जिनिगी गांव के : रोज जीए-मूवे वाला सुभाव के

–भगवती प्रसाद द्विवेदी   बाबू! रउआं परदेसी हईं नू? जरूर देश भा सूबा के राजधानी में राउर दउलतखाना होई। बइठीं हमरा एह टुटही खटिया पर भा ओह मचान पर। कहीं, हम अपने के का सेवा करीं?–हम भला राउर का खातिरदारी कऽ सकेलीं साहेब! पहिले हाथ-मुंह धोईं आ लीहीं हई गुर के भेली,साथ में एक लोटा इनार के शीतल जल। जे हमरा दुआर-दरवाजा प आवेला, बस हम इहे सभका खातिर लेके हाथ जोड़िके हाजिर रहेलीं। हं,अब रउआं इतमीनान से बतिआईं।   रउरा देह पर हई उज्जर धप्-धप् खादी के लिबास। कान्ह…

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खेती-बारी : बेद से लबेद तक

डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल भारत एगो खेती-बारी करेवाला देश हटे। भारत का आबादी के एगो बड़हन हिस्सा आपन गुजारा खेती से करेला। एही से भारत में खेती-बारी के भोजन का देवता के दरजा दिहल जाला। साँच त ई बा कि भारत में रामायण आ महाभारत का पहिलहीं से खेती के काम हो रहल बा। लोग खेत जोतत रहे आ ओहमें अनाज, सब्जी आदि के खेती करत रहे। कुछ लोग खेती का सङे-सङे गाइयो  पालत रहलन। देखल जाउ त आजुओ भारत के अधिकांश परब खेतिए बारी से जुड़ल बा। संसार के…

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भोजपुरी के किसानी कविता

भोजपुरी के  किसानी कविता पर लिखे के शुरुआत कहाँ से होखी-ई तय कइल बहुत कठिन नइखे।भोजपुरी के आदिकवि जब कबीर के मान लिहल गइल बा त उनकर सबसे प्रचलित पाँति के धेयान राखलो जरूरी बा ।ऊ लिखले बाड़ें-“मसि कागद छूयो नहीं कलम गह्यो नहिं हाथ।” मतलब भोजपुरी के आदिकवि कलमजीवी ना रहलें।ऊ कुदालजीवी रहलें।हसुआ-हथौड़ाजीवी रहलें।झीनी-झीनी  चदरिया बीनेवाला बुनकर रहलें।मेहनत आ श्रमे उनकर पूँजी रहे जेकरा जरिये ऊ आपन जीवन-बसर करत रहलें। भोजपुरी में रोपनी-सोहनी के लोकगीतन से लेके आउरो सब संस्कार गीतन में श्रम के महिमा के बखान बा।रोपनी गीतन…

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खेतिहर अजुवो जस के तस बा —-

‘खेती बाढ़S अपने करमे’, ‘आगे खेती आगे-आगे, पाछे खेती भागे जोगे’ जइसन कतने कहाउतन से भोजपुरिया लोक गह गह बाटे। बाक़िर कतों न कतों ई कुल्हि कहाउत कई गो बातिन के खुलासा करे क समरथ रखले बाड़ी स। पहिल बात ई कि भोजपुरिया समाज के अर्थव्यवस्था के रीढ़ खेती-किसानी आ पशुपालने रहल बा। कवनो दौर के भोजपुरी लोक साहित्य होखे भा भोजपुरी भाषा साहित्य संत आ कवि लोग खेती-बारी पर जनता के जगावे आ उनुका तकलीफ बतावे में कबों कोताही नइखे कइले। बाबा कबीर के समय से भोजपुरी कविताई में…

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गीत

झऊँसत बा देंहि सगरो झऊँसत बा मनवाँ करीं त का करीं। जरे धरती असमनवाँ सजनवा का करीं ।। गुम सुम भइल नाहीं बहेला पवनवाँ। छितरी प छितरी छूटे उग बुग मनवाँ।। बेनिया डोलावत चुनुकल हाथे के कङनवाँ सजनवा का करीं ।। दिनवाँ कटेला कइसो कटे नाहीं रतिया। अन्हारे धुन्हारे होला बहुते ससतिया।। छतवा तवेला अउसे घरवा अङनवाँ सजनवा का करीं।। धान के बेहन सूखल, खेत ना जोताइल। होला धूरिबावग लोग बाटे अगुताइल।। परल छितराह बहुते मिलें नाहीं जनवाँ सजनवा का करीं।। माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)

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कजरी

अबके बाँव न जाई सावन साँवरिया बदरिया भले कतिनो बरिसे।   चाहे झिर झिर परिहें बूनी भीजे डहुंगी तर के चूनी सजना जाई उहवें देखि भरि नजरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   चाहे कउंचे साँवर गोरी इचिको तके न हमरे ओरी अइबै ओढ़ावे बदै धानी चुनरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   भउजी टुप टुप ताना मरिहें भलहीं कोसिस निफल करिहें अबके मिली उनुके सुनइबै कजरिया। बदरिया भले कतिनो बरिसे।   भले कंठ रही अनबोलले रयनि बैरिन पट के खोलले अबके साजन गोरी भेटी अंकवरिया । बदरिया भले कतिनो बरिसे।  …

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बदल रहल सामाजिक मूल्यन के बीच बेकतीगत महत्वाकांक्षा खातिर संघर्ष के आईना:”जुगेसर”

‘जुगेसर’ जइसन कि उपन्यास के नाम बा,युग+ईश्वर =योगेश्वर के आम बोलचाल में भोजपुरी के सब्द के अर्थ स्पष्ट कर रहल बा यानी युगेश्वर ‘जुगेसर’ के रूप में भोजपुरी में स्वीकृत आ प्रयुक्त सब्द बा। ई कहे में हमरा इचको ना संकोच हो रहल बाटे कि उपन्यासकार श्री हरेंद्र कुमार ‘जुगेसर ‘सब्द के चुनाव कर के कहीं-न-कहीं समाज में आगे चलेवाला जुग प्रवर्तक के रूप में बदल रहल जनजीवन आउर सोच-विचार के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उदाहरण के रूप में धरातल पर ले आ के रखे के अक्षुण्ण प्रयास बा।एह नाम से…

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गीत

रूठल रूठल बदरवा मनाई कइसे। गाई रगिया मल्हरवा सुनाई कइसे ।।   उत्तर में बदरा हाथ जोड़ी लिहले, पछुवा बेयरिया गजब कई दिहले, भारी गरमी से जियरा जियाई कइसे ।।रूठल…..   आजु रथ जतरा में रथवा खिंचाइल, कुछ कुछ बदरिया अकासे रहल छाइल, इचिको बरसल ना बदरा नहाई कइसे ।।रूठल…..   रउवा त ठीक भइली पीही कढवा, लुहिया सहत पूरा बीतल अषढ़वा, अब जिनगी के रथवा खिंचाई कइसे ।।रूठल……   बाबा जगन्नाथ भेजी पूरब से पनियां, ‘लाल’ रोवे घरवा रोवत बानी धनियां, राउर भगतन के दुखड़ा बताई कइसे ।।रूठल……  …

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बदरिया बरसे

आइल बा बरसात संवरिया बदरिया बरसे गाँवे गाँव।   धानन के खेतन में बाजे रुन झुन पाँवें पाँव। बदरिया बरसे…   झूमत झुरकल बा पुरवइया कउवो कांवे कांव। बदरिया बरसे…   बंसवरिया में बंसुरी के धुन चर मर छाँवे छाँव। बदरिया बरसे…   पीपर पात मगन मन डोले बदरो धूप आ छाँव। बदरिया बरसे…   साँझ सुहानी मनवा मोहे चुरमुन चांवे चांव। बदरिया बरसे…   मूल रचना- हीरा लाल द्विवेदी भोजपुरी भावानुवाद – जे पी द्विवेदी    

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बात बनउवल

दुनियाँ में हम सबसे अउवल कविता हउवे बात बनउवल।   गढ़ीं भले कवनों परिभाषा मंच ओर तिकवत भरि आशा गोल गिरोह भइया दद्दा साँझ खानि के पूरे अध्धा। कबों कबों त मूड़ फोरउवल। कविता हउवे…..   कवि के कविता, कविता के कवि उनुके खाति कबों उपमा रवि अब त ज़ोर जोगाड़ू बाटै पग पूजी  के चानी काटै। कबों कबों के गाल बजउवल। कविता हउवे…..   कुछ के चक्कर भारी चक्कर ज्ञान कला के लूटत जमकर बोअल जोतल खेती अनके बेगर लाज खड़ा बा तनके कबों कबों के टांग खिंचउवल। कविता…

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