ठुनुक़त घरवाँ अंगनवाँ,
बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।
अरे हो बिहँसत माई के परनवाँ,
बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।
मुँहवा लपेटले मखनवाँ
बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।
अरे हो उचकि उतारत अयनवाँ,
बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।
हुलसत गरवा लगावेली
अरे हो भरले लोरवा नयनवाँ ,
बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।
रोआँ पुलकि जिया हरसेला
अरे हो कुंहुकेला मन अस मयनवाँ,
बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी