूषण मिश्र जी के सद्यः प्रकाशित ‘ भोजपुरी कविता के इतिहास ‘ से स्पष्ट बा। बाकिर का भोजपुरी काव्य के एह भरपूर भंडार पर भरपूर बतकही भइल बा सवाल सामने आई त उत्तर नाकारात्मक मिली। आलोचना, समीक्षा, बतकही के अभाव में कवनो साहित्य संसार अधूरा महसूस होला, ओकर गुणवत्ता छिपल रह जाला एह में दू मत नइखे आ भोजपुरी काव्य साहित्य के लेके ई एगो सोचनीय स्थिति हमनीं के सामने बा। नामवर सिंह अस आलोचकों एहि ओरि ध्यान आकृष्ट कइले बाड़ें।बाकिर भोजपुरी साहित्य के एह ओरि दउड़ में हमनीं के आजुले फिसड्डी रह गइल बानीं जा आ हमनीं का स्थिति चिंताजनक बा एह दिसाईं आजुवो। कहावत ह ‘ जब जागऽ ,तबे बिहान ‘। समय करवट बदल रहल बा आ बरिस 2025 भोजपुरी काव्य के दिसाईं निश्चित रूप एगो उपलब्धि भरल बरिस दिखलाई पड़ रहल बा। भोजपुरी कविता के इतिहास (डॉ ब्रजभूषण मिश्र), प्रतिनिधि कविता भोजपुरी (सं अरुणेश नीरन, बलभद्र,प्रकाश उदय), भोजपुरी कविता में किसान ( सं कनक किशोर) एही वर्ष के उपलब्धि ह। डॉ सुनील कुमार पाठक के गत बरिस आइल ‘ पढ़त लिखत ‘ में भोजपुरी काव्य पर बढ़िया आ जानकारी से पूर्ण बतकही देखे के मिलल। ओहि क्रम में हाले आइल ह डॉ सुनील कुमार पाठक के ‘ भोजपुरी कविता: रुचि आ रचाव ‘। ई देखि एकरा के कहल जा सकेला कि एगो विशेष उपलब्धि भोजपुरी काव्य साहित्य के आलोचनात्मक समृद्धता के ओरि।एह आलेख में पाठक जी के ‘ भोजपुरी कविता: रुची आ रचाव ‘ के बुनावट आ कसावट पर एक नजर डाले के प्रयास कइल गइल बा। कसौटी पर कविते ना कसौटी पर समीक्षो, आलोचना चढ़ेला। बाकिर हम एह आलेख में पुस्तक में संकलित सामग्री पर कुछ विशेष बतकही भर कइल चाहब।

वरिष्ठ कवि आ आलोचक पाठक जी के ‘ भोजपुरी कविता: रुचि आ रचाव ‘ कुल दू भाग में बंटल बा। पहिलका खंड में दूगो आलेख बा, एगो खेत खेतिहर आ किसानी पर बाति करत बा आ दूसरका भोजपुरी आ हिन्दी कविता में भिखारी ठाकुर के उपस्थिति पर। दूसरका खंड में कुल चउदह गो आलेख संकलित बा जेवन भोजपुरी के चउदह गो चुनिंदा कवि के कृतित्व पर भरपूर बाति करत बा।पाठक जी ऊपर – झापर पंवरे आ कलाबाजी देखावे में विसवास करे वाला जीव ना हवें। उहां का अब-तक जेवन कृतित्व सामने आइल बा ऊ खुद कहेला कि साहित्य में गहिराह उतरि के मोती चुने में विसवास करींला। एह संकलन खातिर कवि चयन के समय कवि के वरियता ना ओकरा काव्य में गुणवत्ता के प्रश्रय देले बानीं आ मुंह देखल आ व्यक्तिगत संबंध के लगाव – बहाव से दूर रहे के प्रयास कइले बानीं जे समीक्षक के भोजपुरी साहित्य संसार में एगो अलग पहचान देवे में सफल होई ई कहे में हमरा कवनो संकोच नइखे।

पढ़त लिखत साहित्य में, डूब के करीं बखान।

चुनल मोती देखि कहब, पाठक काम महान।।

ई हम कह रहल बानीं बाकिर आपसे कहब कि जनि पतिआईं।पतिआईं तब जब संकलित सामग्री के देखि संतुष्ट हो जाईं।ओहि क्रम में आगे पुस्तक में संकलित आलेखन पर बाति कइल चाहब। डॉ पाठक एह पुस्तक के उद्देश्य के बारे में कहत बाड़न कि ‘ एह किताब – रचना के पीछे हमार ई प्रयास जरूर रहल बा कि भोजपुरी कविता के रुचि ( कथ्य ) आ ओकरा रचाव ( शिल्प ) पर तनिका मजिगर ढंग से बात – बतकही होखो। भोजपुरी कविता पर बतकही कुछ ठोस तरीका से सही आ सार्थक रूप में हो सके ‘। एही सब के समेटत आगे पाठक जी कह रहल बानीं कि ‘ ई किताब भोजपुरी कविता के एगो मिलल – जुलल मूल्यांकन के प्रयास बा।एह से भोजपुरी कविता के काल्ह आ आज के स्थिति त स्पष्ट होइबे करी,एकरा से आगे के भोजपुरी कवितो के रंग – रूप के अंदाजा लाग सकी ‘ । समीक्षक एहू बात के आशान्वित कइले बाड़े कि ई क्रम आगहूं जारी रही। स्पष्ट बा ई देखि कि भोजपुरी कविता के जेवन उद्देश्य लेके चलल बानीं आ ओहि उद्देश्य के पूर्ति के लेके जेवन सामग्री के साथ सामने बानीं ऊ निश्चित रूप से भोजपुरी काव्य संसार खातिर एगो बहुत बड़ उपलब्धि होई आ ओह गैप के भरे में सफल होई जे भोजपुरी कविता पर बतकही के दिसाई खाली – खाली नजर आवत बा।

पहिलका खंड के पहिला आलेख ह – ‘ लाली हम भोर के ‘। एह लमहर आलेख में समीक्षक भोजपुरी कविता में खेत, खेतिहर आ किसानी के उपस्थिति पर बड़ी गहराई आ विस्तार से बतकही कइले बानीं।उहो खाली भोजपुरी कवितन में डूब के ना, खेतिहर लोक आ माटी से जुड़ के। भोजपुरिया संस्कृति किसानी संस्कृति ह। दूनों के हिंगरा के ना देखल जा सके। भोजपुरी कविता में किसानी पर बतकही हवा – हवाई, कागजी आ कल्पना के उड़ान भरि के ना कइल जा सके।उहे समीक्षक ओह पर ठोस आ सार्थक बतकही कर सकेला जे किसानी संस्कृति से जुड़ल रहल बा, नजदीक से देखले बा किसान आ किसानी काम – धाम के। समीक्षक ओह पात्रता के पूरा करत बाड़ें आ आलेख में चयनित कवि आ कविता समीक्षक के एह दिसाई ठोस, सार्थक आ सफल पहल के प्रमाणित कर रहल बा।किसानी आ कवितई पर भाई प्रकाश उदय के कहल ह कि ‘ किसानी से कविताई के रिश्ता, पता ना, जब से किसानी बा तब से बा कि जब से कविताई बा तब से। तरह-तरह से, तरह-तरह के काम-काज के अटूट एगो सिलसिला ह किसानी, आ एही नाते, तरह-तरह के, तरह-तरह से संभव कविताई के साथे बहुरंगी ओकर रिश्ता, बहुढंगी। ‘ बातों सही बा।कवितई के स्वरूप समय के साथ बदलल बा बाकिर बुझाला कि किसानी से कवितई के रिश्ता तबे से होई जब से किसानी बा। अइसना में पाठक जी खातिर काल आ कविता चयन के काम एह आलेख खातिर एगो कठिन काम रहे। बाकिर उहां के एह काम के कठिन ना मानत भोजपुरी कविता में किसान पर बात भोजपुरी के आदि कवि कबीर दास के मानत कइले बानीं। संत कवि आ आजादी के पूर्व के कवि लोगिन के किसानी कविता के साथ-साथ आज तक के कवि के अपना आलेख में स्थान देले बानीं। अपना एह आलेखों के चार भाग में बंटले बानीं- 1 संत साहित्य में, 2 आजादी के लड़ाई आ किसानी कविता,3 आजादी के बाद के किसानी कविता आ 4 नवकी चाल – ढाल में भोजपुरी के किसानी कविता।कवितो के चयन में कवितन के शिल्प आ कथ्य पर नजर समीक्षक के बा जे दर्शा रहल बा कि भोजपुरी काव्य में किसानी पर कइसन कविताई होत रहे आ आज कइसन हो रहल बा। आलेख के शीर्षक ‘ लाली हम भोर के ‘ कवि विजेंद्र अनिल के कविता के एगो लाइन ह जेह में कवि किसान के भोर के लाली आ अंजोर के गीत बतवलें बाड़ें बाकिर ऊ किसान ( धरती के भगवान ) खुद अगहनुआ भोर आ जिनिगी में मुट्ठी मर अंजोर खातिर तरसत रहल बा। समष्टि के भाव से जुड़ समग्रता में भोजपुरी कविता में किसान पर भरपूर बतकही के सार्थक प्रयास पाठक जी कइले बानीं एह आलेख में बिना कवनों वाद से प्रभावित भइले आ विवादों से दूर रहिके। आलेख में किसान संघर्ष के आग बा, श्रम के मुक्कमल पहचान बा, किसान जीवन के मानवीय संवेदना, कवि के काव्यात्मक विवेक आ जियतार सिरिजना आ काव्यात्मक सौन्दर्य भरपूर दिखलाई पड़ रहल बा जे समीक्षक के कविता चयन के नजरिया बतला रहल बा। पाठक जी भोजपुरी साहित्य में किसानी कविता के बहुरंगी सौन्दर्य के परोसे में सफल रहल बानीं एह कहे में हमरा कवनों गुरेज नइखे। कुल मिलाके समीक्षक भोजपुरी के किसानी कविता के किसानी से गहिरे जुड़ल कवियन के, किसान हित के संरक्षण खातिर सार्थक रचनात्मक साहित्यिक योगदान करे वालन के साहित्य पर सार्थक बतकही करे में सफल रहल बाड़ें।

‘ जीव जान देके नाचे घायल होके घुँघुर बाजे

लागे नेटुआँ – भांड़ नटराज भोजपुरिया।

पाॅप डिस्को सब फेल के एकरा से करी मेल

लागेला कि रेल खुली गइल भोजपुरिया।’

( जय कुमार राय ‘ जख्मी ‘ )

हँ हम बात करत बानीं भिखारी ठाकुर के जे जियते जिनिगी मिथक बन गइल रहन। एगो भिखारी ठाकुर के भोजपुरी से निकाल दियाय त भोजपुरी उदास हो जाई। भोजपुरिया खातिर भिखारी महामानव हवें, पहचान हवें, गुमान हवें। पाठक जी ओही भिखारी ठाकुर के खंड एक के दूसरका आलेख ‘ कविता में भिखारी ठाकुर ‘ में पढ़े, समुझे आ पड़ताल करे के बढ़िया प्रयास कइले बाड़ें।उहो भोजपुरी आ हिन्दी दूनों कवितन में। आलेख ई प्रमाणित करे में पूरी तरह सफल बा कि भिखारी ठाकुर एगो कवि आ कलाकार त रहबे कइले बाकिर उनुकर व्यक्तित्वो के विकास अइसन भइल जे ऊ खुदो कविता खातिर एगो विशेष चरित्र आ कथ्य बन गइले। ई आलेख तीन भाग में बंटल बा – 1 भिखारी ठाकुर से जुड़ल माइल स्टू हिन्दी कविता: भिखारी ठाकुर ( केदारनाथ सिंह ),2 भोजपुरी कविता में भिखारी आ 3 भोजपुरी के फुटकर कवितन में भिखारी। समीक्षक पहिला अंश में केदारनाथ सिंह के हिन्दी कविता ‘ भिखारी ठाकुर ‘ के माध्यम से भिखारी के जीवन वृत्त आ कृत के बड़ी बारीकी से मूल्यांकन कइले बाड़ें।आ निष्कर्ष निकाल ई कहत बाड़े कि ‘ केदार जी के ‘ भिखारी ठाकुर ‘ कविता में भिखारी के जीवन वृत्त हटाके देखला पर कविता के असर खतम हो जाई।एह कविता में भिखारी बाड़ें तबे उनका जरिए आम भोजपुरिया बा, ओकर जीवन लय बा, ओकरा जीवन के संगीत बा आ ओकर सगरी सुख – दुख – संघर्ष बा ‘। केदार जी के कविता भिखारी आ भोजपुरिया संस्कृति के सामाजिक ताना-बाना के बड़ी गहराई से पड़ताल करत बा। समीक्षक ओह गूढ़ बातिन के भोजपुरिया रंग में बड़ी बढ़िया विस्तार देवे आ विवेचना करे में सफल नजर आवत बाड़न। दूसरका अंश भोजपुरी कविता में भिखारी अनगढ़ हीरा भिखारी पर केंद्रित जयकुमार राय ‘ जख्मी ‘ के कृति ‘ अनमोल रतन भिखारी ठाकुर ‘ पर केंद्रित बा। जख्मी जी के एह संकलन के काव्य नायक भिखारी बाड़ें। पाठक जी जख्मी के एह संकलन के माध्यम से विवेचन करत कहले बानीं कि भिखारी खाली नचनिया भर ना रहन, एगो रंगकर्मी आ कलाकार भर ना रहलें,ऊ त भारत के खासकर उत्तर भारत के सामाजिक, राजनीतिक बदलाव के अगुआई करे वाला एगो दूरदर्शी सामाजिक चिंतक रहले। आ अंतिम अंश में भोजपुरी के दूसर कवियन के भिखारी संबंधित कुछ कवितन के चर्चा बा। आलेख में समीक्षक के विवेचना देखिके ई बात साफ बा कि भिखारी ठाकुर के जीवन आ रचना संसार के लेके हिन्दी, भोजपुरी आ संस्कृत आदि में भरपूर काव्य रचना भइल बा आ ओह रचनन के आधार पर समीक्षक भिखारी के जीवन के विविध रंग के बंटोरे आ परोसे में सफल रहल बाड़े।

एह संकलन के दूसरका खंड में चउदह गो भोजपुरी माटी के कवियन के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर बतकही कइल गइल बा। संकलन के एह खंड में शामिल चउदह कवि, जेकर कविता के आधार पर भोजपुरी कविता के रंग, रुचि आ रचाव समझे खातिर पाठक जी के ऑब्जर्वेटरी में डाल कसौटी पर चढ़ावल गइल बा, के नाम ह – मास्टर अजीज, रामजियावन ‘ बावला ‘, सिपाही सिंह ‘ श्रीमंत ‘, रामदरश मिश्र, शारदानंद प्रसाद, केदार नाथ सिंह,हरिकिशोर पांडेय, बच्चू पांडेय, राधामोहन चौबे ‘ अंजन ‘, महेश्वर तिवारी, विश्वरंजन, गंगा प्रसाद अरुण,शशि प्रेमदेव आ गुलरेज शहजाद। कवि के चयन पाठक जी के व्यक्तिगत रुचि ह। चयनित कवि के सूची देखे से स्पष्ट बा कि समीक्षक काव्य के गुणवत्ता, भोजपुरी लोक से लगाव आ माटी से जुड़ाव वाली कवितन के रचयिता के प्रश्रय देलें बाड़न। आपन बात में समीक्षक चयनित कवि के बारे में स्थिति स्पष्ट कइले बाड़न कि ‘ कुछ जीवित आ कुछ स्वर्गीय निठाह भोजपुरी कवियन के कवितन के समुझे – समुझावे, कुछ वरिष्ठ हिन्दी कवियन के भोजपुरी कवितन के गीतात्मक भाव – सौन्दर्य आ मुक्तछंदी शिल्प में ढलल वैचारिक संपन्नता के मूल्यांकन के साथ आपन अभिरुचि, कविता के महत्व आ पाठ्य सामग्री के उपलब्धता मुख्य रूप से प्रभावी रहल बा ‘। ई ठीक बा कि समीक्षक अपना रुचि – रूचाव के चयन में प्रश्रय देले बाड़ें बाकिर बात भोजपुरी कविता के रुचि – रचाव पर समग्रता में बाति करे के, भोजपुरी कविता के प्रतिनिधित्व दर्शावे, भाव – बोध समुझावे के कोशिश कइल गइल बा त चयनित कवि आ उहां सब के उद्धरित कवितन पर संक्षिप्त में विचार कइल जरूरी बा। ई समुझे देखे के प्रयास में ई बात सामने आवत बा कि मास्टर अजीज गंगा – जमुनी तहजीब के प्रतीक पुरुष, कवि रामजियावन ‘ बावला ‘ भोजपुरी के तुलसी आ किसान कवि, प्रगतिशील विचारधारा के प्रतिनिधि कवि सिपाही सिंह ‘ श्रीमंत ‘, भोजपुरी अंचल के स्पष्टता, साफगोई, अपनत्व आ भोजपुरी माटी के सोन्ह गंध में सनल एगो खास तरे के सौंदर्य बोध से भरल – पूरल भावाभिव्यक्ति के कवि रामदरश मिश्र, आधुनिक भाव – बोध के कवि शारदानंद प्रसाद, हिन्दी कवितन के भोजपुरियत के रंग देवे वाला केदार नाथ सिंह, भोजपुरियत से भरल निठाह संवेदना के अभिव्यक्ति देवे वाला कवि हरिकिशोर पांडेय,सहज व्यक्तित्व में बसल एगो मनस्वी साहित्यकार बच्चू पांडेय, लोक कवि राधामोहन चौबे ‘ अंजन ‘, सुघ्घर नवगीतकार महेश्वर तिवारी, आधुनिक भाव – बोधी कवि विश्वरंजन, बेजोड़ गीतकार गंगा प्रसाद अरुण, गजल के बल पर हूले – ले – ले करे वाला शशि प्रेमदेव आ युवा कवि गुलरेज शहजाद, कवितो जेकर धाह फेंकेला के चयन ई बतावे खातिर काफी बा कि चयनित कवि आ उहां सभे के उद्धरित कवितन में विशेष दम बा, मुंहदेखली चयन नइखे कइल गइल। समीक्षक आपन बात जे कवि आ कवितन पर कइले बाड़ें ऊ प्रमाण आ सटीक विवेचना के आधार पर कइले बाड़ें, हवा – हवाई ना। समीक्षा विवेचना के क्रम में कवितन के रुचि – रचाव के आधार पर ओह संबंधित वरिष्ठ कवियन के चरचो भरपूर आलेखन में मिलत बा। भोजपुरी कविता के लय – ताल एह आधार पर आकलित त कइले जा सकेला, साथ ही चयनित कवि के कवितन के गहराई समुझल जा सकेला। कुल मिलाके संकलित आलेखन से गुजरला पर भोजपुरी कविता के बहुरंगी दुनिया से परिचित त होइए रहल बा आदमी ,भोजपुरियत के सुगंध से मनो भर जात बा ई देखिके कहब कि पाठक जी जवन उद्देश्य लेके ई संकलन के सिरिजना कइले बानीं ओह में उहां के पूरा सफलता मिलल बा। आपन बाति में पाठक जी एह बेर शार्ट कट में निकल गइल बानीं। ‘ पढ़त – लिखत ‘ के अगिला कड़ी एह संकलन के मानत बानीं त भोजपुरी कवितई पर आपन बाति में तनी विस्तार देल चाहत रहे। चयनित कवियो पर प्रश्न उठ सकत बा बाकिर हम एहके व्यक्तिगत चयन मानत बानीं आ समीक्षक के ई आश्वासन एह बात के विराम देता कि आगहूं दू – तीन संकलन एह कड़ी में आई। शब्द चयन, भाषा आ प्रस्तुति के दृष्टिकोण से बेजोड़।

लोकमानस के आशा, आकांक्षा, सपना आ आदर्श के अभिव्यक्ति होला कविता जे लोकजीवन के संपूर्णता में ओकर सहचर होखेले। देश अउर काल में जहाँ तक ले लोकजीवन के पैसार बा, कविता साक्षी के रूप में ओकरा के अपना में समेटले रहेला। लोग का सोचेला, कइसे सोचेला, का चाहेला, केकरा के सराहेला आ केकरा के निषिद्ध मानेला ओकरे के एगो निपुण कवि लोक से जुड़ल अनुभूति के थाती के अपना रचना में राखेला आ इहे कवि धरम ह।कवि धरम लोकमंगल ह। सभके भला में जे भला बा ओहि से बढ़के दुनिया में कवनो भला नइखे। रचनाकार लोकमंगल के दृष्टा ह आ इहे गुण कविता के अध्यात्म ह।एगो सुघ्घर कवि जहाँ लोकमानस से जुटेला ओहिजे ओकरे से आपन रचना के संस्कारित करेला। लोकदृष्टि राजमहल आ झोंपडी में एके जइसन सुख-दुख देखे के अभ्यस्त होला। एह संकलन के चयनित कवियन के लोकदृष्टि आ रचनन के संस्कार लोक चेतना के संवाहक बा एकर गवाह रचनाकारन के उद्धरित रचना खुद बा। व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करत बा,अनेत के विरुद्ध आवाज उठावत बा, माटी के दरद सुनावत बा, परिवेश आ पर्यावरण पर बतियावति बा, समय आ संदर्भ के सच्चाई से रूबरू करावत बा, मानवता के गीत गावत बा पाठक जी के चयनित कवियन के कवितई। जे सब कह रहल बा कि हमनी का निपुण कवि के कलम के उपज हईं। कवि धरम के निर्वाहक कवि के लेखनी के उपज हईं। भोजपुरी आ भोजपुरियत के पहचान हईं जा। पाठक जी के एह संकलन के चयनित कवि लोगिन आपन बेवाक रचनाशीलता के जरिए भोजपुरी कविता संसार में एगो विशिष्ट पहचान पवले बा। चयनित भोजपुरी कवि के माध्यम से भोजपुरी लोक, संस्कृति, समाज आ साहित्य के अभिनव विवेचना करे में समीक्षक के सफलता भरपूर मिलल बा। चयनित कवि सब के कवितन के विषय वस्तु आ शिल्प अउर भाषा में समन्वय स्थापित कर समकालीन समाज के परिदृश्य के अभिव्यक्ति करे में सफल रहल बा।एह आलेखन के जे उद्देश्य लेके समीक्षक लिखले बाड़ें ओह में सफल रहल बाड़ें। भोजपुरी कविता में लोक के कइसे स्थापित कइल गइल बा समीक्षक पाठक जी एकर मूल्यांकन करत भोजपुरी कविता के विकास में लोक परंपरा के भूमिका पर गहन नजर राखि विवेचना के प्रयास कइले बाड़न। पाठक जी के ऐतिहासिक आ तुलनात्मक दृष्टिकोण के प्रयोग समीक्षा के पुष्ट कर एगो अलग चमक प्रदान करेला।एह संकलन से आगे के भोजपुरी कवितो के रंग- रूप के अंदाजा लाग सकी। भोजपुरी कविता के बहुरंगी आयाम के परिचय करावत एगो सुंदर संकलन बन पड़ल बा ‘ भोजपुरी कविता : रुचि आ रचाव ‘।निश्चित रूप से समीक्षा संग्रह भोजपुरी कविता के दिसाई एगो महत्वपूर्ण कड़ी बा। संग्रह पाठक हाथों – हाथ लिहें ई हमरा पूर्ण विसवास बा।

पुस्तक के नाम – भोजपुरी कविता: रुचि आ रचाव

विधा – समीक्षा/ आलोचना

समीक्षक – सुनील कुमार पाठक

प्रकाशक – भोजपुरी प्रकाशन, नई दिल्ली

पृष्ठ संख्या – 248

मूल्य – 349/ रुपए ( पेपर बैक )

 

समीक्षक-

कनक किशोर

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